Advertisement

जनादेश ’24 / तमिलनाडु: द्रविड़ पहचान बनाम हिंदुत्व

यहां मुकाबला दोतरफा, सिवाय एकाध सीटों के जहां भाजपा का कुछ दांव है लोकसभा में 39 सीटों की ताकत रखने वाला...
जनादेश ’24 / तमिलनाडु: द्रविड़ पहचान बनाम हिंदुत्व

यहां मुकाबला दोतरफा, सिवाय एकाध सीटों के जहां भाजपा का कुछ दांव है

लोकसभा में 39 सीटों की ताकत रखने वाला तमिलनाडु रणनीतिक रूप से 'इंडिया' और एनडीए दोनों ही गठबंधनों के लिए अहम है। ब्राह्मण-विरोधी राजनीति और मजबूत द्रविड़ वैचारिकी का इतिहास लिए यह सूबा अब भी भाजपा के लिए टेढ़ी खीर बना हुआ है, बावजूद इसके कि राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उससे संबद्ध संगठनों ने राज्‍य के सांस्‍कृतिक ताने-बाने में सेंध लगाने की पर्याप्‍त कोशिश की है। ध्‍यान देने वाली बात यह भी है कि राज्‍य के मतदाताओं ने कभी भी एकतरफा ढंग से द्रमुक या अन्‍नाद्रमुक को लगातार नहीं चुना, जो यहां की दो प्रमुख पार्टियां हैं। हर संसदीय चुनाव में राज्‍य का मतदाता इन दो दलों के नेतृत्‍व वाले गठबंधनों के बीच ही झूलता रहा है, उनके नाम चाहे जो भी हों। यहां वैचारिक सरोकारों से ज्‍यादा नेताओं का करिश्‍माई व्‍यक्तित्‍व और रणनीतिक गठजोड़ जीत और हार को तय करने में भूमिका निभाते हैं।

द्रमुक के नेतृत्‍व में डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव अलायंस ने 2004 में सभी 39 सीटें जीती थीं। इस गठबंधन में कांग्रेस सहित पीएमके, एमडीएमके और दो वामपंथी दल (भाकपा और माकपा) शामिल थे। इसके बावजूद अन्‍नाद्रमुक को 30 प्रतिशत वोट मिले थे जो द्रमुक के अपने 25 प्रतिशत वोट से ज्‍यादा थे। कांग्रेस के खाते में 14 प्रतिशत वोट आए थे।

पांच साल बाद 2009 में द्रमुक ने गठबंधन सहयोगियों को बदलते हुए 27 सीटों पर जीत हासिल की। उसके सहयोगियों में कांग्रेस, वीसीके और आइयूएमएल थे। पिछली बार के सहयोगी पीएमके, एमडीएमके और दोनों वामपंथी दल अबकी अन्‍नाद्रमुक की अगुआई वाले तीसरे मोर्चे के साथ चले गए थे। इसके बावजूद इस मोर्चे को महज 12 सीटें मिलीं।

2014 के चुनाव में कहानी पलट गई और अन्‍नाद्रमुक वाले गठबंधन ने सभी 39 सीटों पर द्रमुक का सूपड़ा साफ कर दिया। इस बार भी गठबंधनों और उनके घटकों में बड़ा बदलाव हुआ था। भाजपा के अलावा अन्‍नाद्रमुक के नेतृत्‍व वाले एनडीए में पीएमके और डीएमडीके शामिल रहे। द्रमुक के सहयोगियों में आइयूएमएल और वीसीके के अलावा एकाध क्षेत्रीय दल और थे। इस गठबंधन का नाम डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव अलायंस था।

अपने-अपने दांवः द्रमुक के स्टालिन, भाजपा के अन्नामलै और अन्नाद्रमुक के पलानीस्वामी

अपने-अपने दांवः द्रमुक के स्टालिन, भाजपा के अन्नामलै और अन्नाद्रमुक के पलानीस्वामी

इस चुनाव में कांग्रेस और वामपंथी दल अलग से लड़े थे। इसके चक्‍कर में केवल वोट बंटे और अंतत: अन्‍नाद्रमुक और भाजपा को उसका लाभ मिला। संसद में दक्षिण से भाजपा का पहला सांसद पहुंचा- कन्‍याकुमारी से पोन राधाकृष्‍णन।

2019 का आम चुनाव करुणानिधि और जयललिता के गुजरने के बाद उनकी अनुपस्थिति में हुआ। इस चुनाव में स्‍टालिन द्रमुक के सबसे बड़े और मजबूत नेता बनकर उभरे, जिन्‍होंने अपने भाई अलागिरि के साथ उभरे टकराव को बड़े प्रभावी ढंग से हल कर लिया था। इसके ठीक उलट अन्‍नाद्रमुक में एडापड्डी पलानिस्‍वामी मजबूत नेता बनकर नहीं उभर सके। नतीजतन, द्रमुक का गठबंधन सेकुलर प्रोग्रेसिव अलायंस 38 सीटों पर जीत गया और अन्‍नाद्रमुक के खाते में महज एक सीट आई। 

द्रमुक को इस चुनाव में 53 प्रतिशत वोट मिले जबकि अन्‍नाद्रमुक-भाजपा गठबंधन को केवल 30 प्रतिशत वोट मिले। भाजपा के साथ गठबंधन करने के कारण अन्‍नाद्रमुक के लोगों की तरफ से द्रमुक के पक्ष में भारी संख्‍या में वोट पड़े। इसके बाद 2021 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा की वोट हिस्‍सेदारी तीन प्रतिशत पर आकर सिमट गई, जो चुनावी गणित के एक अहम पहलू की ओर इशारा कर रही थी।

इस बार भाजपा की निगाह तीन सीटों पर है- चेन्‍नै साउथ, कन्‍याकुमारी और कोयम्‍बटूर। चेन्‍नै साउथ में भाजपा को 2014 में 25 प्रतिशत वोट मिले थे, जो कि पूरे सूबे में पार्टी के औसत प्रदर्शन से बहुत ज्‍यादा था। इस सीट पर ब्राह्मणों की आबादी ठीकठाक है, लिहाजा भाजपा को उम्‍मीद है कि वह अपने हक में उनके वोटों को गोलबंद कर पाएगी, हालांकि 2019 में यह सीट द्रमुक ने 22 प्रतिशत वोटों के भारी अंतर से जीती थी और कुल पड़े मतों का आधा ले गई थी।

कन्‍याकुमारी इकलौती सीट है जहां से भाजपा का एक सांसद 2014 में रहा है। पोन राधाकृष्‍णन को तब 38 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि दूसरे नंबर पर रहे कांग्रेसी प्रत्‍याशी को 24 प्रतिशत वोट मिले थे। माना जा रहा है कि इसका दुहराव अबकी नहीं होगा क्‍योंकि सभी अहम दल द्रमुक, अन्‍नाद्रमुक और कांग्रेस 2014 में अलग-अलग लड़े थे जिससे वोट बंट गए थे। 2019 में यहां से कांग्रेस 60 प्रतिशत वोट लेकर जीती थी जबकि राधाकृष्‍णन, जो अन्‍नाद्रमुक की ओर से लड़े, 35 प्रतिशत वोट लेकर दूसरे स्‍थान पर रहे थे।

कन्‍याकुमारी में 2021 में उपचुनाव हुआ था। तब कांग्रेस के सांसद वसंतकुमार का निधन हो गया था। उस उपचुनाव में कांग्रेस ने 53 प्रतिशत वोटों के साथ यह सीट बचा ली थी, हालांकि राधाकृष्‍णन के वोट बढ़कर 39 प्रतिशत हो गए थे। इस बार फिर से जीत की उम्‍मीद में राधाकृष्‍णन को भाजपा ने खड़ा किया है। इस सीट पर ईसाई मतदाताओं की बड़ी संख्‍या है इसलिए भाजपा की राह इतनी आसान नहीं रहेगी, हालांकि पार्टी हिंदू समुदाय नाडर को अपने पक्ष में गोलबंद कर सकती है।

कोयंबत्तूर से सूबे के भाजपा मुखिया अन्‍नामलै लड़ रहे हैं। यहां भी भाजपा ने काफी ताकत लगाई हुई है। पिछले दो चुनावों से भाजपा यहां दूसरे नंबर पर आती रही है। उसका वोट प्रतिशत यहां 34 था जो 2019 में गिरकर 31 प्रतिशत पर आ गया था। 2019 में यह सीट द्रमुक की सहयोगी माकपा को दी गई थी लेकिन इस बार यहां से द्रमुक का प्रत्‍याशी खड़ा है।

अन्‍नामलै का आक्रामक अंदाज और द्रविड़ विरोधी पक्ष भाजपा के कार्यकर्ताओं के बीच उन्‍हें लोकप्रिय बनाता है। जहां तक द्रविड़ राजनीति करने वाले दलों का सवाल है, लोग इन्‍हीं कारणों से अन्‍नामलै को खारिज भी कर सकते हैं। पिछले साल नवंबर में उन्‍होंने यह कहकर पूरे राज्‍य में बवाल मचा दिया था कि पेरियार की सभी मूर्तियां हटा दी जानी चाहिए क्‍योंकि वे नास्तिकता का प्रचार करते थे। उन्‍होंने कहा था कि भाजपा के सत्‍ता में आते ही पेरियार की सारी मूर्तियां हटा दी जाएंगी। इसी तरह उन्‍होंने द्रविड़ राजनीति के दिग्‍गज रहे पूर्व मुख्‍यमंत्री सीएन अन्‍नादुरै के खिलाफ यह बयान देकर सुर्खियां बंटोरी थीं कि उन्‍होंने 1956 में मदुरै के एक आयोजन में हिंदू धर्म का मजाक उड़ाया था। अन्‍नामलै की इन्‍हीं सब हरकतों की वजह से अन्‍नाद्रमुक और भाजपा का रिश्‍ता टूट गया।

बीती जनवरी में उनके ऊपर दो समूहों के बीच धार्मिक रंजिश फैलाने का मुकदमा धारा 153ए के अंतर्गत हुआ जब उन्‍होंने एक चर्च में कथित रूप से घुसने की कोशिश की। कैथोलिक युवाओं के एक समूह ने धर्मपुरी जिले के बोम्मिडी स्थित एक चर्च में उनके प्रवेश पर एतराज जताया था जिसके बाद उनकी समूह के साथ झड़प हो गई थी। इस लिहाज से कह सकते हैं कि कोयम्‍बटूर एक ऐसी प्रयोगशाला है जहां भाजपा यह जांच रही है कि इस बार आक्रामक हिंदुत्‍व वोटों में तब्‍दील हो पाएगा या नहीं।

भाजपा से रिश्‍ता तोड़ने के बाद अन्‍नाद्रमुक स्‍टालिन की सरकार के खिलाफ मुद्दों को उठाकर असंतोष की सवारी गांठने की पूरी कोशिश और उम्‍मीद में है। जयललिता के निधन के बाद पार्टी का जनाधार बहुत घटा है। 2014 में 37 सीटें जीतने वाली अन्‍नाद्रमुक संसद में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी थी। 2019 में वह एक सीट पर सिमट गई। अब वह अपना जनाधार फिर पाने की कोशिश में है। द्रविड़ पहचान के खिलाफ उग्र हिंदुत्‍व को लेकर पार्टी के काडर में भयंकर असंतोष था, इसी वजह से पार्टी ने भाजपा से दूरी बना ली। यह वापसी की दिशा में उसका पहला कदम था। अब वह स्‍टालिन की सरकार के खिलाफ असंतोष को वोटों में भुनाने की उम्‍मीद कर रही है।

दूसरी तरफ एमके स्‍टालिन और उनके बेटे, कैबिनेट मंत्री और अभिनेता उदयनिधि स्‍टालिन ने भाजपा और केंद्र सरकार के खिलाफ संघीयता और साम्‍प्रदायिक ध्रुवीकरण के मुद्दों के इर्द-गिर्द जबरदस्‍त मोर्चा खोल दिया है। द्रमुक का घोषणापत्र स्‍पष्‍ट कहता है कि पार्टी इस चुनाव को केंद्र सरकार के खिलाफ एक वैचारिक जंग के रूप में लड़ रही है, जिसने राज्‍य को राजस्‍व का वाजिब हिस्‍सा नहीं दिया।

पुराने प्रतिद्वंद्वी अन्‍नाद्रमुक और द्रमुक भी एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्‍यारोप में लगे हुए हैं। इसने चुनाव को इन्‍हीं दो दलों के बीच सीमित कर दिया है, सिवाय एकाध सीटों के जहां मुकाबला भाजपा के चलते त्रिकोणीय हो गया है।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad