पंजाब की फिरोजपुर लोकसभा सीट बचाए रखना शिरोमणि अकाली दल के लिए प्रतिष्ठा की बात बन गई है जहां से पार्टी अध्यक्ष सुखबीर बादल स्वयं मैदान में हैं और इस संसदीय क्षेत्र में उनका मुकाबला उनके पूर्व सहयोगी और मौजूदा सांसद शेर सिंह घुबाया से है जो कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। इस संसदीय सीट पर जातीय समीकरण हमेशा से ही हावी रहे हैं।
जातीय समीकरण हावी
इस क्षेत्र में ‘राय सिखों' की बहुलता है। इसके बाद नंबर आता है हिंदू, कुम्हार, जट्ट सिखों तथा कंबोज समुदाय का। यह सीट या तो जट्ट सिखों के पास रही है या राय सिख उम्मीदवारों के पास। इसमें कांग्रेस के दिवंगत नेता बलराम जाखड़ एक अपवाद हैं जिन्होंने 1980 में यह सीट जीती थी। फिरोजपुर को अकाली दल का गढ़ कहा जाता है क्योंकि 1998 से पार्टी यहां से लगातार जीतती आ रही है। पार्टी नेता जोरा सिख मान जो 'जट्ट सिख' थे 1998, 1999 और 2004 में इस सीट से जीते थे । इसके बाद 2009 में अकाली दल ने यहां से जाति का कार्ड खेलते हुए 'राय सिख' घुबाया को चुनाव मैदान में उतारा। शिअद का दांव चल गया और घुबाया ने यहां से दिग्गज कांग्रेस नेता जगमीत सिंह बरार को हरा दिया। 5 साल बाद 2014 में घुबाया ने इसी सीट से कांग्रेस के एक और नेता सुनील जाखड़ को 31,420 मतों से हराया।
सुखबीर बनाम घुबाया
लंबे समय तक शिअद का साथ देने के बाद घुबाया पिछले माह कांग्रेस में शमिल हो गए और उन्हें लोकसभा चुनाव का टिकट भी मिल गया। घुबाया को टिकट मिलने से कांग्रेस के काफी लोग नाराज हैं और उन्होंने घुबाया को सहयोग देने तक से इनकार कर दिया लेकिन घुबाया को अपने वोटबैंक पर पूरा भरोसा है। इस पूरे घटनाक्रम के बाद अकाली दल ने फिरोजपुर सीट से सुखबीर बादल को उतारने का निर्णय किया। सुखबीर जलालाबाद से विधायक हैं। घुबाया के पार्टी छोड़ने से नाराज शिअद प्रमुख ने कांग्रेस उम्मीदवारी को गद्दार तक कह ड़ाला। सुखबीर इस चुनाव में विकास के नाम पर वोट मांग रहे है। वहीं घुबाया सुखबीर के साथ अपनी इस चुनावी जंग को 'सरमाएदार' और ‘गरीब' के बीच का संघर्ष बता रहे हैं। फिरोजपुर सीट पर 19 मई को मतदान होना है।