रमेश के मुताबिक नवंबर 2013 से लेकर मई 2014 तक के कार्यकाल में केन्द्रीय मंत्रालय, शिशु और महिला कल्याण मंत्रालय और संयुक्त राष्ट्र की अन्तर्राष्ट्रीय संस्था के द्वारा हमारे देश के 1 लाख बच्चों के स्वास्थ का, करीब 1 लाख परिवारों का, 5 हजार आंगनवाड़ियों का सर्वेक्षण किया गया। हमारे देश में बच्चों के स्वास्थ की क्या स्थिति है, यह जानने के लिए यह सर्वेक्षण किया गया था। यह एक सरकारी सर्वेक्षण है। मई 2014 में यह सर्वेक्षण खत्म हुआ। 14 महीने हो गए हैं, पर इस सर्वेक्षण के नतीजे को दबा कर रखा गया। रमेश ने कहा कि संसद में उन्होने सवाल उठाया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
रमेश ने कहा कि सरकार ने जानबूझ कर 14 महीने से बाल स्वास्थ्य के नतीजे दबा कर रखे गए हैं। इस सर्वेक्षण को गुप्त रखा गया है। रमेश ने सर्वेक्षण का हवाला देते हुए बताया कि गुजरात को स्वास्थ्य के मामले में पीछे दिखाया गया है इसलिए सरकार ने इसे सार्वजनिक नहीं किया। क्योंकि गुजरात के सर्वेक्षण के जो नतीजे आए हैं वो यह साफ दर्शाते हैं कि ‘मोदी मॉडल’ एक धोखा है, ‘मोदी मॉडल’ की बुनियाद झूठी है। इस सर्वेक्षण में यह पता चला है कि 2 साल की उम्र के बच्चों को जो सात टीके लगते हैं हमारे देश में और हमारे देश के जो सबसे कुशल मार्केटिंग मैनेजर हैं प्रधानमंत्री मोदी जी वो इस कार्यक्रम को ‘इंद्रधनुष कार्यक्रम’ का नाम देते हैं। हर साल 25 लाख बच्चों को यह टीके लगाए जाते हैं। इस सर्वेक्षण से यह पता चला है कि गुजरात में सिर्फ 56 प्रतिशत बच्चों को यह सात टीके लगाए गए हैं जो औसत से कम हैं। जबकि राष्ट्रीय औसत 65 प्रतिशत है।
रमेश ने कहा कि औद्योगिक विकास में, GDP विकास में गुजरात सबसे आगे है। गुजरात एक विकसित राज्य है लेकिन स्वास्थ्य के मामले में 29 राज्यों में गुजरात का स्थान 21 वां है। तमिलनाडू में 77 प्रतिशत बच्चों को पूरी तरह से सात टीके लगाए गए हैं। केरल में 83 प्रतिशत, बिहार में 62 प्रतिशत और मोदी मॉडल गुजरात 56 प्रतिशत है और राष्ट्रीय औसत 65 प्रतिशत है। रमेश ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह नतीजे इसलिए सार्वजनिक नहीं किए गए कि मोदी जी बर्दाश्त नहीं कर सकते कि सरकारी मंत्रालय के द्वारा जो सर्वेक्षण किया गया है वो हकीकत दिखाता है। गुजरात में बच्चों के विकास और स्वास्थ्य के बारे में जब मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और गुजरात के मामले में वो जो भी बोला करते थे वह बिल्कुल झूठ था।
रमेश ने सर्वेक्षण का खुलासा नहीं होने का दूसरा कारण बताया कि इस सर्वेक्षण से यह पता चलता है कि 2004 से लेकर 2014 के बीच में बच्चों का कुपाेषण भारी मात्रा में घटा है। 2004 में करीब 42 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार थे और 2014 में 30 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार थे। 2004 से लेकर 2014 तक राष्ट्रीय औसत 40 प्रतिशत से घटकर 30 प्रतिशत हुआ है। कांग्रेस नेता ने कहा कि प्रधानमंत्री जी यह बर्दाशत नहीं कर सकते कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के 10 साल के कार्यकाल में प्रगति हुई है और बच्चों के कुपोषण के मामले में भारी मात्रा में कटौती देखने को मिली है। उसे सार्वजनिक किया जाए।
रमेश ने बताया कि यह सर्वेक्षण दिखाता है कि गुजरात में ग्रामीणों की 60 प्रतिशत आबादी खुले में शौच करती है और जो बच्चों का कुपोषण है वो राष्ट्रीय औसत की तुलना में गुजरात में अधिक है। रमेश ने मोदी मॉडल पर आपत्ति जताते हुए कहा कि हमारी आपत्ति ‘गुजरात मॉडल’ से नहीं है, हमारी आपत्ति ‘मोदी मॉडल’ से है। मोदी जी के मुख्यमंत्री बनने से पहले ही गुजरात में औद्योगिकीकरण हुआ था। पिछले 30-35 सालों से गुजरात की आर्थिक तरक्की हुई है, पर यह ‘मोदी मॉडल’ जो बार-बार कहा जाता है इसका जो नकारात्मक दृश्य सामने आता है वो स्वास्थ्य के क्षेत्र में आता है।