कांग्रेस की अंदरूनी कलह, मौजूदा विधायकों पर अत्यधिक निर्भरता और बागियों की समस्या, कुछ ऐसे कारण प्रतीत होते हैं जिनके कारण कांग्रेस एक दशक के बाद हरियाणा में वापसी करने में विफल रही।
पार्टी हरियाणा की भाजपा सरकार को हटाने के प्रति आश्वस्त दिख रही थी, जो 10 वर्षों से सत्ता में है और सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही थी।
हालांकि, 48 सीट जीतकर भाजपा ने कांग्रेस की वापसी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया और कई एग्जिट पोल को भी गलत साबित कर दिया, जिनमें हरियाणा में कांग्रेस की आसान जीत की भविष्यवाणी की गई थी। कांग्रेस 90 सदस्यीय विधानसभा में 37 सीट जीतने में सफल रही।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने मंगलवार को कहा कि चुनाव परिणाम राज्य के माहौल के विपरीत हैं।
इस वर्ष के लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा से पांच सीटें छीनने के बाद कांग्रेस उत्साहित थी और उसने बेरोजगारी, किसानों की दुर्दशा और अग्निपथ योजना सहित विभिन्न मुद्दों के इर्द-गिर्द अपना चुनाव अभियान चलाया।
लेकिन वह एकजुट लड़ाई लड़ने में विफल रही और उसकी गुटबाजी का सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने पूरे अभियान में फायदा उठाया। भाजपा चुनाव के दौरान हुड्डा और हरियाणा में पार्टी की प्रमुख दलित नेता कुमारी सैलजा के बीच टकराव का विमर्श खड़ा कर कांग्रेस पर निशाना साधती रही।
इसके अलावा, भाजपा के विपरीत कांग्रेस हरियाणा में पिछले कई वर्षों से जमीनी स्तर तक एक सुव्यवस्थित और मजबूत संगठनात्मक ढांचा स्थापित करने में विफल रही है।
मौजूदा विधायकों की हार भी कांग्रेस के लिए कमजोर कड़ी साबित हुई। हारने वाले कांग्रेस विधायकों में शमशेर सिंह गोगी, प्रदीप चौधरी, मेवा सिंह, सुरेन्द्र पंवार, धर्म सिंह छोकर, अमित सिहाग और चिरंजीव राव शामिल हैं।
अपने आधे से अधिक मौजूदा विधायकों के हारने से कांग्रेस की वापसी की संभावनाओं को झटका लगा है।
बागियों ने भी कांग्रेस को झटका दिया। बागियों ने वोटों को विभाजित करा दिया, जिससे भाजपा को फायदा हुआ।
कांग्रेस की बागी चित्रा सरवारा अंबाला कैंट से भाजपा के दिग्गज नेता अनिल विज को चुनौती देने के लिए मैदान में उतरीं। उन्हें कांग्रेस ने टिकट देने से मना कर दिया था।
विज ने सरवारा को 7,000 से अधिक मतों के अंतर से हराया। विज को 59,858 वोट मिले, सरवारा को 52,581 वोट मिले जबकि कांग्रेस उम्मीदवार परविंदर पाल पारी को 14,469 वोट मिले।
बहादुरगढ़, कालका, गोहाना और बल्लभगढ़ जैसी कुछ और सीटें थीं, जहां बागियों के कारण कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा।