कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग ने हिमाचल प्रदेश के साथ गुजरात विधानसभा की घोषणा न करके बड़ी गलती है और यह असंवैधानिक काम आयोग ने भाजपा के दबाव में किया है। केवल 2002-03 को छोड़कर गुजरात व हिमाचल के चुनाव साथ साथ ही हुए है। आयोग का अधिकतम 46 दिन ही आचार संहिता लगाने का तर्क समझ से परे हैं क्योंकि कई राज्यों के चुनावों में यह सीमा इससे कहीं ज्यादा की रही है।
सांसद और कांग्रेस प्रवक्ता डा अभिषेक मनु सिंघवी ने शुक्रवार को एक प्रेस कांफ्रेस में बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 16 अक्तूबर को गुजरात जाने वाले हैं और वहां सांता क्लाज बनकर कई लुभावनी घोषणा करेंगे जिसके चलते आयोग ने गुजरात के चुनावों का एलान नहीं किया। सीधे तौर पर यह असंवैधानिक और शर्मनाक है। भाजपा के दबाव में गुजरात चुनावों की घोषणा न करते यह लोकतंत्र के साथ भी मजाक किया गया है।
प्रवक्ता सिंघवी ने कहा कि 1998 से 2002-03 के चुनावों के छोड़कर हिमाचल व गुजरात विधानसभा के चुनाव साथ साथ होते रहे हैं। 2002 में गुजरात दंगों के कारण ही चुनाव साथ नहीं हो पाए थे। इससे पहले यूपी, पंजाब, गोवा, मणिपुर व गोवा में भी साथ चुनाव हुए। चुनाव आयोग का 46 की समय सीमा का तर्क देना कहीं ठहरता नहीं है। यह एक मिथ्य़ा ही है। 1998 में गुजरात और हिमाचल में 67 दिनों का फर्क था। 2007 में 74 और 79 दिनों का अंतर था और 2012 में 79 दिनों का समय था। अधिकतम 46 दिनों तक आदर्श आचार संहिता लगाने का तर्क आयोग को कटघरे में खड़ा करता है। दिल्ली, मिजोरम, राजस्थान, महाराष्ट्र, अरूणाचल और आंध्रप्रदेश के चुनावों में भी 46 दिन से ज्यादा की अवधि थी। इसके अलावा यह कहां तक न्यायसंगत है कि हिमाचल के लोग वोट नौ नबंवर को करें और नतीजों का इंतजार 20 दिसंबर तक। उनका कहना है कि भाजपा पाटीदार, वाल्मीकि, सरकारी कर्मचारियों और बिल्डर लॉबी को लुभानी चाहती है और इसी मंशा के चलते गुजरात चुनावों की घोषणा नहीं की गई है। उन्होंने गुजरात चुनाव कराने और तत्काल वहां आदर्श आचार संहिता लागू करने की मांग की है।