कर्नाटक कांग्रेस के हाथ से निकलता दिखाई दे रहा है। रुझानों में भाजपा सरकार बनाने के लिए आवश्यक 113 सीटों की तरफ बढ़ती दिख रही है। चुनाव से पहले दोनों तरफ से आक्रामक प्रचार किया गया लेकिन लग रहा है पीएम मोदी की लगातार की गई रैलियों और तीखे बयानों का कर्नाटक की जनता पर असर हुआ।
वोेट बैंक के लिहाज से देखें तो चुनाव से पहले लिंगायत समुदाय को लुभाने की काफी कोशिश की गई। सिद्दारमैया सरकार ने लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देने का कार्ड चला। अमित शाह और राहुल गांधी लिंगायतों के कई मठों के चक्कर लगाते देखे गए।
चुनाव प्रचार में मठ-मंदिर के दौरे
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 10 फरवरी को मंदिर दर्शन से राज्य में चुनाव अभियान की शुरुआत की थी। उन्होंने 90 दिन में 8 बार कर्नाटक का दौरा किया। इस दौरान 19 मंदिरों में दर्शन किए। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 80 दिन में 27 मठ-मंदिरों में दर्शन किए। चुनाव के समय मठ-मंदिरों दर्शन करने का एक कारण प्रदेश के 85 फीसदी हिंदू मतदाताओं को भी बताया गया। सूबे की 200 सीटों पर हिंदू मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं।
लिंगायत, एससी-एसटी वोटों का असर
कर्नाटक में लिंगायत और एससी-एसटी वोट का काफी महत्व है। प्रदेश में 70 सीटों पर लिंगायत और 80 सीटों पर एससी-एसटी वोटरों का असर है। पीएम मोदी ने अपनी रैलियों में दलितों की काफी बात की। लग रहा है लिंगायत और एससी-एसटी समुदाय का काफी वोट भाजपा को मिला है। एसटी का वोट अगर भाजपा को मिला है तो यह बड़ा शिफ्ट माना जा रहा है। दलित बाहुल्य इलाकों में भी भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया है।
पहले के चुनावों मेें भी इन वोटों का पड़ा है असर
इससे पहले भी कर्नाटक के पिछले तीन विधानसभा चुनावों का विश्लेषण बताता है कि राज्य की लिंगायत और एससी-एसटी वोटरों के असर वाली सीटों पर जो पार्टी अच्छा प्रदर्शन करती है, राज्य में उसकी सरकार बन जाती है। 2013 में लिंगायत-एससी/एसटी बहुल 81 फीसदी सीटें जीतकर कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। 2013 में कांग्रेस ने जब सत्ता में वापसी की तब उसने लिंगायतों के असर वाली 70 में से 47 सीटें जीती थीं। वहीं एससी-एसटी के असर वाली 80 में से 52 सीटें उसने जीती थीं। इस तरह कांग्रेस ने लिंगायत और एससी-एसटी प्रभाव वाली 99 सीटें जीतीं।
2008 में लिंगायत-एससी/एसटी 70% सीटें जीतकर भाजपा ने बनाई थी सरकार
2008 में भाजपा ने कर्नाटक में जब पहली बार अपने दम पर सरकार बनाई थी, तब उसने लिंगायतों के असर वाली 70 में से 38 सीटें जीती थीं। वहीं एससी-एसटी के असर वाली 80 में से 39 सीटें उसने जीती थीं। इस तरह भाजपा ने लिंगायत और एससी-एसटी प्रभाव वाली 77 सीटें जीतीं। भाजपा ने 2008 में कुल 110 सीटें जीतीं, जिनमें 70 फीसदी सीटें उसने लिंगायत--एससी/एसटी वोटरों के समर्थन से हासिल की। बता दें कि 2008 में भाजपा ने 6 निर्दलीयों का समर्थन लेकर सरकार बनाई थी।