देहरादूऩ। कांग्रेसी नेता हरीश रावत ने गंगा को बाजार बनाने तथा गंगाजल को बेचने की कोशिश करने वालों की जमानत जब्त कराने का आह्वान उत्तराखंड के मतदाताओं से किया है। अपने मुख्य प्रमुख सलाहकार और स्व. दीनदयाल उपाध्याय के प्रपोत्र न्यायविद चंद्रशेखर पंडित भुवनेश्वर दयाल उपाध्याय से मिले भाजपाई सरकारों की गड़बड़ियों के कागजात का अध्ययन करने के बाद रावत ने यह बयान जारी किया है
हरदा ने कहा कि उपाध्याय ने जो कागजात दिखाए हैं, उनका अध्ययन करने के पश्चात साफ हो गया है कि भाजपा को मां गंगा और गंगाजल पर बोलने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। भाजपा ने शराब सिंडीकेट से बड़ा लेनदेन कर पावर प्रोजेक्ट आवंटन घोटाला किया। शराब सिंडीकेट की गंगा की धारा को अवरुद्ध कर अनगिनत टनल बनाने की योजना थी, ताकि वह तमाम पावर-प्रोजेक्ट बनाकर बेहिसाब बिजली बनाएं और अन्य राज्यों को बेचकर मोटा मुनाफा कमा सके ,भाजपा ने गंगा को बाजार बनाने की कोशिश कर असंख्यों भारतीतों की गंगा के प्रति आस्था एवम् विश्वास को आहत् किया।
अपने बयान में रावत ने कहा कि सिर्टुजिया जमीन घोटाले में भाजपा की योजना उस बीमार-फैक्ट्री को पुनर्जीवित करने की नहीं थी बल्कि बहुत बड़ी रकम वसूलकर भाजपा गंगा को 'लीज' पर देने जा रही थी। उसके मालिक को भाजपा ने गंगाजल को बोटल्स में भरकर बेचने का भरोसा दिलाया था, उसे अपना पेटेंट करने की सहूलियत् भी भाजपा प्रदान कर देती यदि इस मामले में अदालती हस्तक्षेप न होता।
हरदा ने कहा कि दोनों मामलों में उपाध्याय ने ही भाजपा सरकार से रोलबैक कराकर राज्य को एक बड़े भ्रष्टाचार से औरॉ गंगा केसम्मान की रक्षा की । रावत ने कहा कि भाजपा ने राज्य-गठन के पश्चात हुए दोनों कुम्भ में बड़े घोटाले किए गए। 2011 के कुंभ मेले की कैग की जांच में बड़े घोटाले का पर्दाफाश किया गया है। उपाध्याय ने जो अभिलेखीय-साक्ष्य मुझे दिखाये हैं वह इस बात की पुष्टि करते हैं, बिना-निर्माण कार्य किये,भाजपा ने करोड़ों रुपये हड़प लिये, जो कार्य स्वीकृत नहीं थे,उनके नाम भी भाजपा ने अमानत में भारी खयानत की है।
इसी प्रकार 2021 के कुंभ में 'कोविड-टेस्टिंग घोटाले में भाजपा और उसके नेताओं की भागीदारी साबित हुई है, भ्रष्टाचार का वह पैसा किसकी जेब में गया कांग्रेस सरकार इसकी भी जांच कराएगी। सीएम की भूमिका सिर्फ 'डिलीवरी ब्वाय' की थी या उन्हें भी ट्रांसपोरटेशन का कुछ मिला। रावत ने कहा कि 2011 के कुंभ-घोटाले का मामला अदालत तक गया था, अदालत ने उस पर संज्ञान भी लिया था लेकिन तकनीकी-त्रुटि के आधार पर मामला दबा दिया गया आज भी भाजपा के गंगा के नाम पर किये गये भ्रष्टाचार के ' कन्टेन्टस ' जिन्दा हैं। उत्तराखंड के अवाम को 14 फरवरी गंगा और गंगाजल की मार्केटिंग करने वालों को कड़ा सबक सिखाने की तारीख बना देना चाहिए।