मेरा सवाल था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी तो विकास की बात कर रहे हैं कहते हैं कि भाजपा की सरकार बनेगी तो बिहार में विकास होगा। कमलेश तुरंत बोला आज प्रधानमंत्री को बिहार की याद आ रही है चुनाव हो रहे हैं इसलिए। डेढ़ साल हो गया कितने दिन बिहार आए और कितना बिहार वालों की सुध ली। हमारी सुध तो कोई बिहारी ही लेगा। बार-बार पूछे जाने पर भी कमलेश ने यह नहीं बताया कि वह किसको वोट देगा। बस इतना ही कहता रहा कि लड़ाई बहुत कठिन है। कमलेश की बातों में दम भी लग रहा था। सियासी दलों के अपने-अपने दावे हो सकते हैं कि लेकिन आम आदमी खुलकर कुछ भी कहने को तैयार नहीं है। नीतीश कुमार के शासन को सभी अच्छा बताते हैं लेकिन वोट देने के सवाल पर चुप्पी साध जाते हैं। ऐसी ही चुप्पी भाजपा को वोट देने के नाम पर होती है। ऊंट किस करवट बदलेगा। यह कह पाना मुश्किल है।
राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि इस बार का चुनाव विरोधाभासों से भरा है। स्थिति कहीं से साफ नजर नहीं आ रही है। कहने को आरक्षण, गो-हत्या, जंगलराज जैसे मुद्दे बार-बार उठ रहे हैं लेकिन इन मुद्दों पर हावी पड़ रहा है विकास का मुद्दा। अब यह मुद्दा नीतीश कुमार के खाते में जाता है या फिर भाजपा के खाते में। क्योंकि दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क है। भाजपा का अब नया नारा हो गया है कि 'बिहार की होगी तेज रफ्तार, केंद्र-राज्य में एक सरकार’। लेकिन लिट्ठी-चोखा की दुकान लगाने वाले रामकुमार बताते हैं कि बीते ढाई दशक में बिहार का राजनीतिक परिदृश्य बदला है। केंद्र में जिसकी सरकार रही है राज्य में उसकी विरोधी सरकार बनी। भाजपा और जदयू जब सरकार में रहे तो केंद्र में यूपीए की सरकार थी और जब लालू सरकार में रहे तो कांग्रेस, राजग की सरकार रही। फिर भी रामू यह नहीं बताते कि वोट किसको देंगे। मतदाताओं की यह चुप्पी बहुत कुछ कहती है क्योंकि शंकाए और आशंकाएं महागठबंधन और भाजपा गठबंधन में साफ दिखाई पड़ती है। इसलिए अभी से चुनाव बाद की स्थितियों का आकलन होने लगा है। चुनाव बाद नतीजों को लेकर जोड़-घटाव शुरू हो गया है।
कौन बनेगा मुख्यमंत्री और किसकी होगी सरकार की चर्चा तेज हो गई है। आम आदमी के बीच इस बात की चर्चा है कि अगर महागठबंधन में जदयू से राजद की सीटें ज्यादा आ गईं तो क्या नीतीश कुमार फिर भी मुख्यमंत्री बनेंगे। कहीं ऐसा तो नहीं लालू यादव अपने बयान से पलट जाए और नीतीश को समर्थन न दे। लेकिन लालू को सलाह देने वाले कुछ नजदीकी लोग आउटलुक से बताते हैं कि लालू जी बार-बार चुनावों कह रहे हैं कि नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनाएंगे और वह अपने इस बयान से पलटने वाले नहीं है। सलाहकारों का तर्क है कि लालू यादव स्वयं तो मुख्यमंत्री बनेंगे नहीं और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को भी मुख्यमंत्री नहीं बनाने जा रहे है। लालू यादव की मंशा है कि नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनें और अगले पांच साल तक बिहार का विकास करें। तब तक लालू यादव के पुत्र राजनीतिक अनुभव भी प्राप्त कर लेंगे और बिहार में भाजपा और उनके सहयोगियों की लय है वह कम हो जाएगी। लालू के बेटे तेजस्वी भी आउटलुक से बातचीत में कहते हैं कि मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई मुद्दा ही नहीं है। असली मुद्दा तो है सांप्रदायिक ताकतों को हराने का और दूसरा आरक्षण पर अगर किसी प्रकार की आंच आई तो पिछड़ी जातियां किसी भी सूरत में इसे बर्दाश्त नहीं करेगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण पर दिए बयान का असर इन चुनावों में दिख रहा है जिसे लेकर लालू यादव ने जोरदार तरीके से प्रहार किया और कहा कि अगर आरक्षण खत्म करने की कोशिश हुई तो बिहार ही नहीं पूरे देश में भूचाल आ जाएगा। लालू के आक्रामक प्रहार से भाजपा की चिंताएं बढ़ी और पार्टी की ओर से यह कहा जाने लगा कि आरक्षण किसी भी सूरत में खत्म नहीं होगा। इसलिए पार्टी नेता पिछड़ी जाति के उम्मीदवार को चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। भाजपा किसी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर चुनाव नहीं लड़ रही है। प्रचार में पार्टी के नेता के तौर पर प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की ही फोटो नजर आ रही है।
बहरहाल बिहार का चुनाव दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है। एक तरफ विकास के मुद्दे पर भाजपा लगातार अपनी रणनीति बदल रही है तो दूसरी ओर भ्रष्टाचार के मामले में भी महागठबंधन को घेरने की पूरी तैयारी कर रही है। चुनाव के दौरान नीतीश सरकार में मंत्री अवधेश कुमार कुशवाहा पर घूस लेने का आरोप लगा। कुशवाहा को मंत्रिमंडल से हटा दिया गया। राजद के कुछ नेताओं के नाम भी सामने आ रहे हैं। इस मुद्दे को भी भाजपा भुनाने की तैयारी में है। क्योंकि बेदाग छवि के माने जाने वाले नीतीश कुमार पर यह भाजपा का करारा प्रहार होगा। भाजपा सूत्रों के मुताबिक कुशवाहा का जो स्टिंग सामने आया है उसे पार्टी जगह-जगह रैलियों में दिखाएगी और यह बताएगी कि किस प्रकार सुशासन बाबू के राज में भ्रष्टाचार बढ़ा है। इसको लेकर जदयू और राजद ने भी रणनीति बदल ली है। बताया जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में व्यापमं और ललित गेट का मुद्दा उठाया जाएगा। लेकिन इस मुद्दे को लेकर भाजपा बहुत ज्यादा चिंतित नजर नहीं आ रही है। व्यापमं और ललित गेट का मुद्दा उछलने के बाद से मध्य प्रदेश और राजस्थान में स्थानीय निकाय में भाजपा को जबरदस्त जीत मिली। इसलिए पार्टी आश्वस्त है कि स्थानीय स्तर पर जब इन मुद्दों से सरकार को किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ तो बिहार में नहीं होगा। क्योंकि इस मुद्दे से बिहार की जनता को कुछ लेना देना नहीं है।
चुनाव का पहला चरण बीतने के बाद महागठबंधन और भाजपा गठबंधन ने प्रचार की रणनीति बदलनी शुरू कर दी। साल 2010 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार वोटिंग प्रतिशत में बढ़ोत्तरी हुई लेकिन यह बढत इस बात की ओर इशारा नहीं कर रही है कि कोई बड़ा बदलाव होगा। इसलिए माना जा रहा है कि मुकाबला कांटे का है। जीत को लेकर कोई आश्वस्त नहीं है। लालू-नीतीश का प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर हमला जारी है तो इधर से भी जवाब दिया जा रहा है। अमित शाह आउटलुक से कहते हैं कि यह स्पष्ट हो गया है कि लालूजी को अपने सामने हार साफ नजर आ रही है। यही वजह है कि वह बहुत ज्यादा चिंतित, परेशान और भयभीत हैं (पढ़े साक्षात्कार)। लालू प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधते हुए कहते हैं कि दूसरों पर उंगली उठाने वाले मोदी खुद बह्मï पिशाच हैं और उन्हें अब जल्द ही बधिया करना है। बधिया शब्द का इस्तेमाल जानवरों को नपुंसक बनाने के संबंध में किया जाता है। इसके उलट भाजपा अब ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करने से बच रही है जिससे असंसदीय भाषा का बोध हो। भाजपा के एक रणनीतिकार बताते हैं कि पार्टी ने चुनाव से पहले राजद प्रमुख लालू पर जितना निशाना साधा उसका असर यह हुआ कि लालू यादव के समर्थकों की संख्या में बढ़ोतरी होने लगी। दरअसल लालू यादव ने बिहार की सियासत में दलित, पिछड़ों को मुखर करने में बड़ी भूमिका अदा की।
भाजपा नेता के मुताबिक यह ठीक है कि लालू यादव का कार्यकाल खराब रहा लेकिन हमें लालू के साथ-साथ नीतीश कुमार पर भी निशाना साधना चाहिए था। दरअसल भाजपा को यह उम्मीद थी कि चुनाव में यादव, मुसलमान और कुर्मी जाति को छोडक़र सारी जातियां उनके साथ रहेगी लेकिन राजनीतिक जानकार बताते हैं कि ऐसा कभी भी नहीं होता है। लालू के साथ अगर यादव जाति के लोग होते तो राबड़ी देवी विधानसभा की सीट नहीं हारती और लालू लोकसभा का चुनाव। जानकारों के मुताबिक बिहार की राजनीति बड़ी ही दिलचस्प है। राज्य में अगड़ों का प्रतिनिधित्व कम होने के बावजूद सत्ता की कुर्सी पर अगड़े ही बैठे। लालू यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद से राज्य की सियासत बदली। इसलिए अभी भी अगड़े और पिछड़े की लड़ाई राज्य में बनी हुई है। जानकार बताते हैं कि बिहार की सत्ता से जाति कभी खत्म नहीं हो सकती। पहली बार ढाई दशक से राज्य की कमान पिछड़े और दलित के हाथ में रही और इस वर्ग के लोग चाहते हैं कि सत्ता में इसी वर्ग का प्रतिनिधित्व हो।
दूसरी ओर स्थानीय स्तर पर महागठबंधन और भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं का पार्टी छोडऩे का सिलसिला भी थम नहीं रहा है। भाजपा को तगड़ा झटका देते हुए पार्टी के कद्दावर दिवंगत नेता कैलाशपति मिश्र की पुत्रवधु दिलमणि देवी अपने पुत्र के साथ जदयू में शामिल हो गयीं। दिलमणि देवी विधायक थी और टिकट नहीं मिलने से नाराज थीं। वहीं अररिया जिले के फारबिसगंज से भाजपा विधायक पद्म पराग राय वेणु ने भी पार्टी छोड़ जदयू शामिल हो गए। पदम मशहूर लेखक फणीश्वर नाथ रेणु के पुत्र हैं। इससे पहले रघुनाथपुर विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक विक्रम कुुंवर ने टिकट नहीं मिलने पर जदयू की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। जदयू भाजपा नेताओं को पार्टी से जोडऩे में जहां खुश हो रही हैं वहां भाजपा इसे लेकर चिंतित नहीं है। पार्टी नेताओं का कहना है कि राजनीति में नाराजगी चलती-रहती है। कोई टिकट बेचने की बात कह रहा है तो कोई टिकट नहीं मिलने से नाराज है। राज्य की 243 विधानसभा सीटों में जो पार्टी को मिली है उसी पर उक्वमीदवार चुनाव लड़ेंगे। बाकी तो सभी को खुश नहीं रखा जा सकता। महागठबंधन और भाजपा गठबंधन में आंतरिक कलह भी खूब है। कई सीटों पर भाजपा के सहयोगी दलों के उम्मीदवार आपस में लड़ रहे हैं तो कई सीटों पर पार्टी आंतरिक कलह का शिकार है। नाम न छापने की शर्त पर भाजपा के एक कार्यकर्ता का कहना है कि वह लंबे समय से पार्टी का टिकट मांग रहे थे। उन्हें इस बात के लिए आश्वस्त किया गया था कि गठबंधन में अगर भाजपा के खाते में यह सीट गई तो टिकट मिलेगा। भाजपा को सीट मिली और उम्मीदवार भी दूसरी पार्टी से लाकर बना दिया गया। कार्यकर्ता के मुताबिक अब खुले मन से पार्टी के लिए प्रचार भी नहीं कर सकते। यही स्थिति महागठबंधन में शामिल दलों की है। कोसी क्षेत्र से कांग्रेस का टिकट मांग रहे एक उम्मीदवार को जब टिकट नहीं मिला तो वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। राजद और जदयू के भी कई कार्यकर्ता अब दूसरे दलों का दामन थामे हुए हैं।
राज्य में भले ही मुकाबला महागठबंधन और भाजपा गठबंधन के बीच माना जा रहा है लेकिन समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, जन अधिकार पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रवादी कांग्रेस भी ताल ठोंक रहे हैं। इन दलों के नेता भी जीत का दावा कर रहे हैं। लेकिन सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने तो राज्य में भाजपा की बहार बताकर विरोधियों को हमला करने का मौका दे दिया। बसपा अध्यक्ष मायावती कहती हैं कि भाजपा को जीताने के लिए सपा ने बिहार में उम्मीदवार खड़ा किए। सभी दलों के नेताओं का कहना है कि उनके बिना राज्य में किसी की सरकार बनने वाली नहीं है। टिकट बंटवारे को लेकर हुई नाराजगी से भी माना जा रहा है कि कुछ निर्दलीयों और कुछ पार्टियों का खाता खुल सकता है। चुनाव बाद की स्थितियों पर अभी से नजर गड़ाए सियासी दलों के नेता भी मान रहे हैं कि परिणाम कुछ भी हो सकता है। ऐसी स्थिति में पहले से ही का आकलन करना जरूरी है।