लोकसभा का चुनाव कई क्षेत्रीय पार्टियों का भविष्य तय करेगा। जिस प्रकार 2014 में यूपी से सपा व बसपा का सफाया हुआ था कुछ उसी प्रकार इस बार भाजपा ने हरियाणा की क्षेत्रीय पार्टियों को दरकिनार करने की रणनीति बनाई है। इसी के चलते इस समय राष्ट्रीय पार्टियों के बीच सीधा मुकाबला नजर आ रहा है। इससे क्षेत्रीय पार्टियां भी अनभिज्ञ नहीं हैं और इसी के चलते जजपा-आप एवं बसपा-लोसुपा की नीतियां अलग-अलग होने के बावजूद गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरी हैं।
हिसार का गणित
हिसार में भी राष्ट्रीय पार्टियों ने अपने प्रत्याशियों का चयन कर क्षेत्रीय पार्टियों को उनके ही घर में घेरने की रणनीति बनाकर आगे निकलने का प्रयास किया है। हिसार लोकसभा की बात करें तो 2014 के चुनाव में इनेलो की ओर से चुनावी मैदान में उतरे दुष्यंत चौटाला ने उकलाना, नारनौंद एवं उचाना जाट बाहुल्य हलके से भारी बढ़त लेकर चुनाव जीता था। वहीं भाजपा-हजकां गठबंधन के कुलदीप बिश्नोई हिसार, हांसी, बरवाला, नलवा, आदमपुर, बवानीखेड़ा से बढ़त लेने के बावजूद चुनाव में परास्त हो गए थे। इस बार समीकरण पूरी तरह अलग है।
भाजपा खड़ी कर रही चुनौतियां
इनेलो दो भागों में बंट चुकी है और उससे निकली जजपा से अब सांसद दुष्यंत चौटाला चुनावी मैदान में हैं। इसके चलते सबसे पहले इनेलो उनकी राह में रोड़े अटकाएगी। दूसरी ओर भाजपा ने उकलाना, उचाना, नारनौंद जाट बाहुल्य इलाकों के ही केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह एवं विधायक प्रेमलता के पुत्र बृजेंद्र सिंह को मैदान में उतारकर जजपा को घेरने का प्रयास किया है। बाकी जगह भाजपा गैर-जाट मुद्दे पर वोट हासिल करने का प्रयास करेगी।
कांग्रेस की भी कोशिश जारी
दूसरी ओर कांग्रेस भी 7 हलकों में गैरजाट के मुद्दे पर बढ़त लेने की कोशिश कर रही है। बसपा-लोसुपा गठबंधन की बात करें तो वह धीमी गति से चुनावी रण में कार्य करती नजर आ रही है। दूसरी इनेलो पार्टी जींद उपचुनाव के समान जजपा को नुकसान पहुंचाने की रणनीति पर काम कर रही है।
विधानसभा चुनावी हार से उबरने की चुनौती
लोकसभा चुनाव जीतने के उपरांत विधानसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला उचाना से लड़े थे। यहां पर प्रेमलता ने उन्हें मात दी थी। इसका कारण है कि इन जाट बाहुल्य हलकों में केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह का अपना वजूद एवं पकड़ है। इसी के चलते इस लोकसभा चुनाव में दुष्यंत को उचाना की हार से उबरने के लिए खासी मशक्कत करना पड़ रहा है। भाजपा की सोच है कि जाट बाहुल्य हलकों से उनके प्रत्याशी को उनके समाज के जाट वोट मिलना तय है और इसके बाद गैर जाट वोट के दम पर वह चुनावी नैया पार कर लेंगे।