केरल के चुनावी मैदान में आज सब से ज्यादा चर्चा बीजेपी को लेकर है। ये स्थिति तब है जबकि बीजेपी आज तक केरल विधानसभा में अपना खाता भी नहीं खोल सकी है। दरअसल राज्य से बीजेपी को बाहर रखने के मामले में कांग्रेस और वाम दल एकमत हैं। राज्य के कई विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां मुख्य विरोधी भाजपा है। ऐसे में कांग्रेस और वाम दल एक-दूसरे के जीतने वाले उम्मीदवार का पर्दे के पीछे से समर्थन करते हैं और यह कोई छिपी हुई बात नहीं है। कासरकोड जिले में मंजेश्वरम, कासरगोड और उदमा, पालक्कट, तृशूर और तिरुवनंतपुरम जिले में नेमं, वट्टियूरकाव, कट्टाक्कडा, कषक्कूट्टू आदि क्षेत्रों में भाजपा को जीत से दूर रखने के लिए कांग्रेस और वाम मोर्चे का छिपा गठजोड़ साफ दिखाई देता है। इन क्षेत्रों में पहले के चुनावों में भी ऐसा होता आया है।
इसके बावजूद अगर इस बार भाजपा की चर्चा हो रही है तो उसके कुछ खास कारण भी हैं। पिछले कई चुनावों को देखें तो पहली बार केरल के चुनाव में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने खुद को प्रचार में झोंक रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के अलावा कई केंद्रीय मंत्री राज्य में चुनाव प्रचार कर चुके हैं। जमीनी स्तर पर भी भाजपा और आरएसएस के कार्यकर्ताओं में एक अलग उत्साह दिख रहा है। शायद पार्टी को उम्मीद हो गई है कि यह चुनाव पिछले चुनावों से अलग हो सकता है और पार्टी को यहां भी पैर रखने की जगह मिल सकती है। तिरुअनंतपुरम और उसके आस-पास के इलाकों का भ्रमण करने पर इसे महसूस किया जा सकता है।
भाजपा के इस उभार से दोनों परंपरागत मोर्चों की धड़कन बढ़ गई है। कांग्रेस आरोप लगा रही है कि वाम मोर्चे का बीजेपी से अंदरखाने गठजोड़ है जबकि यही आरोप वाम मोर्चा भी लगा रहा है। जबकि भाजपा का आरोप है कि बंगाल में तो कांग्रेस और वाम का दोस्ताना हो ही गया है केरल में भी दोनों फ्रेंडली फाइट कर रहे हैं। भाजपा नेता वेंकैया नायडु ने दिल्ली में मीडिया से बात करते हुए यह बात सार्वजनिक रूप से भी कही है। केरल के स्थानीय मीडिया में चर्चा है कि विधानसभा चुनाव को लेकर दिल्ली में पिछले सप्ताह सोनिया गांधी, सीताराम येचुरी और ए.के. एंटनी के बीच बातचीत हुई है। हालांकि ऐसी किसी मुलाकात की पुष्टि कहीं से नहीं हुई है।