नौ दिसंबर, 2009 को तत्कालीन संप्रग सरकार ने आंध्र प्रदेश के बंटवारे और तेलंगाना राज्य के गठन की मांग मानी थी। कांग्रेस नेता ने 242 पन्नों की अपनी किताब में कहा, केसीआर का स्वास्थ्य फैसले को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में शामिल था। एक और वजह यह आशंका थी कि माओवादी और उनके हमदर्द स्थिति को और बिगाड़ सकते हैं। रमेश ने कहा, साफ तौर पर सरकार के शीर्ष स्तर को जानकारी मिली थी जिसकी वजह से उन्होंने माना कि हैदराबाद में जमीनी स्थिति गंभीर है और स्थिति ठीक करने के लिए कुछ ठोस करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम को किसी कारण से लगा होगा कि आंध्र प्रदेश में एक बार फिर पोट्टू श्रीरामुलू जैसी स्थिति आ गयी है। अलग आंध्र प्रदेश राज्य की मांग को लेकर आमरण अनशन करते हुए श्रीरामुलू की 15 दिसंबर, 1952 को मौत हो गयी थी। घटना के बाद व्यापक स्तर पर दंगे हुए थे। चिदंबरम ने खुफिया एवं दूसरी रिपोर्ट से मिले आकलन के आधार पर तेलंगाना के गठन के फैसले से संबंधित घोषणा के लिए बयान जारी किया था।
रमेश ने कहा कि बयान को स्पष्ट रूप से तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के घर पर ही अंतिम रूप दिया गया। उनके घर पर चिदंबरम, के अलावा तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के रोसैया मौजूद थे और उसके बाद कांग्रेस के दूसरे नेताओं के साथ विचार विमर्श किया गया। रमेश का कहना है कि यह किताब बंटवारे की प्रक्रिया के उनके निजी अनुभव पर आधारित है। वह प्रक्रिया से करीब से जुड़े रहे हैं और किताब में केंद्र सरकार के नजरिए को दिखाया गया है।
रमेश ने कहा, मैंने जिस तरह से अनुभव किया, यह किताब तेलंगाना के गठन की कहानी को उसी तरह बयां करती है और संयोग की बात थी कि आठ अक्तूबर, 2013 से 13 मई, 2014 के बीच किसी रहस्यमय ताकत के कारण किस्मत से मैं बंटवारे की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वालों में शामिल था। नवंबर 1956 में अलग तेलुगू भाषी आंध्र प्रदेश का गठन किया गया था। फरवरी 2014 को संसद ने उसे तेलुगू भाषी दो राज्यों - तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में बांट दिया।