अच्युतानंदन भले ही चुनाव जीत गए हों मगर अब पार्टी में उनकी वह हैसियत नहीं रह गई है जो दस वर्ष पहले थी। 2006 में उन्होंने 83 वर्ष की उम्र में रिटायरमेंट से लौटकर चुनावों में पार्टी का नेतृत्व किया था और उसे शानदार जीत दिलाई थी। तब भी विजयन मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे मगर अच्युतानंदन के समर्थक विधायकों की संख्या अधिक होने के कारण तब उन्हें मन मसोस कर रह जाना पड़ा था और अच्युतानंदन सीएम बने थे। इस बार भी अच्युतानंदन लगातार पांच साल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे मगर चुनाव से पहले विजयन खेमा उन्हें किनारे लगाने में जुटा रहा और बताया जा रहा है कि इस बार जीते विधायकों में विजयन के समर्थक अधिक हैं इसलिए पार्टी ने उन्हें सत्ता सौंपने का फैसला किया है।
वैसे भी अच्युतानंदन की उम्र 93 वर्ष हो चुकी है। चुनाव से पहले राज्य माकपा में सत्ता संघर्ष होता रहा और इसके कारण चुनाव में नुकसान न हो यह सुनिश्चित करने के लिए पार्टी महासचिव सीताराम येचुरी ने विजयन और अच्युतानंदन दोनों को चुनाव लड़ने का निर्देश दिया था। इसके कारण उस समय नेतृत्व को लेकर झगड़ा थम गया गया था। वैसे पार्टी सूत्र बताते हैं कि टिकट बंटवारे में पूरी तरह विजयन की ही चली।इसलिए अच्युतानंदन इस बार दबाव की राजनीति करने की स्थिति में नहीं है। चुनाव से पहले ही पार्टी का एक खेमा इस बात को लेकर आश्वस्त था कि जीत की स्थिति में विजयन ही राज्य के अगले मुख्यमंत्री होंगे।