अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के अनुसार वर्ष 2009 में रमेश गौड़ा सीएम और सतीश प्रसाद ने यह कंपनी बनाई थी। इसके बाद वर्ष 2014 में यतींद्र को इसका डायरेक्टर बनाया गया जिसके तुरंत बाद सतीश प्रसाद ने कंपनी छोड़ दी। कंपनी ने वर्ष 2012-13 में 2.77 करोड़ और 2013-14 में 3.12 करोड़ रुपये का राजस्व अपने रिटर्न में दर्शाया है। इसके बाद का रिटर्न फाइल ही नहीं किया गया है। वर्ष 2015 में बेंगलोर मेडिकल कॉलेज और रिसर्च इंस्टीट्यूट (बीएमसीआरई) ने अपने कैंपस में प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के तहत एक अत्याधुनिक निजी जांच लैब बनाने का ठेका इस कंपनी को दे दिया। वह भी तब जबकि इस कैंपस में पहले से ही एक आधुनिक सरकारी लैब 24 घंटे प्रतिदिन के हिसाब से कार्यरत है। जिस जमीन पर यह निजी लैब बनाने का ठेका इस कंपनी को दिया गया है उसका बाजार मूल्य करीब 150 करोड़ रुपये है। बीएमसीआरई के कई डॉक्टर सरकार के इस फैसले से हैरान हैं। उनका कहना है कि नियमों को तोड़ मरोड़ कर यह ठेका सीएम के बेटे को लाभ पहुंचाने के लिए दिया गया है। बीएमसीआरई के कई वरिष्ठ डॉक्टरों ने इस ठेके के खिलाफ संस्थान के निदेशक को पत्र लिखकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है।
दूसरी ओर बीएमसीआरई के विशेष अधिकारी डॉ. पीजी गिरीश किसी भी तरह के कानूनी उल्लंघन की बात से इनकार करते हुए दावा करते हैं कि इस कंपनी को ओपन टेंडर के जरिये यह ठेका दिया गया है। गिरीश यह भी कहते हैं कि ऐसी शिकायतें थीं कि वर्तमान लैब मरीजों की जरूरत पूरा नहीं कर पा रहा है। गिरीश का यह भी दावा है कि उन्हें नहीं पता था कि मेट्रिक्स कंपनी से मुख्यमंत्री के पुत्र जुड़े हुए हैं, हालांकि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि कानूनी किसी को ठेके में हिस्सेदारी करने से नहीं रोकता। गिरीश कहते हैं कि इस ठेके के लिए मेट्रिक्स के अलावा भी तीन कंपनियां होड़ में थीं मगर फाइनल टेंडर के समय सिर्फ दो ही बची थीं जिनमें दूसरी कंपनी एचएलएल थी मगर टेंडर से पहले निर्धारित समय तक सिक्योरिटी राशि का ड्राफ्ट नहीं जमा करने के कारण एचएलएल को टेंडर प्रक्रिया से बाहर होना पड़ा और मेट्रिक्स को ठेका मिल गया।
बीएमसीआरई के एक डॉक्टर के अनुसार, टेंडर में मेट्रिक्स को बिना मुकाबले के ही यह ठेका मिल गया। भारतीय कारोबारी जगत में ऐसा संयोग मुख्यमंत्रियों के बेटों के साथ ही हो सकता है। बीएमसीआरई के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि वर्तमान लैब से मरीजों की जरूरत पूरी नहीं होने का दावा झूठा है क्योंकि यह लैब 210 बिस्तरों वाले इस अस्पताल में प्रतिदिन 70 से 80 मरीजों की जांच की जाती है जिसमें प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के भी एक दर्जन से अधिक मरीज प्रतिदिन होतें हैं। ऐसे में गिरीश का दावा झूठा है।
हालांकि खुद यतींद्र सिद्धारमैया भी किसी भी तरह की गड़बड़ी की बात से इनकार करते हुए कहते हैं कि अगर ठेके में कुछ भी गलत पाया गया तो वह कंपनी छोड़ देंगे। उन्होंने कहा कि सिर्फ मुख्यमंत्री का बेटा होने के कारण उन्हें निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए।