कांग्रेस की अगुवाई वाली मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार के भीतर लगातार कलह के बुलबुले निकलते दिखाई दे रहे हैं। सचिन पायलट गुट की सक्रियता फिर से राजस्थान की गहलोत सरकार के लिए लगातार मुसीबतें बढ़ा रहा है। आलम ये हो चला है कि पायलट और गहलोत समर्थक आमने-सामने आते दिखाई रहे हैं। दोनों गुटे के बीच करीब डेढ़ साल से जारी भीतरी कलह अब जमीन पर आ गई है।
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दरअसल, भरतपुर के जसपुरा मोरोली में एक कॉलेज का उद्घाटन करने के लिए गहलोत सरकार में मंत्री भजनलाल जाटव जा रहे थे। लेकिन, रास्ते में हीं पायलट गुटों के साथ उनके समर्थकों की भिड़ंत हो गई। आलम ये हुआ की विरोध तेज होता देख मंत्री जाटव गांव की तरफ भागे। लेकिन, वहां भी पायलट समर्थकों से उनका पाला पड़ गया। जिसके बाद वो कॉलेज न जाकर वहां से नौ-दो-ग्यारह होना पड़ा।
पहले भजनलाल जाटव सचिन पायलट गुट के समर्थक माने जाते थे। लेकिन, पिछले साल कोरोना महामारी के बीच जब पायलट समर्थक विधायकों का डेरा दिल्ली में डल गया था। तब भजनलाल जाटव ने पाला बदलते हुए सीएम गहलोत के खेमे का साथ दिया था।
ये पहला मौका नहीं है जब पायलट और गहलोत गुट के बीच भिड़ंत हुई हो। लगातार दोनों समर्थकों के बीच खींचातानी चल रही है। बीते दिनों छह बार से विधायक रह चुके हेमाराम चौधरी के इस्तीफे ने राजस्थान की राजनीति में खलबली मचा दी थी।
इस्तीफे के बाद हेमाराम चौधरी ने कहा, "कुछ पीड़ा थी, इसे प्रदेश अध्यक्ष हीं सुलझा सकते हैं।" दरअसल, हेमाराम चौधरी पायलट समर्थक माने जाते हैं। बीते साल बगावती सुर के बाद उन्हें मंत्री बनाए जाने की बात कही गई थी, लेकिन अभी भी वो इंतजार उनका पूरा नहीं हुआ है। वहीं, कुछ महीने पहले एक और पायलट समर्थक विधायक रमेश मीणा ने गहलोत सरकार पर सीधे-सीधे भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। आउटलुक से उन्होंने कहा था कि मौजूदा सरकार के नेतृत्व में विकास शून्य हो गया है।
वहीं, उपचुनाव में दो सीटों पर गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस को जीत मिली है इसलिए पार्टी के आलाकमान गदगद हैं। लेकिन, इससे पायलट खेमे में नाराजगी है। क्योंकि, यदि पार्टी को निराशा हाथ लगती तो बात गहलोत के नेतृत्व पर आती और पायलट को मौका मिल सकता था। उपचुनाव से पहले लगातार सचिन पायलट सक्रिय नजर आ रहे थे।