जाहिर है कि कांग्रेस यहां सरकार बनाने के लिए ज्यादा आश्वस्त लग रही है क्योंकि उसे इसके लिए सिर्फ तीन विधायकों की जरूरत है। हालांकि आंकड़े हमेशा शायद इतने ही आसान ही नहीं होते जितने दिखते हैं क्योंकि नगा पीपुल्स फ्रंट ने नतीजों आने के तुरंत बाद भाजपा का समर्थन करने के संकेत दे दिए हैं। दूसरी ओर लोक जनशक्ति पार्टी केंद्र सरकार की सहयोगी है और उसपर भाजपा का दबाव है कि वह अपने विधायक को भाजपा का समर्थन करने के लिए कहे। वैसे पिछले विधानसभा में लोजपा कांग्रेस सरकार का समर्थन कर रही थी। इसलिए उसका रुख देखने लायक रहेगा। तृणमूल कांग्रेस का समर्थन कांग्रेस आसानी से हासिल कर लेगी। एक निर्दलीय का समर्थन उसी पार्टी को मिलने की उम्मीद है जो सरकार पहले बना ले। ऐसे में सारा दारोमदार अब दिवंगत पी.ए. संगमा की पार्टी एनपीपी पर है जो अपने आखिरी दिनों में एनडीए के ज्यादा करीब रहे। अब तक इस पार्टी ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
सत्ता के इसी पेच को सुलझाने के लिए भाजपा और कांग्रेस के दिग्गज इंफाल पहुंचने लगे हैं। पूर्वोत्तर में भाजपा को स्थापित करने का बीड़ा उठाए पूर्व कांग्रेसी हिमंत विश्वशर्मा इंफाल पहुंच चुके हैं और सियासी जोड़तोड़ में लगे हैं। दूसरी ओर भाजपा के इन प्रयासों से घबराई कांग्रेस ने भी अपने वरिष्ठ नेताओं सीपी जोशी और रमेश चेन्निथला को आज इंफाल पहुंचने के लिए कहा है।
पूर्वोत्तर के प्रमुख अखबार दैनिक पूर्वोदय के संपादक रविशंकर रवि आउटलुक हिंदी से बातचीत में कहते हैं कि भाजपा के लिए मणिपुर में सरकार बनाना उतना आसान नहीं होगा। सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते परंपरा के अनुसार राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला को पहले कांग्रेस को सरकार गठन का मौका देना होगा। इस स्थिति में कांग्रेस को देखना होगा कि वह कितनी जल्दी बहुमत का जुगाड़ कर सकती है। हालांकि एक स्थिति यह भी बन सकती है कि इन 11 में से 10 विधायक पहले ही भाजपा को समर्थन की घोषणा कर दें और इससे संबंधित पत्र भी राज्यपाल को सौंप दिया जाए। ऐसे में राज्यपाल अपने विवेक से फैसला लेंगी।
जिस तरह से दोनों पार्टियों ने इंफाल में डेरा डाला है उससे लगता है कि मणिपुर में रविवार की रात तक यह स्थिति साफ हो जाएगी कि कौन वहां सरकार बनाने जा रहा है।