Advertisement

मध्यप्रदेश में अनिल दवे की रणनीति से मिली थी भाजपा को सत्ता

अनिल माधव दवे, एक शौकिया पायलट, लेखक, पर्यावरणविद, नदी संरक्षणवादी, एक सांसद, पर्यावरण मंत्री और विभिन्न भूमिकाओं के लिए पहचाने जाते रहे हैं। संघ से ताल्लुक रखने वाले अनिल दवे को एक प्रखर प्रवक्ता के तौर पर जाना जाता था। पर्यावरणविद अनिल माधव दवे का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के बड़नगर गांव में 6 जुलाई 1956 को हुआ था।
मध्यप्रदेश में अनिल दवे की रणनीति से मिली थी भाजपा को सत्ता

अनिल माधव दवे की राजनितिक कुशलता 2003 में तब सामने आई जब कांग्रेस को मध्य प्रदेश में भारी हार का सामना करना पड़ा।अनिल माधव दवे ने जीत के लिए टीम और रणनीति बनाने का काम 2002 में शुरू कर दिया था। जब परिणाम आये तो पता चला की आरएसएस की भूमिका प्रमुख रही, क्योंकि इस विधानसभा चुनाव में उन आदिवासी जिलों से काँग्रेस का सफाया हो गया, जो दशकों से उसका गढ़ माना जाता था। अनिल माधव दवे ने तब इसका इसका श्रेय संघ परिवार के वनवासी आश्रम और सेवा भारती को दिया जो पिछले कई वर्षों से आदिवासी क्षेत्रों में सक्रिय हो चुकी थी। 

अनिल माधव दवे की एक दूसरी छवि भी है। अनिल माधव दवे कभी प्रमुख बनने या पद लेने को लेकर उत्साहित नहीं रहे।  इसका जवाब आसान है। केंद्र में पर्यावरण मंत्री वे 2016 में बने। उन्हें नदियों से इतना लगाव था, की वाजपेई को नदी जोड़ने का आइडिया देते वक्त उन्होंने उनके साथ दो घंटे बिता दिए थे। यही कारण था की उन्होंने नर्मदा नदी को लेकर मुहिम भी चलाई और भोपाल में अपने घर का नाम भी उन्होंने 'नदी का घर' रखा।

अनिल माधव दवे तो आज नहीं रहे पर नदी का घर लोगों के लिए एक संग्राहलय के रूप में हमेशा खुला रहेगा। कभी मुखर न होते हुए भी अनिल माधव दवे ने देश के कई गलियारों में ढोल पीट रही राजनैतिक पार्टियों को अपने पर्यावरण संरक्षण प्रेम से परदे के पीछे रहकर भी बता दिया कि कुर्सी पर बिना बैठे भी कैसे अपनी जिम्मेदारी निभा सकते है। 

 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad