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कांग्रेस ने सरिस्का अभयारण्य की सीमा 'पुनः निर्धारित' करने की योजना को लेकर भाजपा पर निशाना साधा

कांग्रेस ने 50 से अधिक खनन गतिविधियों को फिर से शुरू करने के लिए सरिस्का बाघ अभयारण्य की सीमाओं को पुन:...
कांग्रेस ने सरिस्का अभयारण्य की सीमा 'पुनः निर्धारित' करने की योजना को लेकर भाजपा पर निशाना साधा

कांग्रेस ने 50 से अधिक खनन गतिविधियों को फिर से शुरू करने के लिए सरिस्का बाघ अभयारण्य की सीमाओं को पुन: निर्धारित करने की कथित योजना को लेकर रविवार को केंद्र और राजस्थान सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि यह कदम "पारिस्थितिक रूप से विनाशकारी" होगा।

विपक्षी दल कांग्रेस ने यह भी कहा कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्री अलवर से हैं और राजस्थान के पर्यावरण मंत्री भी वहीं से आते हैं, ऐसे में यह ‘डबल इंजन’ सरकार ऐसे कदम का समर्थन नहीं कर सकती।

कांग्रेस महासचिव (संचार प्रभारी) जयराम रमेश ने ‘एक्स’ पर एक मीडिया रिपोर्ट साझा की, जिसमें दावा किया गया है कि राजस्थान के सरिस्का बाघ अभयारण्य की सीमाओं को पुनः निर्धारित करने की योजना मंजूरी के करीब पहुंच रही है। उन्होंने कहा कि इससे 50 से अधिक खनन गतिविधियों को पुनः शुरू करने का रास्ता साफ हो जाएगा, जिन्हें पहले उच्चतम न्यायालय ने बंद करने का आदेश दिया था।

इन दावों पर केंद्र या राजस्थान सरकार की ओर से तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।

रमेश ने कहा कि अलवर के निकट सरिस्का बाघ अभयारण्य पुनरुद्धार का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

उन्होंने लिखा, ‘‘अति-सक्रिय अवैध शिकार नेटवर्क के कारण दिसंबर 2004 तक सरिस्का में बाघों की संख्या शून्य हो गई थी। इससे पूरे देश में हड़कंप मच गया था इसके चलते अप्रैल 2005 में ‘टाइगर टास्क फोर्स’ का गठन किया गया, इसके बाद मई 2005 में रणथंभौर बाघ अभयारण्य में डॉ. मनमोहन सिंह ने विभिन्न राज्यों के मुख्य वन्यजीव अधिकारियों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक की।’’

उन्होंने कहा कि इसके फलस्वरूप दिसंबर 2005 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) और जून 2007 में ‘वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो’ अस्तित्व में आया।

रमेश ने कहा कि इसके बाद पन्ना बाघ अभयारण्य के साथ-साथ सरिस्का में भी बाघों को दोबारा बसाने की प्रक्रिया शुरू की गई -हालांकि शुरुआत में कुछ विशेषज्ञों ने इस पर संदेह भी जताया था, लेकिन आज सरिस्का में बाघों की संख्या 48 तक पहुंच गई है, जो अपने आप में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।

कांग्रेस महासचिव ने कहा, ‘‘अब अभयारण्य की सीमा को बदलने की तैयारी की जा रही है। इससे इस क्षेत्र की वे 50 खनन कंपनियां, जो पहले बंद हो चुकी थीं, फिर से खनन शुरू कर सकती हैं।’’

उन्होंने कहा कि बाघ अभयारण्यों के सतत प्रबंधन में स्थानीय समुदायों की पूर्ण भागीदारी आवश्यक है और यह कहने की आवश्यकता नहीं है।

रमेश ने कहा, ‘‘50 खदानों (संगमरमर, डोलोमाइट, चूना पत्थर और मेसोनिक पत्थर) और दूसरी खदानों को दोबारा शुरू करने से बाघों का रहवास, जो बड़ी मेहनत से वापस बना है, फिर से खतरे में पड़ जाएगा।’’

उन्होंने दावा किया कि इससे बाघों के रहने की जगह टुकड़ों में बंट जाएगी। इसकी भरपाई के लिए जो ‘‘बफर जोन’’ में नए इलाके जोड़ने की बात की जा रही है, वो कागज पर तो सही लग सकती है लेकिन असल में यह बाघों के पारिस्थितिकी लिए विनाशकारी होगा, खासतौर पर तब जब बाघों की आबादी पहले ही सीमित है।

कांग्रेस महासचिव ने कहा, ‘‘केंद्रीय पर्यावरण मंत्री अलवर से हैं और राजस्थान के पर्यावरण मंत्री भी वहीं से आते हैं। क्या वाकई यह ‘डबल इंजन’ सरकार खनन मालिकों को फायदा पहुंचाने के लिए बाघ कॉरिडोर के इस विघटन का समर्थन कर रही है?’’

रमेश ने कहा कि अंततः उच्चतम न्यायालय को इस मामले में हस्तक्षेप करना ही होगा क्योंकि उसके निर्देशों का उल्लंघन किया जा रहा है।

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