खास बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि कांग्रेस के अयोग्य ठहराए गए नौ विधायक इस शक्ति परीक्षण में मतदान नहीं कर सकते। यानी एक तरह से सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को बड़ी राहत मिली है क्योंकि 70 सदस्यीय विधानसभा में इन नौ विधायकों को हटा देने से सदन की क्षमता 61 सदस्यों की रह जाती है और बहुमत के लिए 31 विधायकों की जरूरत रहेगी। कांग्रेस के पास अपने 27 और भाजपा के एक बागी समेत 34 विधायकों का समर्थन होने का दावा किया जा रहा है जबकि भाजपा के पास 27 विधायक हैं। ऐसे में कांग्रेस की सरकार बचने की पूरी उम्मीद है। हालांकि इन अयोग्य विधायकों की सदस्यता पर कल उत्तराखंड हाईकोर्ट में सुनवाई होनी है और अगर इनकी सदस्यता बहाल कर दी गई तो शक्ति परीक्षण में यह विधायक भी मतदान कर सकेंगे।
आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होने पर केंद्र सरकार ने उत्तराखंड विधानसभा में शक्ति परीक्षण के उच्चतम न्यायालय के सुझाव पर सहमति जताई। उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड में सदन में शक्ति परीक्षण के तौर तरीकों पर विचार विमर्श किया। न्यायालय ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को सदन में विश्वास मत हासिल करने की अनुमति दी जानी चाहिए और कांग्रेस के नौ अयोग्य विधायक विश्वास प्रस्ताव में मतदान नहीं कर सकते।
अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने मतदान प्रक्रिया की निगरानी के लिए पूर्व-सीईसी अथवा पूर्व न्यायाधीश को पर्यवेक्षक बनाए जाने की बात कही। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विश्वास मत परीक्षण के दौरान दो घंटे के लिए राष्ट्रपति शासन अस्थायी रूप से स्वत: समाप्त हो जाएगा। कोर्ट ने कहा कि हरीश रावत के विश्वास मत साबित करने हेतु मतदान के एकमात्र एजेंडा के तहत उत्तराखंड विधानसभा का विशेष सत्र 10 मई को 11 बजे से एक बजे के बीच बुलाया जाएगा। विश्वास परीक्षण के लिए मतदान के अलावा विधानसभा में अन्य कोई चर्चा नहीं होगी और मतदान की कार्यवाही पूरी तरह से शांति एवं बिना व्यवधान के होगी। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विधानसभा के सभी अधिकारियों को प्रक्रिया का अक्षरश: पालन करना होगा और इसमें किसी प्रकार का विचलन नहीं होगा। राज्य के मुख्य सचिव एवं पुलिस महानिदेशक को किसी भी बाधा के बगैर सभी पात्र सदस्यों के विधानसभा प्रक्रिया में भागीदारी सुनिश्चित कराने का निर्देश दिया गया है। विश्वास मतदान के दौरान प्रस्ताव का पक्ष लेने वाले विधायकों को सदन के एक ओर जबकि इसके विरोधी सदस्यों को सदन के दूसरी ओर बैठना होगा।