बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव की कड़ी टक्कर के बाद आखिरकार नीतीश कुमार एक बार फिर वापसी करने में कामयाब हो गए। बिहार में एक बार फिर सत्तारूढ़ गठबंधन यानि की एनडीए को 243 सीटों में से 125 सीटों पर परचम लहराते हुए जीत मिली। जबकि 110 सीटों के साथ महागठबंधन को हार का सामना करना पड़ा। आखिर क्या वजह है कि इस करीबी मुकाबले में महागठबंधन नीतीश कुमार को कुर्सी से उतारने में नाकाम रहा। चुनाव में 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव से कहाँ चूक हुई जिसका लाभ एनडीए को मिला। हम यहां आपको वो पांच कारण बता रहे हैं जिसकी वजह से महागठबंधन 122 के जादुई आंकड़े तक नहीं पहुंच पाया।
कांग्रेस को 70 सीटें
बिहार में इस बार कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़ी। इतनी सीटों पर लड़ने के बाद भी वह सिर्फ 19 सीटों पर ही कब्जा जमा पाई। जबकि वाम दलों ने कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन किया है भाकपा माले ने 12 सीटों पर जीत हासिल की है। बता दें कि आरजेडी, कांग्रेस और वामपंथी दलों के महागठबंधन सीट शेयरिंग फॉर्मूले पर शुरुआत से ही सवाल उठते रहे। आखिर कुल 243 सीटों में से 70 सीटें महागठबंधन के सबसे कमजोर घटक दल को क्यों दी गईं?
ओवैसी रहे गेमचेंजर
सामान्यतः बिहार में मुस्लिम मतदाताओं का रुझान आरजेडी की ओर रहता आया है लेकिन इस बार इस वोट बैंक में बड़ी सेंध लगी है। और यह सेंध असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने लगाई है। बिहार के सीमांचल इलाक़े में 24 सीटे हैं जिनमें से आधी से अधिक सीटों पर मुसलमानों की आबादी आधी से ज़्यादा है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम इनमें से पांच सीटों जीत हासिल की है। जिसका सीधा नुकसान महागठबंधन को हुआ है।
एलजेपी ने पहुंचाया नुकसान
पूरे चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी ने जहां जेडीयू को सीधे नुकसान पहुंचाया है वहीं आरजेडी के वोटों पर भी इसका असर पड़ा है। खासकर उन सीटों में जहां महागठबंधन और एनडीए में जीत का अंतर बेहद कम है।
जातिगत समीकरण
इस बार राष्ट्रीय जनता दल अपने परंपरागत एमवाय (मुस्लिम और यादव) वोटबैंक के अलावा दूसरी जातियों के वोट बंटोरने पर भी ध्यान दे रहा था। मगर उनका जोर वोट में बदलने में नाकाम रहा। जिसका सीधा खामियाजा महागठबंधन के प्रदर्शन पर पड़ा।
कम अंतर वाली सीटों पर ध्यान
नतीजों में 8 सीटें ऐसी रही जहां जीत का अंतर 1 हजार वोट से भी कम रहा। बरबीघा की सीट पर जेडीयू के उम्मीदवार सुदर्शन कुमार ने कांग्रेस के गजानन शाही को महज 113 वोट से हराया। भोरे सीट पर भी उम्मीदवारों के बीच जीत-हार का अंतर केवल 462 वोट का रहा। बीजेपी के सत्य नारायण सिंह ने आरजेडी के उम्मीदवार को डेहरी सीट पर सिर्फ 464 वोट के अंतर से हराया। इनके अलावा बखरी की सीट पर जीत हार का अंतर 717 रहा, जबकि रामगढ़ में सिर्फ 189 वोट से उम्मीदवार की जीत तय हुई। कुढ़नी विधानसभा सीट पर 712 वोट के अंतर से जीत तय हुई। वहीं मटिहानी में 313 और चकई में 581 वोट के अंतर से विजेता का फैसला हुआ। यहां तक कि सबसे कम वोट वाली जीत हिसला विधानसभा क्षेत्र में देखने को मिली, जहां जेडीयू के उम्मीदवार कृष्ण मुरारी ने आरजेडी के शक्ति सिंह को सिर्फ 12 वोट से मात दी। इस सीट पर विजेता को लेकर आरजेडी का विरोध भी देखने को मिला। इनके अलावा बछवाड़ा की सीट पर जीत और हार का अंतर 699 रहा, जबकि परबत्ता की सीट पर महज 951 वोट के अंतर से विजेता का निर्णय हुआ। अगर इन सीटो पर पार्टी थोड़ा और ध्यान देती तो नतीजे अलग होते।