कांग्रेस ने केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी पर निजी संस्था इंडियन फेडरेशन ऑफ ग्रीन एनर्जी (आईएफजीई) को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया है। कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता ने पत्रकारों को बताया कि निजी संस्था में केंद्रीय मंत्रियों का नाता नहीं होना चाहिए लेकिन संस्था में उनके निजी सचिव की 50 फीसद हिस्सेदारी है। उन्होंने केंद्र मंत्रियों से पूछा है कि क्या यह आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है और जिस तरह की मिसाल केंद्रीय मंत्रियों के बारे में सामने आ रही है ता क्या प्रधानमंत्री कुछ बोलेंगे और कार्रवाई करेंगे।
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि केंद्रीय सडक व परिवहन मंत्री ने शुक्रवार को पुणे में परिवहन ईंधन के लिए इथॉनाल का इस्तेमाल कैसे किया जाए पर आईएफजीएई के साथ एक प्रेस कांफ्रेस की है। लेकिन जिस संस्था के साथ केंद्रीय मंत्री ने साझा प्रेस कांफ्रेस की है वह अजीब सी है। यह संस्था चार साल पहले नबंवर 2013 में शुरू की गई थी और इसके 50 फीसद के मालिक गडकरी के निजी सचिव वैभव डांगे हैं जो साढे तीन साल से निजी सचिव के तरौ पर काम कर रहे हैं। डांगे एबीवीपी और आरएसएस से करीबी रिश्ता है। जब संस्था शुरु की गई थी तब संस्था के पास कैश बिल्कुल नहीं था लेकिन आज इस पर करीब डेढ करोड़ का कैश बैंलेस है। इस संस्था से नितिन गड़करी, सुरेश प्रभु जैसे काबिल मंत्री जुड़े हैं। इससे मंत्रियों पर लागू आचार संहिता का उल्लंघन हुआ है।
पता चला है कि संस्था की जब जांच शुरु हुई है तो वैभग डांगे ने निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया। बावजूद इसके डांगे इसमें आधे हिस्से के मालिक हैं। दिल्ली में संस्था का दफ्तर टालस्टाय मार्ग पर है। जिस कमरे में यह संस्था काम करती है उसका मालिक बोरटकर है और यही बोरटकर ही पूर्ति नामक जानी मानी कंपनी के निदेशक हैं। यह कंपनी पूरी तरह गडकरी परिवार से जुड़ी है। पूर्ति के बारे में सीएजी ने भी सवाल उठाए थे और संसद में भी चर्चा हुई थी।
कांग्रेस ने सवाल किया है कि संस्था में सुरेश प्रभु और नितिन गडकरी का नाम है तो क्या आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है। क्या यह स्वार्थों के विरोधाभास को नहीं दर्शाता। आचार संहिता क्या निजी सचिव पर लागू नहीं होती। गडकरी कैसे इसका स्पष्टीकरण दे सकते हैं कि उन्हीं का मंत्रालय उन्हीं के निजी सचिव की संस्था को समर्थन दे रहा है। तो क्या गडकरी धृतराष्ट्र की तरह मंत्रालय चला रहे हैं। वैभव डांगे आरएसएस से जुड़े हैं। वह एक कार्यक्रम में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ भी बैठे हैं। तो क्या प्रधानमंत्री इस मामले में कुछ बोलेंगे या कुछ कार्रवाई करेंगे। बार बार इस तरह की मिसाल सामने आ रही है चाहे वह शौर्य डोभाल या जयशाह के बारे में आ रही हों। इंडिया फाउंडेशन में भी इस तरह की चीजें सामने आई थीं। आखिर मोदी सरकार का यह कैसा स्टार्टअप है।