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पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक एजेंडा बन रहा बड़ा मुद्दा

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनाव दो समानांतर बिंदुओं पर चल रहा है। एक ओर पंरपरागत विकास का नारा है। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, ढांचागत निर्माण, नागरिक सेवाओं की बात हो रही है। वहीं दूसरी ओर, मतदाता केवल वोटों के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पर चर्चा कर रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 26 जिलों की 140 सीटों पर सबसे बड़ा मुददा सांप्रदायिकता ही है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक एजेंडा बन रहा बड़ा मुद्दा

चाहे फिर मतदाता इसके पक्ष में हो या फिर विरोध में। यहां पर शनिवार 11 फरवरी को मतदान होना है। सभी प्रमुख दलों के नेता चाहे फिर वह सपा—कांग्रेस गठबंधन के अखिलेश यादव—राहुल गांधी हों, बसपा की मायावती हों या फिर भाजपा के नरेंद्र मोदी—अमित शाह, सभी विकास की बात तो कर रहे हैं  लेकिन अवसर मिलते ही वह हिंदू—मुसलिम मतों के बिंदु को भी उठाते हैं। इससे समस्त मतदान के सांप्रदायिक रूप लेने की संभावना अधिक होती जा रही है।    
 
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का अधिकांश हिस्सा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से 2013 के मुज्जफरनगर कांड की तपिश से प्रभावित दिख रहा है। दंगों के बाद मुज्जफरनगर, शामली, मेरठ जिला से हिंदू—मुस्लिमों का बड़े स्तर पर पलायन हुआ था। हालांकि इनमें से कई परिवार स्थिति कुछ सुधरने पर वापस आ गए थे लेकिन सांप्रदायिक तनाव अब इस क्षेत्र में आम हो गया है। यही वजह है कि बिजनौर, मसूरी, कैराना और बिसाड़ा मेंं एक तनाव हमेशा से देखा जा सकता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चुनाव में इस तनाव को हर दल भुनाने की जुगत में लगा है। अधिकतर जगहों पर इसे पर्दे में रखकर राजनीति हो रही है तो कई जगह दल—उम्मीदवार खुलकर इसकी राजनीति कर रहे हैं। जिन जगहों पर खुलकर मतदाताओं से सांप्रदायिक आधार पर साथ आने की बात दल और उम्मीदवार कर रहे हैं उनमें सरधाना, थाना भवन, कैराना और धौलाना शामिल है। सरधाना से भाजपा ने अपने फायरब्रांड नेता संगीत सोम को मैदान में उतारा है। वह मौजूदा विधायक हैं। वहीं थाना भवन से सुरेश राणा इसके उम्मीदवार हैं। दोनों मुज्जफरनगर कांड के आरोपी हैं। वहीं कैराना से भाजपा के सांसद हुकुम सिंह की बेटी मृगांका उम्मीदवार है। हुकुम सिंह ने ही सबसे पहले यहां से हिंदूओं के सामूहिक पलायन का मुददा उठाकर राष्ट्रीय स्तर पर अखबारों मेंं सुर्खिया हासिल की थी। ये दोनों ही दंगों से सर्वाधिक प्रभावित इलाके रहे  थे।  
 
इस इलाके में जहां खुले तौर पर दल—उम्मीदवार धर्म के नाम पर वोट मांग रहे हैं वह धौलाना सीट है। दिल्ली से करीब 50 किमी दूरी पर स्थित इस विधानसभा सीट से भाजपा ने अपने चार बार के सांसद डा. रमेश चंद तोमर को मैदान में उतार है। तोमर के समर्थक खुले तौर पर हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण की बात कर रहे हैं या कहे कि इसी के सहारे वे जीत की उम्मीद भी कर रहे हैं। यहां पर त्रिकोणीय मुकाबला है। ठाकुर बाहुल्य वाले इस  विधानसभा सीट पर सपा, बसपा और भाजपा के बीच टक्कर है। दो दलों ने राजपूतों को टिकट दिया है तो वहीं एक ने मुसलमान उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। सपा से मौजूदा विधायक धर्मेश तोमर मैदान में भाजपा रमेश चंद्र तोमर पर दांव लगा रही है। रमेश तोमर यह आरोप लगा रहे हैं कि मुसलिमों को फतवा जारी किया गया है कि वे बसपा के असलम चौधरी के पक्ष में वोट दें। इसका हवाला देते हुए वह हिंदूओं से खुले आम अपने पक्ष में वोट देने की अपील कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि हिंदूओं को जाति—पाति, वर्ग से उपर उठकर एक साथ आकर उनके पक्ष में वोट करना चाहिए और इस सीट को मुसलमानों के हाथ में जाने से बचाना होगा। रमेश तोमर के उग्र भाषणों को देखते हुए उन पर एफआईआर भी दर्ज हो चुकी है। लेकिन उसके बावजूद उनके तेवर में कोई नरमी दिखाई नहीं देती है।
 
धौलाना के अलावा बिजनौर और मुज्जफरनगर जैसे ग्रामीण इलाको के साथ ही नोएडा और साहिबाबाद में भी यह सांप्रदायिक कार्ड खेला जा रहा है। खासकर सांप्रदायिक आधार पर यह मतों का ध्रुवीकरण वहां पर हो रहा है जहां पर भाजपा के हिंदू उम्मीदवार और अन्य दलों के मुसलिम प्रत्याशियों के बीच सीधी टक्कर हो रही है। 
 

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