उसमें भी सारे के सारे मुस्लिम विधायक विपक्ष में बैठेंगे क्योंकि भाजपा और उसके सहयोगियों ने किसी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट ही नहीं दिया था जिसके कारण सत्ता पक्ष में एक भी मुस्लिम विधायक नहीं है।
दूसरी ओर जो 23 मुस्लिम उम्मीदवार जीते भी हैं उनमें से 19 समाजवादी पार्टी (18) और कांग्रेस (1) गठबंधन और चार बहुजन समाज पार्टी के सदस्य हैं। सपा-कांग्रेस गठजोड़ के 54 विधायक जीते हैं जिनमें से ठीक एक तिहाई मुस्लिम हैं। हालांकि टिकट बंटवारे में इस गठबंधन ने एक चौथाई मुस्लिम उम्मीदवार भी नहीं उतारे थे मगर उनके मुस्लिम उम्मीदवारों की सफलता की दर हिंदू समुदाय के उम्मीदवारों के मुकाबले कहीं अधिक रही है। सपा ने सिर्फ 64 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था जबकि पार्टी 298 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। शेष सीटें उसने कांग्रेस के लिए छोड़ी थी। इस लिहाज से देखें तो सपा के मुस्लिम उम्मीदवारों में एक चौथाई ने जीत हासिल की है।
दूसरी ओर बहुजन समाज पार्टी ने करीब 100 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था जबकि उसके सिर्फ 4 मुस्लिम विधायक जीते। यानी सिर्फ चार फीसदी। इसमें भी एक विधायक मऊ से जीते मुख्तार अंसारी हैं जो बसपा के नहीं बल्कि अपने नाम पर जीते हो सकते हैं। ऐसे में इन नतीजों का एक विश्लेषण यह भी निकाला जा सकता है कि राज्य के मुस्लिम समाज ने बसपा के मुकाबले सपा पर ज्यादा भरोसा किया। कांग्रेस का सिर्फ एक मुस्लिम उम्मीदवार जीत हासिल करने में कामयाब रहा है।