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इंटरव्यू/अंशुल अविजित: परिवार मेरी ताकत है

पहली बार चुनाव लड़ रहे अभिजीत अंशुल आत्मविश्वास से लबरेज हैं। बावजूद इसके कि उनका मुकाबला भारतीय जनता...
इंटरव्यू/अंशुल अविजित: परिवार मेरी ताकत है

पहली बार चुनाव लड़ रहे अभिजीत अंशुल आत्मविश्वास से लबरेज हैं। बावजूद इसके कि उनका मुकाबला भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता, केंद्र में मंत्री रह चुके रविशंकर प्रसाद है। पटना साहेब भाजपा की परंपरागत सीट रही है। फिर भी उनका जोश कम नहीं है। वे बिहार की स्थानीय समस्याओं के साथ बेबाकी से बेरोजगारी की राष्ट्रीय समस्या पर भी खुल कर अपनी राय रखते हैं। आउटलुक के साथ उन्होंने अपनी उम्मीदवारी और तैयारी के बारे में बात की। पेश हैं अंश:

. अगर कांग्रेस आपको वाकई सांसद बनाना चाहती, तो कोई सेफ सीट देती, पटना साहेब जैसी कठिन सीट क्यों?

राजनीति में सेफ जैसा कुछ नहीं होता। पार्टी ने जो उचित समझा उसी पर निर्णय लिया। उम्मीदवार की ऊर्जा और विश्वास ही किसी पार्टी को जीत दिलाती है। रविशंकर यहां पूरी तरह विफल रहे हैं। वे कभी लोगों के दुख-दर्द में खड़े नहीं हुए। हमेशा दूर रहे। लोगों से रिश्ता कायम नहीं किया। उन के प्रति यहां बहुत आक्रोश है।

. लेकिन उनके लिए प्रचार करने यहां मोदी आए। मोदी फैक्टर को कैसे देखते हैं?

आप इसे ऐसे देखिए, मोदी पर कितना दबाव रहा होगा इस सीट पर। मतलब लग रहा है न पार्टी को कि उनके सांसद परेशानी में है। अब उनकी विदाई तय है। तभी तो प्रधानमंत्री को उनके लिए उतरना पड़ा। रवि शंकर प्रसाद ने कभी नहीं सोचा कि यहां की समस्याएं क्या है। अभी तक डबल इंजिन की सरकार कहते रहे हैं। लेकिन अब पार्टी के दिग्गज नेता उनके पक्ष में यहां आ रहे हैं। आना भी चाहिए। चुनाव है, तो सभी आते हैं। मैं कहता हूं, आइए सभी आइए। यहां आकर देखिए कि अब तक यहां डबल इंजिन सरकार ने कुछ नहीं किया है।

. राहुल गांधी ने भी तो यहां रैली की। इससे आपको कितना बल मिला?

गठबंधन में हम सभी एक साथ दिख रहे हैं। यहां जब रैली हुई, तो मंच पर गठबंधन के सभी बड़े नेता मौजूद थे। तेजस्वी भी हमारे साथ थे। हम ताकत का घमंड दिखाने नहीं एकजुटता के लिए इकट्ठा होते हैं। भाजपा आवाम को कुछ नहीं मानती। राहुल गांधी युवा और उत्साह से लबरेज हैं। उनके साथ सभी लोग फौरन जुड़ जाते हैं। जाहिर सी बात है, उनका यह उत्साह और हमारा साथ होना ही मेरी ताकत है। यही मेरा बल भी है।

. आजकल एक शब्द राजनीति के पूरे परिदृश्य पर छाया है, ‘परिवारवाद।’ आपकी दादी सुमित्रा देवी जी बिहार की पहली महिला मंत्री थी, आपके नाना पूर्व रक्षा मंत्री बाबू जगजीवन राम रहे। आपकी मां मीरा कुमार हैं। आप परिवारवाद का दबाव महसूस करते हैं?

दबाव क्यों? यह तो मेरी तकत है। परिवार हर व्यक्ति की ताकत होता है। राजनीति ने ही इस शब्द की चमक को फीका कर दिया है। अगर परिवार का कोई सदस्य नामी रहा है, तो यह मुल्क की साझा विरासत है। सन 71 की फतह के वक्त बाबू जगजीवन राम रक्षा मंत्री थे। ये जीत पूरे देश की जीत थी, अकेले उनकी नहीं। उन्होंने हमेशा जनकल्याण और जनसेवा को ही सब कुछ माना। वे हमेशा लोगों के बीच रहे। मुझे जब भी ताकत की जरूरत होती है, मैं उन्हीं से लेता हूं। उनका काम सभी के लिए गर्व का विषय है, सिर्फ मेरे लिए नहीं। मैं आज भी उनकी जीवनी को ऊर्जा का स्रोत मानता हूं।

. मीरा जी से क्या कुछ टिप्स मिलती हैं?

उनका साथ ही मेरा संबल है। वह इतनी स्नेही हैं कि सभी का ध्यान रखती हैं। उनका आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ रहता है।

. राजनीति की राह खुद चुनी?

यहां तक आने की राह लंबी थी। मैंने पत्रकारिता की, शिक्षा जगत में रहा। सामाजिक क्षेत्र में काम किया। शुरू से ही लगता था कि इस क्षेत्र में काम करना है। यहां से आप मुल्क की हकीकत देख सकते हैं। दिक्कतों को करीब से समझ सकते हैं। जो समझ सकता है, वही उसका समाधान भी निकाल सकता है।

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