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भाजपा का दांव: मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में नए चेहरों से वोटरों को साधने की कवायद

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 14 महीने बाद होने वाले चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपनी कमर...
भाजपा का दांव: मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में नए चेहरों से वोटरों को साधने की कवायद

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 14 महीने बाद होने वाले चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपनी कमर कस ली है। दोनों प्रदेशों में पार्टी ने लम्बे समय से दिख रहे चर्चित चेहरों को फिलहाल किनारे कर दिया है। बुधवार को भाजपा ने अपने नए संसदीय बोर्ड के सदस्यों के नाम का ऐलान किया। इस संसदीय बोर्ड में कुछ नए चेहरों को जगह दी गई है, वहीं इसमें 9 साल बाद मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बाहर कर दिया गया है। चौहान पहली बार 2014 में संसदीय बोर्ड के सदस्य बने थे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बीजेपी अध्यक्ष के अपने कार्यकाल के दौरान चौहान को संसदीय बोर्ड में शामिल किया था। इस दौरान वे बोर्ड के सचिव भी बने। इस बार संसदीय बोर्ड  में चौहान की जगह प्रदेश के दलित नेता सत्यनारायण जटिया ने ले ली है। संघ के करीबी माने जाने वाले जटिया 7 बार उज्जैन से सांसद रहे है । 

भाजपा ने यह बदलाव ऐसे समय किया गया है जब अगले साल दोनों ही प्रदेश में विधानसभा चुनाव होना है। संसदीय बोर्ड के इस निर्णय के चलते कई मध्य प्रदेश के कई केंद्रीय मंत्रियो, सांसदों, पूर्व मुख्यमंत्री और शीर्ष नेताओ के चेहरे में छाई लाली को फीकी कर दिया है। इस निर्णय के चलते, कम से कम आज के समय में पार्टी में चौहान का कद घटा जरूर है।

भाजपा संगठन के एक निर्णय ने छत्तीसगढ़ के शीर्ष भाजपा नेताओ को चौका कर रख दिया। पार्टी ने मंगलवार (9 अगस्त, 2022) को आदिवासी नेता विष्णु देव साई को किनारे कर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) नेता अरुण साव को पार्टी की छत्तीसगढ़ इकाई की कमान सौप डाली। इससे पहले आदिवासी नेता विष्णु देव साई जून 2020 से पार्टी के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाल रहे थे।

भाजपा से जुड़े सूत्रों ने कहा कि सांसद अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपने के पीछे सीधे तौर पर एक बड़ा वोट बैंक को साधने की रणनीति माना जा रहा है। साव मूल रूप से तेली हैं जो छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख ओबीसी वर्ग है। छत्तीसगढ़ के साहू मतदाता ज्यादातर भाजपा समर्थक हैं, लेकिन पिछले चुनाव में वे स्थानांतरित हो गए, जिसकी वजह से भाजपा को 10 साल के बाद प्रदेश से सत्ता गंवानी पड़ी।

माना जाता है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में ओबीसी मतदाता भाजपा से कांग्रेस की ओर चले गए हैं। कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ओबीसी समाज से ताल्लुक रखते हैं। सीएम भूपेश बघेल प्रदेश के एक अन्य प्रमुख वर्ग कुर्मी से आते हैं। प्रदेश में करीब 2.5 करोड़ की आबादी का लगभग 47 फीसदी ओबीसी वर्ग है. इसी ओबीसी वर्ग को आने वाले चुनाव में साधने के लिए भाजपा ने अपने संगठन में बदलाव किया है।  2023 के चुनाव में प्रदेश में भाजपा को फिर से सत्ता पर लाने के उद्देश्य से एक मजबूत ओबीसी चेहरे को कमान सौपी गई है। इसके चलते पार्टी ने अरुण साव पर दाँव लगाया है।

पर भाजपा के इस निर्णय ने प्रदेश में डेढ़ दशक तक भाजपा का चेहरा रहे पूर्व सी एम डॉ. रमन सिंह को फिलहाल किनारा कर दिया है। जाति से राजपूत, डॉ. रमन सिंह प्रदेश में डेढ़ दशक तक भाजपा का चेहरा रहे। पार्ट्री ने इस बार बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र से पहली बार सांसद बने साव भाजपा पर अपना दॉव लगाने की सोची है।

जानकार मान रहे है कि मप्र और छत्तीसगढ़ में अगले साल होने वाले चुनाव की तैयारी में भाजपा दोनों प्रदेशो में अपना चर्चित चेहरा बदलना चाहती है। भाजपा की सोच है कि ऐसा कर पार्टी दोनों ही प्रदेशो में कांग्रेस से 2018 चुनाव का बदला लेने में सफल होगी।

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