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जनादेश ’24 /रायबरेली-अमेठी: विरासत की हिरासत

दो सीटों पर सियासी विरासत को बचाने का ऊहापोह बांदा से रायबरेली के बीच पहले जमुना और फिर गंगा पार करके...
जनादेश ’24 /रायबरेली-अमेठी: विरासत की हिरासत

दो सीटों पर सियासी विरासत को बचाने का ऊहापोह

बांदा से रायबरेली के बीच पहले जमुना और फिर गंगा पार करके डेढ़ सौ किलोमीटर चलने वाले सुनसान और उजाड़ हाइवे पर पहली राहत लालगंज का कस्बा है जिसके चौराहे पर महाराणा प्रताप की मूर्ति लगी है। हफ्तों के सस्पेंस के बाद नामांकन से ठीक पहले आधी रात घोषित हुई राहुल गांधी की उम्मीदवारी पर चौराहे के एक पनवाड़ी से किया गया पहला सवाल अफसाने का पता देता है। वह कहते हैं, ‘‘ऊ त परिवारे हैं न, उनही का वोट दियाई।’’

रायबरेली के लोग गांधियों को अपना परिवार कहते हैं। इसी परिवार की एक झलक के लिए 3 मई को नामांकन की दोपहर कड़ी धूप में लोग गमछा लिए खुद को जला रहे थे, लेकिन कलेक्ट्रेेट तक जाने वाली सड़क पर भाजपा के झंडों का सैलाब था। पूरी सड़क भाजपा के वाहनों से जाम थी। दाहिनी ओर से राहुल गांधी का काफिला चुपके से उलटी दिशा से आया। पता चला वे नामांकन से पहले कांग्रेस कार्यालय जा रहे हैं।

भाजपा प्रत्याशी दिनेश सिंह के नामांकन के बाद सड़कें तकरीबन खाली हो गईं और राहुल के इंतजार में बैठे लोग इधर-उधर हो गए। राहुल काफी देर बाद कलेक्ट्रेट में पीछे की सड़क से घुसे। दो सड़कों के मुहाने पर कुछ कांग्रेसी इंतजार में खड़े रहे। नामांकन का वाहन सड़क पर ही खड़ा रहा। खबर आई कि नामांकन हो गया। अमेठी में किशोरी लाल शर्मा का नामांकन पहले ही हो चुका था। वहां नामांकन के तुरंत बाद कांग्रेस के गौरीगंज कार्यालय से तंबू उखड़ गया और लाल कुर्सियां बच गईं।

जगदीशपुर अस्पताल के सामने अल्ट्रासाउंड चलाने वाले सुनील ने इस दृष्टान्त को दो लाइनों में जाह‌िर किया, ‘‘अमेठी में बारात सजी थी, तो दूल्हा नहीं आया। दूल्हा जहां गया वहां बराते नहीं थी।’’ 

सड़क किनारे खड़े होकर छांव ले रहे रायबरेली के व्यवसायी मुन्ना कहते हैं, ‘‘राहुल यहां न आए होते तो सैकड़ों कांग्रेसी इस्तीफा दे दिए होते।’’ तो क्या अमेठी में सैकड़ों कांग्रेसियों ने इस्तीफा दे दिया? इस पर वे जोर से हंसते हुए बोले, ‘‘वहां राहुल लड़ते तो हार जाते। यहां की बात और है। उनकी आजी की विरासत का सवाल है। फिर भी, लड़ाई कठिन है।’’

लोग बताते हैं कि रायबरेली में अमेठी के मुकाबले कांग्रेसी विरासत से मोह ज्यादा है। इसलिए भी क्योंकि यहां जो भी विकास के काम हुए, सब कांग्रेस ने करवाए। इसके बावजूद दिनेश सिंह की पदयात्रा से लेकर कुछ महीनों से की जा रही मेहनत और स्थानीय होने का लाभ राहुल को टक्कर देता दिखता है। बिलकुल यही बात केएल शर्मा के लिए अमेठी में हो रही है।

रायबरेली के पत्रकार दुर्गेश सिंह कहते हैं, ‘‘शर्मा जी ने अपने सामने कांग्रेसी और भाजपाई नेताओं को बड़ा होते देखा है। उन्हें मदद की है। एक-एक परिवार और इलाके से उनका निजी रिश्ता है। स्मृति ईरानी पर वे भारी पड़ेंगे। बिलकुल सही फैसला किया है कांग्रेस ने।’’

लखनऊ में चर्चा है कि कांग्रेस ने देर से ही सही, एक तीर से दो शिकार किए हैं। पहला, स्मृति ईरानी के चुनाव को ठंडा कर दिया। नामांकन से एक रात पहले तक भाजपा के कार्यकर्ता अमेठी में बहुत उत्साहित थे कि राहुल गांधी को ईरानी फिर हराएंगी, लेकिन नामांकन की दोपहर ईरानी के चुनाव कार्यालय के बाहर सन्नाटा पसरा हुआ था।

कांग्रेसी फैसले का दूसरा शिकार अखिलेश यादव की रणनीति है। योगी प्रशासन के एक करीबी पत्रकार नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि अखिलेश ने खुद कन्नौज से लड़ने का फैसला करते वक्त बयान दिया था कि यूपी में लड़ाई सजेगी, ‘‘वे चाहते थे कि प्रियंका और राहुल दोनों अमेठी और रायबरेली से लड़ें, दोनों हार जाएं और 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए मुसलमान वोटों पर सपा की दावेदारी सुनिश्चित हो सके। राहुल इस ट्रैप में नहीं फंसे।’’

रायबरेली और अमेठी को लेकर स्थानीय स्तर पर कई व्याख्याएं हैं, लेकिन राहुल गांधी की राह आसान नहीं है क्योंकि सबसे बड़ा नैरेटिव यह है कि वे जीतने के बावजूद वायनाड़ के लिए रायबरेली को छोड़ जाएंगे। इसकी काट में यह कहा जा रहा है कि राहुल के सीट छोड़ने के बाद होने वाले उपचुनाव में यहां से प्रियंका गांधी को कांग्रेस लड़वाएगी। उधर, अमेठी में ठंडी पड़ चुकी भाजपा से स्मृति ईरानी को खतरा है। एक रेस्तरां में बैठे कुछ सपाइयों को यह कहते सुना गया कि अब भाजपा आश्वस्त हो गई है कि जीत तो ईरानी की ही होगी, कहीं यही उन्हें ले न डूबे।

सुनील कहते हैं, ‘‘स्मृति ईरानी के वोट न देबै। उसके भीतर घमंड आ गया है, बाकी तो सब ठीके है।’’

 

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