बिहार में छिड़े चुनावी समर में स्थितियां तेजी से बदल रही हैं। कई चुनावी सर्वेक्षण पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही भाजपा को आगे बता रहे थे, अब कुछ नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन की स्थिति को ज्यादा मजबूत बता रहे हैं। नीतीश कुमार ने बिहारी और बाहरी के बीच जो चुनाव करने का जो दांव चला है, उसमें अभी तो दम दिखाई दे रहा है।
दिल्ली में टैक्सी चलाने वाले गणेश का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री हमने बना दिया है, अब उन्हें देश चलाना चाहिए। मुख्यमंत्री के वह उम्मीदवार नहीं हो सकते ना। फिर बिहार के चुनाव में किसी बिहारी को आगे करने के बजाय, प्रधानमंत्री और उनके करीबी पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ही मोर्चा संभाले हुए हैं। मंच से बिहारी को शैतान कह रहे हैं, यह बिहार की जनता का अपमान है। इसका जवाब हम वोट में देंगे।–गणेश ने चुनाव में वोट डालने के लिए अपना टिकट भी करा लिया है। जब उनसे पूछा, क्या खाली वोट डालने के लिए बिहार जा रहे हैं, तो सहरसा के रहने वाले गणेश ने कहा, नहीं दोनों त्योहार है न। दशहरा और चुनाव, दोनों में हम खेल देखेंगे न।
ऐसा नहीं की सिर्फ भारत के विभिन्न शहरों में बसे बिहारियों की नजर इन चुनावों पर गड़ी है। प्रवासी बिहारी भी खूब सक्रिय हैं। दोनों ही गठबंधनों ने प्रवासी बिहारियों पर खासा नेटवर्क खड़ा करने की कोशिश की है। हालांकि भारतीय डायस्पोरा में नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की गूंज ज्यादा सुनाई देती है, लेकिन इनमें ऐसा तबका भी अच्छा खासा है, जो बिहार चुनाव में एक बिहारी की विजय की कामना कर रहा है। इस तबके में नीतीश एक सफल मुख्यमंत्री के तौर पर देखे जा रहे है। लंदन में इंजीनियर रवि वर्मा इन दिनों बिहार यात्रा पर हैं। पटना में पले-बढ़े रवि का मानना है कि राज्य का चुनाव राज्य के मुद्दों पर होना चाहिए। इसकी कमान भी राज्य के ही नेतृत्व के हाथ में होनी चाहिए। बिहार में अगर भाजपा अपने किसी बिहारी नेता को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करके चुनाव लड़ती तो शायद उसकी ज्यादा अपील होती। अभी तो संदेश यही जा रहा है कि दो गुजराती बिहार फतह करने पर निकले हैं। मेरी समझ से यह बिहार के सम्मान के लिए अच्छा नहीं है।
यही वजह है कि जो चुनावी सर्वे बिहार में भाजपा गठबंधन को आगे बता रहे हैं, वे भी बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश को आगे दिखा रहे हैं। सर्वेक्षणों से एक बात साफ हो रही है कि पिछले एक महीने में तस्वीर बदल रही है। इसमें उत्तर प्रदेश के दादरी में गोमांस की अफवाह पर एक मुसलमान की हत्या से लेकर आरक्षण विरोधी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बयान की भी अहम भूमिका है।