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गुजरात चुनाव: गांव कांग्रेस के हाथ, भाजपा शहरों में सिमटी

स्‍थानीय निकाय चुनावों के नतीजों ने गुजरात में डेढ़ दशक से हाशिए पर चल रही कांग्रेस को खुश होने की वजह दे दी है।
गुजरात चुनाव: गांव कांग्रेस के हाथ, भाजपा शहरों में सिमटी

गुजरात के ग्रामीण इलाकों में भाजपा को बड़ा झटका लगा है हालांकि राज्‍य के 6 नगर निगमों - अहमदाबाद, वडोदरा, जामनगर, भावनगर, सूरत और राजकोट में भाजपा सत्‍ता बचाने में रही। वहीं ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस ने जबरदस्त वापसी की है। कांग्रेस ने 31 में से 21 जिला पंचायतों में शानदार जीत दर्ज कर अपनी खोई राजनीतिक जमीन पाने का सबूत दिया है। वर्ष 2010 में भाजपा ने 31 में से 30 जिला पंचायतों पर कब्जा जमाया था, जबकि कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह जिले मेहसाणा के साथ-साथ भाजपा के गढ़ माने जाने वाले अहमदाबाद, राजकोट, वडोदरा, जूनागढ़ और जामनगर की जिला पंचायतों में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा जबकि इन जिलों के नगर निगमों में भाजपा की जीत हुई है। इन चुनावों में भाजपा की हार-जीत इसलिए भी मायने रखती है क्‍योंकि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मुख्‍यमंत्री आनंदीबेन की यह पहली परीक्षा है और इन्‍हें गुजरात विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है। 

नरेंद्र मोदी और आनंदीबेन पटेल के गृह जिले मेहसाणा की जिला पंचायत और नगरपालिका में भाजपा की पराजय के पीछे हार्दिक पटेल की अगुवाई में चला पाटीदार आंदोलन भी बड़ी वजह रहा है। कुल मिलाकर गुजरात चुनाव के इन नतीजों ने शहरी और ग्रामीण मतदाताओं के बीच स्‍पष्‍ट विभाजन को दर्शाया है। ग्रामीण इलाकों में लगातार सूखे जैसे हालात, महंगाई, पटेल आरक्षण का मुद्दा और गांव से किसी बड़े चेहरे की कमी भाजपा पर भारी पड़ी। गुजरात में भाजपा के आनंदीबेन पटेल, नितिन पटेल से लेकर अमित शाह जैसे प्रमुख नेता शहरी इलाकों से आते हैं। यहां तक कि हार्दिक पटेल के मुकाबले में भी भाजपा ग्रामीण समुदाय से किसी चेहरे को पेश नहीं कर पाई थी। इससे पहले वर्ष 2000 में हुए पंचायत चुनावों में कांग्रेस को ऐसी शानदार कामयाबी मिली थी। तब केशुभाई पटेल गुजरात के मुख्यमंत्री थे और कांग्रेस ने कुल 25 जिला पंचायतों में से 23 पर कब्जा किया था।  

शहरों पर भाजपा की पकड़ कायम, अंतर घटा 

पंचायत चुनावों में कांग्रेस की कामयाबी और शहरों में कायम भाजपा की पकड़ के बीच एक तथ्‍य पर गौर करना जरूरी है कि गुजरात देश के सर्वाधिक शहरी आबादी वाले राज्‍यों में से एक है। यहां की करीब 43 फीसदी आबादी शहरों में रहती है। यानी शहरों में पार्टी को मजबूत किए बगैर कांग्रेस गुजरात में वापसी नहीं कर पाएगी। भाजपा ने भले ही छह नगर निगमों पर अपना कब्‍जा बरकरार रखा है लेकिन जीत का अंतर पहले से घटा है। राजकोट नगर निगम में भाजपा केवल एक सीट से आगे रही। राज्‍य की 56 नगर पालिकाओं में से भाजपा 34 में आगे चल रही है वहीं कांग्रेस नौ पर बढ़त बनाए हुए है।

सौराष्‍ट्र में भाजपा को सबसे ज्‍यादा नुकसान 

अगर क्षेत्रवार देखें तो भाजपा को गुजरात में सबसे ज्‍यादा नुकसान सौराष्‍ट्र क्षेत्र में पहुंचा है। यहां 10 में से सिर्फ एक जिला पंचायत में भाजपा विजयी रही है। पटेल आंदोलन के प्रभाव वाले उत्‍तर गुजरात में भी भाजपा पाटण, मेहसाणा और साबरकांठा जिला पंचायतों के चुनाव हार गई है। पिछले 12 सालों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने गुजरात में लगभग हर चुनाव में अपना सिक्‍का जमाया। लेकिन इस बार तस्‍वीर कुछ बदली है। राज्य की 230 ब्‍लॉक पंचायतों में कुल 4778 सीटें में से 2204 पर कांग्रेस आगे चल रही है जब‍कि 1798 पर भाजपा आगे है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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