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बिहार चुनाव: पुत्र प्रेम का विरोध झेल रहे भाजपा सांसद चौबे!

सिसकिते रेशमी नगर भागलपुर की सभी नेताओं ने की अनदेखी
बिहार चुनाव: पुत्र प्रेम का विरोध झेल रहे भाजपा सांसद चौबे!

भागलपुर। अजीब नजारा है। सुबह के छह बजे कुछ लोग तेज चाल से ‘मार्निंग वाक’ कर रहे हैं। कहीं योग और प्राणायाम हो रहा है। बच्चे भी हैं और बुजुर्ग भी। महिलाएं और बुजुर्ग तालियां पीटते हुए ठहाके लगा रहे हैं तो कहीं कुछ किशोर युवा जूडो-कराटे का अभ्यास कर रहे हैं। हरे भरे पेड़ पौधों पर पक्षियों की चहचहाहट और कलरव के बीच कुछ जगहों पर सुबह की सैर के दौरान विश्राम कर रहे लोग राजनीतिक चर्चा में मशगूल हैं। यह चर्चा भागलपुर शहर और जिले से लेकर समूचे बिहार में चुनावी परिदृश्य से लेकर देश विदेश के राजनीतिक घटनाक्रमों पर केंद्रित है। हम जब अपने स्थानीय पत्रकार मित्र ओमप्रकाश सामबे के साथ ऐसे ही एक चर्चा केंद्र पर पहुंचे, भागलपुर में भाजपा के वरिष्ठ नेता, शहर के पूर्व विधायक और अभी बक्सर से लोकसभा सदस्य अश्विनी चौबे के ‘पुत्र प्रेम’ के विरोध में स्थानीय भाजपा में विद्रोह को लेकर गरमा गरम बहस अपने चरम पर थी। कोई कह रहा था कि बिहार में सरकार किसकी बनेगी, यह तो बाद में तय होगा लेकिन भागलपुर में भाजपा का उम्मीदवार हारेगा, यह पक्की बात है। जवाब में एक दूसरे सज्जन कहते हैं कि लोकसभा के लिए चुने जाने से पहले पिछले 18 वर्षों तक विधानसभा में इस शहर का प्रतिनिधित्व करते रहे चौबे इस बार भी रो पीटकर अपने पुत्र, भाजपा उम्मीदवार अर्जित शास्वत को जिता लेंगे। एक और सज्जन हस्तक्षेप करते हैं कि भाजपा के बागी विजय साह के पक्ष में खड़े तमाम भाजपाई अर्जित की हार सुनिश्चित करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़नेवाले। 

 

पक्ष और विपक्ष में दिए जा रहे तीखे तर्कों को सुनकर लगा जैसे मार पीट बस होने ही वाली है, लेकिन सामबे बताते हैं कि चर्चा कितनी भी गरम हो, यहां लोगों में आपस में कटुता कतई नहीं होती। चर्चा में शामिल लोग बीती रात तक के राजनीतिक घटनाक्रमों के बारे में खुद को पूरी तरह अपडेट रखते हैं और जब कोई बोलता है तो बाकी लोग सुनते हैं, बीच में कोई किसी को चुप नहीं कराता, लेकिन उसका जवाब भी दिया जाता है। ऐसा यहां वर्षों से होते आ रहा है। चुनाव से लेकर विभिन्न मसलों पर चर्चा ‘टॉक शो’ आयोजित करनेवाले हमारे टीवी चैनल चहलकदमी पर इस चुनावी चर्चा से सीख ले सकते हैं।

 

महाभारतकालीन अंग प्रदेश की राजधानी और अभी मृत प्राय रेशमनगरी भागलपुर की चुनावी नब्ज को समझने के लिए कचहरी चौक से लगे सैंडिस कंपाउंड में स्थित जेपी उद्यान से मुफीद जगह कोई और नहीं हो सकती। भागलपुर में पहले चरण में 12 अक्टूबर को चुनाव मतदान होना है। शनिवार को नामांकन वापसी के अंतिम दिन भाजपा के एक बागी उम्मीदवार निरंजन साह ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली लेकिन इससे चौबे जी का सिर दर्द कम नहीं हुआ। नगर भाजपा के अध्यक्ष विजय साह न सिर्फ अभी भी बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में डटे हैं बल्कि निरंजन साह ने भी उन्हें ही समर्थन देने की घोषणा कर दी है। एक दो दिन पहले तक भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच रोते गाते अश्विनी चौबे कहते रहे कि अगर आम राय बनती है तो वह अपने पुत्र की उम्मीदवारी वापस करवा सकते हैं। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। और उनके पुत्र कठिन त्रिकोणीय चुनावी संघर्ष में उलझे हुए हैं। महागठबंधन ने यहां कांग्रेस के अजीत शर्मा को उम्मीदवार बनाया है। अश्विनी चौबे के लोकसभा का सदस्य चुने जाने के कारण भागलपुर में हुए उप चुनाव में शर्मा ने भाजपा के नभय चौधरी को भारी मतों से हराया था। विजय शाह के समर्थन में खड़े चौधरी खुलेआम कह रहे हैं कि उन्हें इसलिए हरवाया गया ताकि चौबे जी के पुत्र की उम्मीदवारी का रास्ता साफ हो सके। 

 

भागलपुर की ख्याति यहां 1989 में हुए भीषण सांप्रदायिक दंगों के लिए भी रही है। इस बार भी कुछ शरारती तत्वों ने ईद उल अजहा के दिन नाथ नगर में गली में हड्डियों फेंक कर एक बार फिर इस शहर को सांप्रदायिक दंगों की आग में झोंकने की कोशिश की लेकिन टीएनवी कालेज में हिंदी के व्याख्याता डा। योगेंद्र के अनुसार पहले ही से सतर्क लोगों ने धुंआं उठने से पहले ही उस पर पानी डाल दिया और यह शहर एक बार फिर सांप्रदायिक दावानल के चपेट में आने से बच गया। भागलपुर शहर पर इक्का दुक्का अपवादों को छोड़ दें तो 1977 से 2014 में यहां होनेवाले उपचुनाव तक भाजपा का ही वर्चस्व रहा है। 1977 में पहली बार यहां भाजपा के विजय कुमार मित्रा विधयक चुने गए थे 1996 में उनके निधन के बाद अश्विनी चौबे ने पहला उपचुनाव जीता और फिर लगातार चुनाव जीतते रहे। दो बार राज्य सरकार में वरिष्ठ मंत्री भी रहे। उनकी ख्याति भाजपा में नरेंद्र मोदी के शुरुआती समर्थकों में रही है। यही कारण है कि भागलपुर से लोकसभा चुनाव में वाजपेयी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे सैयद शाहनवाज हुसेन के दोबारा उम्मीदवार बनने के कारण उन्हें बक्सर से भाजपा का उम्मीदवार बनाया गया। वह जीत भी गए और शाहनवाज चुनाव हार गए।  

 

लेकिन शाहनवाज ने अथवा चौबे ने भागलपुर के विकास के लिए कुछ खास नहीं किया। चौबे बिहार के नगर विकास मंत्री भी रहे लेकिन भागलपुर में सड़कों और नालियों का हाल बुरा है। व्यस्त समय में भागलपुर में ट्रैफिक चलता नहीं बल्कि रेंगता है। गंदगी का आलम भागलपुर रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते ही सब्जी मंडी की तरफ जाते समय नजर आने लगता है। छायाकार व्यवसाई पारसकुंज बताते हैं कि जिस रेशम के कारोबार के कारण भागलपुर को रेशमनगरी कहा जाता है, वह दम तोड़ रहा है। नाथनगर के आगे जर्जर हो चुके चंपा नाला पुल पर बड़ी गाड़ियों के आवागमन पर रोक है। यही पुल भागलपुर को राजधानी पटना से जोड़ता है। नया पुल आज तक नहीं बना। यहां हवाई अड्डा है लेकिन यहां से व्यावसायिक उड़ान नहीं होती है। नाथनगर में 1948 में बना आयुर्वेद कालेज बंद पड़ा है। होम्योपैथी कालेज भी बंद पड़ा है। सरकारी इंजीनियरिंग कालेज और मेडिकल कालेज तो हैं लेकिन वहां प्रशिक्षित प्राध्यापकों का अभाव है। चौबे और शाहनवाज आश्वासन तो बहुतेरे देते रहे लेकिन ठोस कुछ किया नहीं। पारस बताते हैं कि एक समय भागलपुर को भागवत झा आजाद के रूप में राज्य का मुख्यमंत्री और शिवचंद्र झा के रूप में विधानसभाध्यक्ष भी मिले थे लेकिन शहर का दुर्भाग्य कि दोनो ने भी कुछ नहीं किया और आपस में ही लड़ते रहे।

 

यही बात चौबे, यहां से एक बार सांसद रहे सुशील मोदी और शाहनवाज के आपसी रिश्तों के बारे में भी कही जाती है। एक दूसरे को नीचा दिखाने के क्रम में उन लोगों ने लगातार इस शहर के हितों की अनदेखी ही की। सामाजिक कार्यकर्ता लखनलाल पाठक की सुनें तो इस शहर को यहां के नेताओं ने ही छला है, लेकिन चौबे की एक छवि यह भी है कि वह अगर किसी की बनाए नहीं तो किसी की बिगाड़े भी नहीं। चौबे की यही छवि हर बार चुनाव से पूर्व भारी विरोध के बावजूद उन्हें विजयी बनाते रही है। भागलपुर में एक और महत्वपूर्ण चुनाव क्षेत्र है कहलगांव जहां कांग्रेस के कद्दावर नेता, राज्य सरकार में वरिष्ठ मंत्री और फिर विधानसभाध्यक्ष भी रहे सदानंद सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। इक्का दुक्का अपवादों को छोड़कर हमेशा चुनाव जीतते रहे सदानंद सिंह के विरुद्ध राजग -लोजपा-के नीरज मंडल चुनाव लड़ रहे हैं। 

 

 

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