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जनादेश ’24/मध्य प्रदेश: जोर दोनों तरफ बराबर

दो पूर्व मुख्यमंत्री और एक केंद्रीय मंत्री के लिए चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल, लेकिन मतदाताओं की उदसीनता...
जनादेश ’24/मध्य प्रदेश: जोर दोनों तरफ बराबर

दो पूर्व मुख्यमंत्री और एक केंद्रीय मंत्री के लिए चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल, लेकिन मतदाताओं की उदसीनता बनी चुनौती
 

राज्‍य में चौथे और अंतिम चरण का मतदान होना है, मगर 7 मई को तीसरे चरण का मतदान कई मायने में सबसे अहम हो गया। कयास है कि 7 मई के चरण में जो पार्टी सबसे ज्यादा सीटें पाने में कामयाब रहेगी, केंद्र में उसी का दबदबा रहेगा। वजह कई गिनाई जा रही हैं। एक, तीसरे चरण के मतदान में प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्री और एक केंद्रीय मंत्री के भाग्य का फैसला मतपेटियों में कैद हो चुका है। दूसरे, ये तीनों नेता उन सीटों से भाग्य अजमा रहे हैं, जिन सीटों का वे लंबे समय तक प्रतिनििधत्व कर चुके हैं। ये उनकी पारंपरिक सीटें मानी जाती रही हैं। तीसरा और सबसे अहम इनमें से दो राष्ट्रीय कद के नेता अपना पिछला लोकसभा चुनाव हार चुके हैं।

इस बार के चुनावी चक्र में अपने भाग्य का फैसला आजमाने वाले दो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, दिग्विजय सिंह और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं। चौहान फिलहाल बुधनी विधानसभा सीट से विधायक और विदिशा संसदीय सीट से भाजपा के उम्मीदवार हैं।

विदिशा लोकसभा सीट देश की हाई प्रोफाइल सीटों में से एक है। 1967 में स्थापना के साथ ही विदिशा भगवा का गढ़ रहा है। भाजपा इसे देशभर की सबसे सुरक्षित सीटों में मानती आ रही है। यही कारण है कि इस सीट से भाजपा के कई दिग्गज नेताओं ने चुनाव लड़कर न सिर्फ बड़ी जीत हासिल की, बल्कि देश की सत्ता के शिखर तक भी पहुंचे। यहां से रामनाथ गोयनका, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज सांसद रह चुके हैं। खुद पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यहां से पांच बार सांसद रह चुके हैं।

शिवराज सिंह चौहान को उम्मीद है कि प्रदेश की लाड़लियों और भांजियों की दुआएं उन्हें 19 सालों बाद फिर चुनावी रण में विजयी बनाएगी।  वहीं, इस सीट पर कांग्रेस पार्टी महज सिर्फ दो बार ही अपना कब्जा जमाने में सफल हो पाई है। कांग्रेस ने विदिशा से 2 बार सांसद रहे प्रताप भानु शर्मा को मैदान में उतारा है।

चौंकाने वाली बात यह है कि शिवराज सिंह चौहान और प्रताप भानु शर्मा दोनों 33 सालों बाद चुनावी मैदान में आपने-सामने हैं। इस बार चौहान लाडली बहना और मोदी की गारंटी के सहारे चुनावी रण जीतने की तैयारी में हैं। 19 अप्रैल को नामांकन फॉर्म भरने के बाद, चौहान पिछले 13 दिन में सिर्फ तीन दिन अपने संसदीय क्षेत्र से बाहर रहे। चौहान रोजाना 50-55 गांवों का दौरा कर रहे हैं। उनका प्रचार सुबह 9 से रात 10 बजे तक चलता है। चौहान के समर्थक विदिशा लोकसभा संसदीय सीट में ‘आंधी नहीं तूफान है शिवराज सिंह चौहान है’ जैसे नारों के साथ उनका प्रचार करने में लगे हुए हैं। वहीं प्रताप भानु शर्मा राहुल गांधी और कांग्रेस की गारंटी के सहारे लोगों से उन पर भरोसा करने की गुहार लगा रहे हैं।

प्रताप भानु शर्मा कहते हैं कि विदिशा में बेरोजगारी इतनी बढ़ गई है कि रोज आठ से 10 हजार लोग विदिशा से भोपाल और आसपास के शहरों में नौकरी की तलाश में निकल रहे हैं।

विदिशा के अलावा राज्य में दूसरी लोकसभा हाई प्रोफाइल सीट राजगढ़ हो गई है। ऐसा इसलिए कि 33 सालों बाद पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इस सीट से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। सिंह ने 2019 का लोकसभा चुनाव मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में लड़ा था। लेकिन उस बार वे भारतीय जनता पार्टी फायर ब्रांड उम्मीदवार प्रज्ञा ठाकुर से 3.64 लाख वोटों के भारी अंतर से हार गए थे। प्रज्ञा को मालेगांव बम विस्फोट में झूठा फंसाए जाने के प्रचार के बाद वहां की जनता ने भारी समर्थन दिया था। इस बार दिग्विजय सिंह का मुकाबला यहां के मौजूदा भाजपा सांसद रोडमल नागर से है। अपनी चुनावी सभाओं में दिग्विजय भाजपा पर हल्ला बोलते हुए राजगढ़ के पिछड़ेपन के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराने के अलावा वे कहते हैं कि उनका मुकाबला रोडमल नागर से नहीं बल्कि  भगवान राम से है। सभाओं में वे अपना मुकाबला ईवीएम के साथ होने की बात भी करते हैं। वे लोगों से कहते हैं कि उन्हें इतने वोट दिए जाएं कि ईवीएम भी हारे और भाजपा भी।

ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह

ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह

वहीं, वर्तमान सांसद रोडमल नागर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी गारंटी की बात करते हुए लोगों से भाजपा के पक्ष में वोट मांगने का काम कर रहे हैं।

राजगढ़ से सटी गुना लोकसभा सीट की भी कम चर्चा नहीं है। यह सीट कांग्रेस और भाजपा के बीच बड़ी राजनीतिक लड़ाई का केंद्र रही है। पीढ़ियों से सिंधिया परिवार का गुना की राजनीति पर गरह प्रभाव रहा है। विजया राजे सिंधिया के छह कार्यकाल से लेकर उनके बेटे, माधवराव सिंधिया और उसके बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया तक, यह सीट लगभग सिंधिया परिवार की विरासत सी बन गई है। इतनी पक्की जमीन होने के बाद भी 2019 की मोदी लहर में ज्योतिरादित्य सिंधिया को यहां से हार का सामना करना पड़ा था। उस वक्त सिंधिया राजपरिवार के बाहरी व्यक्ति डॉ. के पी यादव ने तब भाजपा की छत्रछाया में जीत का सेहरा बांधा था। 2019 की हार का सिंधिया पर गहरा प्रभाव पड़ा था। क्योंकि यह गुना के लोगों के सिंधिया परिवार के प्रति लंबे समय से चले आ रहे समर्थन से दूर होने का प्रतीक थी। इसके बाद  2020 के एक घटनाक्रम में सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ कर भाजपा का दामन थाम लिया था। एक बार फिर सिंधिया अपने परिवार की सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। बस इस बार फर्क यह है कि वे हाथ के पंजे के बजाय कमल के निशान का बटन दबाने की अपील कर रहे हैं। सिंधिया के मुकाबले में कांग्रेस ने राव यादवेंद्र सिंह यादव को मैदान में उतारा है। यादवेंद्र सिंह के लिए यह चुनाव इतना आसान नहीं होगा। इस बार उन्हें गुना में चल रही मोदी लहर और सिंधिया फैक्टर की दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। यही वजह है कि उनके लिए यह चुनाव कड़ी परीक्षा की घड़ी होगा।

कुल मिलाकर, प्रदेश में तीसरे चरण का मतदान तमाम चुनावी मुद्दे, कयास और परिणाम संदर्भों की भूमि में फिट बैठा हुआ दिखाई दे रहा है। प्रत्याशियों की तैयारी या जोश में कहीं कोई कमी दिखाई नहीं दे रही है। लेकिन दोनों ही पार्टियों की पेशानी पर  मतदान के गिरते प्रतिशत ने बल ला दिया है। दोनों ही पार्टियों के लिए ही चिंता का विषय है। पहले चरण की 6 सीटों पर 2019 के मुकाबले 7.5% और दूसरे फेज की 6 सीटों पर 8.6% मतदान कम हुआ है।

वैसे भाजपा ने इस बार हर बूथ पर 370 वोट बढ़ाने और सभी 29 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है। जिस तरह से दोनों चरणों में मतदान कम हुआ है, उसे देखकर लगता नहीं है कि हर बूथ पर 370 वोट बढ़ाने का लक्ष्य पूरा हुआ होगा। जो भी हो, अगर ऐसे ही मतदान कम होता रहा, तो परिणाम चौंकाने वाले भी आ सकते हैं। गिरते मतदान पर राज्य से लेकर केंद्रीय स्तर पर चर्चा शुरू हो गई है। आने वाले आखिरी चरण में मतदान कैसे ज्यादा से ज्यादा हो इस पर कार्ययोजना बनाकर काम शुरू किया गया है। 

मतदान के गिरते प्रतिशत पर दोनों ही दलों का कुछ अलग ही सोचना है। मध्य प्रदेश भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल का कहना है कि विपक्षी पार्टियों के खाते में मत कम जा रहे हैं। क्योंकि उनके कार्यकर्ताओं में हताशा और निराशा है। वहीं, कांग्रेस का कहना है कि मतदान प्रतिशत के कम होने का मतलब साफ है कि मोदी जी का जादू कम हो रहा है। कांग्रेस के मध्‍य प्रदेश मीडिया विभाग के प्रमुख मुकेश नायक कहते हैं, ‘‘इससे उस दावे की भी पोल खुल रही है, जिसमें मोदी जी को ग्लोबल लीडर और 400 पार की बात कही जा रही थी।’’

जो भी हो, जानने और समझने वाली बात तो यह है कि गिरता हुआ मतदान प्रतिशत परिणाम को पूरी तरह बदल सकता है। हो सकता है यह कई उम्मीदवारों की कल्पना पर पानी फेर दे और कुछ को चौंकाने वाले नतीजे दे जाए।

 

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