उत्तराखंड के बाद अब क्या मिशन कर्नाटक होगा ? यह ऐसा सवाल है जो भाजपा कार्यालय में तैर रहा है। उत्तरखंड में कांग्रेस सरकार के खिलाफ बगावत पर उतारे गए कांग्रेसी विधायक भाजपा के कांग्रेस मुक्त भारत के राष्ट्रीय अभियान का हिस्सा थे। इसकी सीधी कमान भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और उनके विश्वसनीय भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने संभाल रखी थी।
पिछले एक साल से इस पर काम चल रहा था। बताया जाता है कि कांग्रेस नेतृत्व से बेतरह नाखुश विजय बहुगुणा तकरीबन एक साल पहले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मिले थे। उस समय उन्होंने दावा किया था कि उनके पास 15 विधायक हैं और उनका लक्ष्य हरीश रावत की सरकार को गिराना है। उस समय उन्होंने इस समर्थन के बदले में राज्यसभा सीट की मांग रखी थी। उस समय मामला जमा नहीं। इस आक्रोश को दबाने के लिए हरीश रावत ने इन 15 विधायकों में से कई को कुछ पदों पर एडजस्ट कर दिया। लेकिन विजय बहुगुणा अपने मिशन पर लगे रहे।
इस बार उन्होंने 9 विधायकों को साथ लिया और रणनीति बेहद चुपचाप बना। पहले भाजपा की कोशिश थी कि बजट सत्र में ही डिवीजन मांग करके सरकार को सदन में गिराने की रणनीति बनाई थी। ये सारी तैयारी कैलाश विजयवर्गीय ने खुद अपने नेतृत्व में की थी। उन्होंने आउटलुक को बताया कि भाजपा अध्यक्ष के कहने से वह खुद देहरादून जाकर तमाम बागी विधायकों से अलग-अलग मिले। बजट के पास होते समय सरकार से बगावत करने की रणनीति लीक हो गई और हरीश रावत ने ध्वनिमत से बजट पारित करा लिया। चूंकि भाजपा पहले से तैयारी में थी, इसलिए उसने राज्यपाल से करकर विधानसभा अध्यक्ष से सारी कार्यवाई की वीडियोग्राफी करवाई गई। फिर जब बागी विधायकों को अंदर घेर लिया गया तो जिला प्रशासन और पुलिस पर दबाव बनाकर उन्हें सुरक्षित निकाला गया। इस प्रक्रिया में तीन घंटे बागी विधायक अंदर ही बंद रहे।
भाजपा नेतृत्व का दावा है कि वह कांग्रेस मुक्त भारत बनाने के लिए कटिबद्ध है। अरुणाचल के बाद उत्तराखंड और अब कर्नाटक में भी भाजपा का पलड़ा लगातार भारी होता जा रहा है। विधानसभा चुनाव में तो वहां भाजपा अपनी जीत पक्की ही मानकर चल रही है। उत्तराखंड में जिस तरह से कमान सीधे भाजपा अध्यक्ष और कैलाश विजयवर्गीय के पास रही, उससे साफ है कि इस तरह के ऑपरेशन में कोई भी कोताही मंजूर नहीं है।