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गडकरी के सियासी बयानों के तीर, पहले भी साधते रहे हैं निशाना

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी अपने बयानों को लेकर एक बार फिर सुर्खियों में बने हुए हैं। तीन राज्यों में...
गडकरी के सियासी बयानों के तीर, पहले भी साधते रहे हैं निशाना

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी अपने बयानों को लेकर एक बार फिर सुर्खियों में बने हुए हैं। तीन राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार के बाद उन्होंने इशारों-इशारों में पार्टी नेतृत्व को जिम्मेदारी लेने की बात कही। वहीं एक और बयान देते हुए उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू के भाषण उन्हें बहुत पसंद हैं। यह पहली बार नहीं है जब केन्द्रीय मंत्री ने ऐसी बयानबाजी की हो इससे पहले भी वे अपने ‘सियासी बोल’ से घमासान मचा चुके हैं।

आइए, नजर डालते हैं उनके विवादित बयानों पर-

-मुझे नेहरू के भाषण पसंद हैं

एक कार्यक्रम में नितिन गडकरी ने जवाहर लाल नेहरू के भाषणों की तारीफ की और खुद को उनके भाषणों का मुरीद बताया। केंद्रीय मंत्री ने कहा ''सिस्टम को सुधारने को दूसरे की तरफ उंगली क्यों करते हो, अपनी तरफ क्यों नहीं करते हो। जवाहर लाल नेहरू कहते थे कि इंडिया इज नॉट ए नेशन, इट इज ए पॉपुलेशन। इस देश का हर व्यक्ति देश के लिए प्रश्न है, समस्या है। उनके भाषण मुझे बहुत पसंद हैं। तो मैं इतना तो कर सकता हूं कि मैं देश के सामने समस्या नहीं बनूंगा।''

-हार का जिम्मेदार कौन?’

दिल्ली में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सालाना लेक्चर में गडकरी ने कहा, 'अगर मैं पार्टी का अध्यक्ष हूं और मेरे सांसद-विधायक अच्छा काम नहीं कर रहे हैं तो इसका जिम्मेदार कौन होगा? मैं।' उन्होंने कहा कि अगर विधायक या सांसद  हारे तो इसका जिम्मेदार कौन होगा?

-नेतृत्व में हार की जिम्मेदारी लेने की प्रवृत्ति होनी चाहिए

गडकरी ने पिछले दिनों कहा था, 'सफलता के कई पिता होते हैं, लेकिन असफलता अनाथ होती है। जहां सफलता है वहां श्रेय लेने वालों की होड़ लगी होती है, लेकिन हार में हर कोई एक दूसरे पर उंगली उठाने लगता है।'

केंद्रीय मंत्री ने कहा था कि कि नेतृत्व में हार की जिम्मेदारी लेने की प्रवृत्ति होनी चाहिए। उन्होंने कहा, 'संगठन के प्रति नेतृत्व की वफादारी तब तक साबित नहीं होगी, जब तक वह हार की जिम्मेदारी नहीं लेता।' भाजपा नेता के मुताबिक, राजनीति में किसी राज्य या लोकसभा चुनावों में हार के बाद हारा हुआ कैंडिडेट घबराने लगता है और शिकायत करने लगता है कि उसे पर्याप्त समर्थन नहीं मिला। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि एक नेता तभी हारता है जब या तो उसकी पार्टी कहीं चूक रही होती है या वह खुद लोगों का भरोसा जीतने में असफल होता है। गडकरी ने कहा कि हारे हुए प्रत्याशी को उनकी यही सलाह है है कि इसके लिए दूसरों को दोष नहीं देना चाहिए।

-लगता था सत्ता में नहीं आएंगे, इसलिए किए थे बड़े वादे

अक्टूबर में  गडकरी ने कहा था,  'हम इस बात से पूरी तरह आश्वस्त थे कि हम कभी सत्ता में नहीं आएंगे, इसलिए हमें बड़े-बड़े वादे करने की सलाह दी गई थी। अब जब हम सत्ता में हैं जनता हमें उन वादों के बारे में याद दिलाती है। हालांकि, अब हम इस पर हंस कर आगे बढ़ जाते हैं।'

हालांकि बाद में गडकरी ने कहा कि 'मेरे वादे को लेकर कभी किसी ने नहीं सवाल किया। महाराष्ट्र में चुनाव के समय मुंडे जी और देवेंद्र जी ने कहा कि टोल माफ कर दीजिए, ऐसा बोल दें। मैंने कहा ऐसा नहीं करना चाहिए, नुकसान होगा तो वे लोग बोले- अरे हमलोग सत्ता में कहां आने वाले हैं। यह मजाक था। उसमें किसी सरकार की बात नहीं थी, मोदी जी की बात नहीं थी। 15 लाख की बात नहीं थी। देवेंद्र जी ने बाद में टोल माफ भी किया।

-जब नौकरियां ही नहीं, तो आरक्षण का क्या फायदा

अगस्त में गडकरी महाराष्ट्र में आरक्षण के लिए मराठों के वर्तमान आंदोलन तथा अन्य समुदायों द्वारा इस तरह की मांग से जुड़े सवालों का जवाब दे रहे थे। इस दौरान वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, ‘‘मान लीजिए कि आरक्षण दे दिया जाता है। लेकिन नौकरियां नहीं हैं। क्योंकि बैंक में आईटी के कारण नौकरियां कम हुई हैं। सरकारी भर्ती रूकी हुई है। नौकरियां कहां हैं?’’  

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