उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ कुंभ में बुधवार को भाजपा द्वारा समरसता स्नान का आयोजन किया गया। इस आयोजन में भाग लेते हुए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने दलित संतों के साथ स्नान किया। मिली जानकारी के अनुसार इस आयोजन में दलित समुदाय के संतों के अलावा अलग-अलग मतों और संप्रदायों के कई साधू-संतों ने भी भाग लिया। भाजपा अध्यक्ष के साथ कई मतों और संप्रदायों के धार्मिक संतों ने पवित्र क्षिप्रा नदी में डुबकी लगाई। हालांकि पहले की घोषणा के तहत आज के आयोजन में केवल दलित संतों को शामिल होना था। लेकिन कार्यक्रम में अंतिम समय में बदलाव करते हुए अन्य पंथों और मतों के संतों को भी इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया। बताया जा रहा है कि ऐसा आरएसएस के एक वरिष्ठ नेता के आयोजन के स्वरुप पर आपत्ति जताने की वजह से किया गया। आरएसएस के खए वरिष्ठ नेता ने और कई संतों ने समरसता स्नान के पूर्व घोषित कार्यक्रम के स्वरूप पर आपत्ति जताई थी जिसके अनुसार भाजपा अध्यक्ष केवल दलित संतों के साथ स्नान करने वाले थे। कार्यक्रम में शामिल होने वाले अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी ने बताया, सामाजिक समरसता का आयोजन अच्छा रहा। इसमें अलग-अलग मतों के साधुओं के साथ नेताओं ने भी क्षिप्रा में डुबकी लगाई। गौरतलब है कि अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष ने पहले इस कार्यक्रम में केवल दलित संतों को शामिल करने का विरोध किया था और कहा था कि साधुओं की कोई जाति नहीं होती।
नरेंद्र गिरी से विरोध के बावजूद सामाजिक समरसता स्नान को समर्थन देने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, पहले जब समाचार आया था कि शाह केवल दलित संतों के साथ स्नान करेगें तो मैंने कहा था कि साधुओं में कोई दलित या स्वर्ण नहीं होता, लेकिन हाल ही में जब मुझे पता चला कि शाह सभी समुदायों और संप्रदायों के संतों के साथ स्नान करेगें तो हम इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए राजी हो गए। कार्यक्रम में जूना अखाड़े के प्रमुख अवधेशानंद भी शामिल हुए। जब उनसे पूछा गया कि शाह के साथ संतो की लगाई डुबकी धार्मिक थी या सियासी, तो उन्होंने इस सवाल का सीधा जवाब टालते हुए कहा कि नदी के पानी के निकट परमात्मा का वास होता है और जल पर सबका अधिकार होता है। सिंहस्थ के सदियों पुराने इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब किसी राजनीतिक पार्टी के प्रमुख ने संतों के साथ मंच साझा कर समाजिक समरसता स्नान का आयोजन किया। माना जा रहा है कि भाजपा ने इस कार्यक्रम में संतों के साथ डुबकी लगाई तो उसकी निगाहें उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों की वैतरणी पार करने के लक्ष्य पर टिकी थीं।
इस आयोजन पर जो संत अपनी आपत्ति जाहिर कर चुके हैं, उनमें द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि शामिल हैं। सामाजिक समरसता पर आरएसएस के वरिष्ठ नेता और भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभाकर केलकर भी सवाल उठा चुके हैं। केलकर ने आठ मई को कहा था कि सामाजिक समरसता स्नान से सामाजिक भेदभाव बढ़ेगा। उन्होंने भाजपा अध्यक्ष का नाम लिए बगैर कहा था, सामाजिक समरसता स्नान की घोषणा से ऐसा लगता है, जैसे इससे पहले सिंहस्थ में दलित वर्ग के साथ भेदभाव किया जा रहा था, जबकि वास्तविकता यह है कि आज तक किसी अन्नक्षेत्र या स्नान में किसी की भी जाति नहीं पूछी जाती और बिना किसी भेदभाव के सभी कार्यक्रम होते रहे हैं।