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राजस्थान में भाजपा का कैसा है समीकरण? क्या है ताकत, कमजोरियां और अवसर?

राजस्थान के आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र...
राजस्थान में भाजपा का कैसा है समीकरण? क्या है ताकत, कमजोरियां और अवसर?

राजस्थान के आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता तथा मौजूदा कांग्रेस सरकार के खिलाफ ‘सत्ता विरोधी’ लहर के सहारे जीत का भरोसा है। राज्य में 23 नवंबर को मतदान होगा जबकि तीन दिसंबर को मतगणना होगी।

भाजपा राज्य में अपने नेताओं में खींचतान पर काबू पाते हुए, सत्तारूढ़ कांग्रेस में अंदरूनी कलह का फायदा उठाने की कोशिश करेगी। राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा की ताकत, कमजोरी व अवसरों और खतरों का एक विश्लेषण:

ताकत:

भाजपा के पास बूथ स्तर तक मजबूत संगठनात्मक ढांचा है। पार्टी ने चुनाव की तैयारी काफी पहले से शुरू कर दी थी।

इसके साथ ही पार्टी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का फायदा मिलने की उम्मीद है। मोदी राज्य में पहले ही कई रैलियों को संबोधित कर चुके हैं।

इसके अलावा भाजपा की ‘हिदुत्व अपील’ से भी उसे वोट मिलने की उम्मीद है। पार्टी राज्य में सांप्रदायिक हिंसा के मामलों को उठाती और अशोक गहलोत सरकार को “तुष्टीकरण” पर घेरती भी नजर आ रही है।

कमजोरियां:

भाजपा की राजस्थान इकाई की खींचतान भले ही कांग्रेस की तरह खुली न हो लेकिन पार्टी आलाकमान को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनके खेमे से सावधानी से निपटना होगा।

इसके अलावा भाजपा पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) के मुद्दे का ढंग से बचाव नहीं कर पाई है। कांग्रेस का आरोप है कि केंद्र ईआरसीपी को “राष्ट्रीय परियोजना” का दर्जा देने के अपने आश्वासन से पीछे हट गया।

अवसर:

राज्य में 1990 के दशक से ‘सत्ता विरोधी लहर’ एक अहम चुनावी कारक रही है और इस बार यह भाजपा के पक्ष में एक बड़ा कारक है। पांच साल के कांग्रेस शासन के बाद, मतदाताओं का झुकाव इस बार भाजपा को सत्ता में लाने की तरफ हो सकता है।

भाजपा प्रतिद्वंद्वी पार्टी की अंदरूनी कलह का फायदा उठाएगी। कांग्रेस के असंतुष्ट नेता सचिन पायलट ने इस साल परीक्षा पेपर लीक जैसे मामलों को लेकर मुख्यमंत्री पर निशाना साधा था।

इसके अलावा भाजपा कानून-व्यवस्था, खासकर महिलाओं के खिलाफ अपराध को लेकर गहलोत सरकार को घेरने की कोशिश करेगी। कथित ‘लाल डायरी’ भी चर्चा का मुद्दा बनी हुई है।

खतरा:

पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की बहाली और गहलोत सरकार द्वारा कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू किए जाने से कांग्रेस की तरफ मतदाता जा सकते हैं।

राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के प्रमुख हनुमान बेनीवाल अनेक विधानसभा सीटों पर उन जाट वोट में सेंध लगा सकते हैं जो भाजपा के पक्ष में जा सकते थे। सीमावर्ती इलाकों में नई भारतीय आदिवासी पार्टी पर भी नजर रखनी होग।

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