उच्च न्यायालय की दो सदस्यीय खंडपीठ ने केंद्र और फिलहाल केंद्र के शासन के तहत आ गए उत्तराखंड को राहत दी है। दरअसल, एकल न्यायाधीश यूसी ध्यानी ने सदन में कल (बृहस्पतिवार को) शक्ति परीक्षण कराने का आदेश दिया था, जिसे चुनौती दी गई थी। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली दो न्यायाधीशों की खंडपीठ ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने को निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत की एक याचिका में चुनौती दिए जाने के मामले की अंतिम रूप से सुनवाई छह अप्रैल के लिए निर्धारित की है। न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की सदस्यता वाली पीठ ने एक संक्षिप्त आदेश में कहा, रिट याचिका का अंतिम रूप से निपटारा किए जाने के लिए सभी पक्षों की सहमति के मद्देनजर इसे 6 अप्रैल के लिए निर्धारित किया जाता है। हम निर्देश देते हैं कि इन अपीलों में चुनौती दिए गए आदेश को सात अप्रैल तक के लिए निलंबित अवस्था में रखा जाए।
अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने केंद्र की ओर से पेश होते हुए कल के आदेश का सख्त विरोध किया और कहा कि अदालतें राष्ट्रपति शासन की घोषणा में दखलंदाजी नहीं कर सकती। इसके बाद खंडपीठ का यह आदेश आया। रोहतगी ने कहा, जब राष्ट्रपति शासन लागू है और विधानसभा निलंबित अवस्था में तब सदन में शक्ति परीक्षण कैसे हो सकता है। उन्होंने हैरानगी जताई कि यदि एकल न्यायाधीश के आदेश को लागू किया जाता है तो दो सरकारें एक साथ कैसे रह सकती हैं। रोहतगी ने दलील दी कि राष्ट्रपति शासन लगाए जाने पर केंद्र को अपना रुख स्पष्ट करने के लिए एक मौका दिया जाना चाहिए।
पीठ ने इस बात का जिक्र किया कि अटार्नी जनरल और रावत की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी इस बात पर राजी हुए हैं कि रिट याचिका का अंतिम रूप से निपटारा हो सकता है। अटार्नी जनरल ने कहा कि केंद्र से शासित उत्तराखंड के साथ केंद्र का जवाबी हलफनामा चार अप्रैल तक दाखिल किया जाएगा। अदालत ने याचिकाकर्ता रावत को इस जवाबी हलफनामे पर जवाब वाला एक हलफनामा दाखिल करने के लिए इसके आगे 24 घंटे का वक्त दिया।
निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत ने राज्य में 27 मार्च को लगे राष्ट्रपति शासन को उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश यूसी ध्यानी के समक्ष चुनौती दी थी, जिस पर एकल न्यायाधीश ने 31 मार्च को सदन में शक्ति परीक्षण कराए जाने का आदेश दिया था। साथ ही उन्होंने कांग्रेस के अयोग्य ठहराए गए नौ बागी विधायकों को भी मतदान में हिस्सा लेने की इजाजत दे दी थी। न्यायमूर्ति ध्यानी ने सदन में शक्ति परीक्षण कराए जाने का कल आदेश देते हुए कहा था कि केंद्र द्वारा अनुच्छेद 356 को लागू किया जाना शक्ति का ऐसा प्रयोग है जिसका प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दुरूपयोग नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा था कि लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सदन को इस तरह से नष्ट नहीं किया जाना चाहिए। सदन में शक्ति परीक्षण ही बहुमत साबित करने के लिए एकमात्र जांच है।
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रही टीम में शामिल अधिवक्ता नलिन कोहली ने कहा कि केंद्र अपना जवाब खंडपीठ के समक्ष चार अप्रैल को दाखिल करेगा। वहीं, दूसरा पक्ष अपना जवाब इसके अगले दिन दाखिल करेगा। इस बीच, न्यायमूर्ति ध्यानी ने कांग्रेस के बागी विधायकों की एक याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी। राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के बाद स्पीकर गोविंद सिंह कुंजवाल द्वारा उन्हें अयोग्य ठहराए जाने को उन्होंने याचिका के जरिये चुनौती दी थी। न्यायाधीश ने उनकी अपील पर सुनवाई एक अप्रैल के लिए तय करते हुए कहा कि कल उनके द्वारा जारी किए गए अंतरिम आदेश के मुताबिक उनके अयोग्य रहने के बावजूद उन्हें सदन में शक्ति परीक्षण के दौरान मतदान करने की इजाजत देकर राहत दी जा चुकी है।