भाजपा के लिए भारी पड़ी झारखंड में रघुवर दास के काम करने के तरीके पर कथित असंतोष और सरकार चलाने में लालू प्रसाद की नकल करने के कारण भाजपा झारखंड विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा।
रघुवर दास पहले गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बने जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। 2000 में राज्य के गठन के बाद अभी तक आठ मुख्यमंत्री बने हैं। ऐसे में 2014 से 2019 तक पांच साल का पूरा करना उनकी बड़ी उपलब्धि है।
सभी नेताओं को दरकिनार कर दिया
राज्य की कमान संभालने के बाद उन्होंने राज्य स्तर के सभी नेताओं को दरकिनार कर दिया। उन्होंने सबसे पहले भाजपा के आदिवासी चेहरा अर्जुन मुंडा को किनारे कर दिया। मौजूदा विधानसभा चुनाव में उन्होंने मुंडा के किसी भी समर्थक को टिकट देने से भी इन्कार कर दिया। कम से कम 11 मौजूदा विधायकों को टिकट नहीं दिया गया। ये सभी विधायक या तो मुंडा के करीबी थे या फिर उनके रिश्ते दास के साथ ठीक नहीं थे।
आजसू को भी साथ नहीं कर पाए
अपनी पार्टी के नेताओं को किनारे करने के अलावा भाजपा के सहयोगी दल ऑल इंडिया स्टूडेंट्स यूनियंस (आजसू) के अध्यक्ष सुदेश महतो को दरकिनार करने के लिए भी रघुवर दास ही जिम्मेदार हैं। रघुवर दास सरकार के पांच साल के कार्यकाल के दौरान सुदेश महतो ने सरकार का हिस्सा होने के बावजूद विपक्ष की भूमिका निभाई।
इस वजह से गठबंधन नहीं हो पाया
पार्टी के भीतर और बाहर उनके आलोचना ने कहा कि इस चुनाव में भाजपा-आजसू का गठबंधन सिर्फ दास के अहंकार की वजह से नहीं हो पाया। आजसू के सूत्रों ने कहा कि पार्टी चुनाव के लिए साझा एजेंडा चाहती थी। वह गठबंधन में बड़ी भूमिका के अलावा मुख्यमंत्री पद के लिए नया चेहरा चाहती थी। लेकिन भाजपा ने आजसू की शर्तें नहीं मानीं। आजसू इस बात से नाखुश थी कि भूमि कानून में संशोधन और डोमिसाइल कानून लाने से पहले सरकार ने उसे विश्वास में नहीं है।
क्यों खुश नहीं थे आदिवासी
दो कानून छोटा नागपुर टीनेंसी एक्ट और संथाल परगना एक्ट में संशोधन करने के दास सरकार के फैसलों का राज्य के आदिवासियों ने जमकर विरोध किया। जब तमाम संगठनों ने रांची में विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई तो कथित तौर पर सीएम ने बल प्रयोग करके आंदोलन को दबा दिया।
अनायास झल्लाने से मामला बिगड़ा
सूत्रों का कहना है कि दास की कार्यशैली ने सरकारी अधिकारियों का भी मनोबल तोड़ा। वह अधिकारियों, पार्टी कार्यकर्ताओं और यहां तक मीडिया कर्मियों पर भी झल्ला पड़ते थे। उनके कई जनसंवाद कार्यक्रम इसी तरह की घटनाओं के कारण चर्चाओं में रहे।
लालू की नकल करने का प्रयास
उनके आलोचक कहते हैं कि दास ने अधिकारियों से व्यवहार में राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की नकल करने का प्रयास किया। लोगों की समस्याएं तो दूर हुई नहीं, अधिकारियों को भी शर्मिंदा होना पड़ा। भाजपा के एक नेता ने कहा कि गुस्सैल रवैये के अलावा कार्यकर्ताओं पर उनकी टिप्पणियों से पार्टी में भी असंतोष बढ़ गया। उन्होंने पार्टी के भरोसेमंद कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर दिया जिससे उनके सलाहकार मनमाने तरीके से काम करने लगे। पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं को कभी भी ठीक से सुना नहीं गया। हमें दास से मिलने के लिए कभी समय नहीं मिला।
अपने भी खिलाफ हो गए
कैबिनेट मंत्री सरयू राय के साथ भी उनके अच्छे रिश्ते नहीं रहे। राय ने संसदीय मामलों का मंत्रालय छोड़ दिया और सभी को बता दिया वह सदन के भीतर भी दास के साथ नहीं बैठेंगे। जब राय की टिकट रोकी गई तो उन्होंने बगावत कर दी और मुख्यमंत्री के खिलाफ खड़े हो गए।