महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान एक दूसरे के कट्टर प्रतिद्वंदी रहे भाजपा और जेजेपी को साझी जरूरतों को पूरा करने के लिए साझेदारी की सरकार बनाने पर मजबूर होना पड़ा है। मिशन 75 का सपना चकनाचूर होने के बाद भाजपा को टिकाऊ सरकार बनाने के लिए मजबूरी में जेजेपी के साथ मिलकर गठबंधन की सरकार बनानी पड़ी है।
सरकार के अगुआ मनोहर लाल खट्टर और डिप्टी कमांडर दुष्यंत चौटाला दोनों का सियासी भविष्य इस गठबंधन सरकार की सफलता और असफलता पर टिका हुआ है। दोनों ही नेताओं के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है और दोनों की कदमताल ही यह तय करेगी कि वे इस विराट चुनौती को सफलतापूर्वक पार करते हैं या पहले ही असफल हो जाते हैं।
क्या है मनोहर लाल के सामने चुनौतियां?
मनोहर लाल खट्टर ने 5 साल के दौरान प्रदेश में पारदर्शी सरकार देने का भरसक प्रयास किया। प्रशासनिक मोर्चे पर असफल रहने के अलावा उन्होंने अपनी सरकार को पिछली सरकारों से अलग दिखाने सफल कोशिश की। पारदर्शी प्रशासन और पारदर्शी भर्तियों को लेकर उन्हें जनता से शाबाशी भी मिली। मनोहर लाल खट्टर के दामन पर पांच साल के दौरान भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद का कोई भी दाग नहीं लगा जो उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि रही।
अकेले बहुमत हासिल नहीं कर पाई भाजपा
मनोहर लाल ने भाजपा को पहली बार लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी 10 सीटों पर विजयी बनाकर प्रचंड जनसमर्थन के बलबूते पर पार्टी ने विधानसभा चुनाव के लिए मिशन 75 का टारगेट रख दिया। काफी सीटों पर गलत प्रत्याशियों का चयन और भितरघात की भरमार के चलते भाजपा मिशन 75 पार करना दूर सामान्य बहुमत भी हासिल नहीं कर पाई। मनोहर लाल खट्टर की पारदर्शी वर्किंग के चलते ही भाजपा हाईकमान ने उनको दूसरी बार सरकार की कमान सौंपी है। उन्हें नई पारी में उन सभी गलतियों से बचना होगा जिसके चलते हुए खुद को कद्दावर नेता नहीं बना पाए।
बेरोजगारी की चुनौती
मुख्यमंत्री को दूसरी पारी में प्रदेश की सभी बिरादरियों का समर्थन हासिल करने का प्रयास करना होगा। उन्हें अपनी पार्टी के नेताओं और वर्करों के साथ बेहतर तालमेल बनाते हुए बदले हुए मुख्यमंत्री के तौर पर खुद को दिखाना होगा। मुख्यमंत्री के सामने जहां प्रदेश के लाखों बेरोजगारों को रोजगार दिलाने की बड़ी चुनौती मुंह बाए खड़ी हुई है। वहीं दूसरी तरफ किसानों, कर्मचारियों और व्यापारियों की लंबित समस्याओं को हल करना भी बेहद जरूरी है।
दुष्यंत के सामने क्या है दुश्वारियां?
परिवार की पार्टी इनेलो से बेदखल किए जाने के बाद नई पार्टी बनाने वाले दुष्यंत चौटाला ने 10 महीनों के अंदर ही जेजेपी को सत्ता की हिस्सेदार बनाने का इतिहास रच दिया। जेजेपी देश की ऐसी पहली पार्टी है जिसने सबसे कम समय में सत्ता में हिस्सेदारी हासिल की है। प्रदेश की जनता ने जजेपी को निर्णायक जन समर्थन देते हुए सत्ता का सांझीदार बनाने का अवसर दिया है। भाजपा के साथ गठबंधन की सरकार बनाने के बाद उपमुख्यमंत्री पद हासिल करने वाले दुष्यंत चौटाला के सामने खुद को साबित करने की बड़ी चुनौती है। दुष्यंत चौटाला को अपने बेहद सफल सांसद काल की तरह उप मुख्यमंत्री के तौर पर भी खुद को बेहद काबिल और दमदार नेता के रूप में साबित करना होगा।
उन्हें गठबंधन सरकार की बड़ी पार्टनर भाजपा के साथ बेहतर तालमेल बनाते हुए गठबंधन की सरकार को सफल बनाना होगा। दुष्यंत चौटाला के सामने यह चुनौती है कि सीमित शक्तियों, सीमित विभागों और सीमित नेताओं के बलबूते पर पार्टी के लाखों कार्यकर्ताओं और पूरे प्रदेश की जनता के विश्वास पर खरा उतरना होगा।
दुष्यंत चौटाला और उनकी टीम का प्रदर्शन ही यह तय करेगा कि आगामी विधानसभा चुनाव में जेजेपी सत्ता की अकेली सरताज बनेगी, दोबारा से गठबंधन सरकार के हिस्सेदार बनेगी या सत्ता से बेदखल करेगी। बीजेपी और जेजेपी की गठबंधन सरकार प्रदेश की जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए सभी वर्गों की भलाई के लिए फैसले लेने होंगे। मनोहर लाल खट्टर को अपने अनुभव और दुष्यंत चौटाला के अपने जोश और जज्बे को मिलाकर गठबंधन की सरकार सफल बनाना होगा।
संकल्प पत्र में कई समानताएं और असमानताएं
दोनों ही दलों के संकल्प पत्र कुछ समानताएं और कुछ असमानताएं लिए हुए हैं। दोनों नेताओं की रजामंदी से न्यूनतम साझा कार्यक्रम के जरिए सरकार को अच्छे फैसलों के जरिए चलाने का काम दोनों नेताओं को करना होगा। दोनों ही नेताओं को बेरोजगार युवाओं, किसानों व्यापारियों और महिलाओं की जरूरतों को समझते हुए जन हितेषी फैसले लेने होंगे। मनोहर लाल खट्टर भी समझ गए होंगे कि पिछली सरकार के समय हुई गलतियों के कारण ही उनकी पार्टी को बहुमत हासिल नहीं हो पाया है, वहीं दूसरी तरफ दुष्यंत चौटाला को भी 10 सीटों से बहुमत के जादुई आंकड़े तक पहुंचने के लिए दमदार प्रदर्शन करके दिखाना होगा।