देहरादून। कथित संवैधानिक संकट का हवाला देकर सोशल मीडिया तो सीएम तीरथ सिंह रावत को हटाने पर ही आमादा दिख रहा है। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि भाजपा हाईकमान की तीरथ को कुर्सी सौंपने की रणनीति इतनी कमजोर है कि विपक्ष को एक बड़ा मुद्दा तोहफे में दे दिया जाए। वैसे यह भी तय है कि अगर तीरथ किन्हीं वजहों से सीएम का पद छोड़ते हैं तो भाजपा को आम चुनाव में जनता की अदालत में इस सवाल का जवाब देना ही होगा कि आखिरकार प्रचंड बहुमत के बाद भी बार-बार सीएम क्यों बदला।
पिछले कुछ दिनों से संविधान और चुनाव आयोग के नियमों का हवाला देकर सीएम तीरथ सिंह रावत के हटने की चर्चा तेज है। सोशल मीडिया अपने ट्रायल में एक तरीके से तीरथ को लगभग हटा ही चुका है। ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि भाजपा के रणनीतिकार क्या इतने बेखर रहे कि उन्होंने इन नियमों पर गौर ही नहीं किया। केंद्र सरकार के सालिसिटर जनरल ने भी नहीं बताया कि त्रिवेंद्र को हटाकर तीरथ की ताजपोशी से ये सवाल भी खड़े होंगे और ऐन चुनाव से पहले भाजपा को फिर से मुख्यमंत्री बदलना पड़ेगा। निश्चित तौर पर इसका जवाब न में ही होगा। आने वाले समय में साफ होगा कि इस सियासी खेल के पीछे भाजपा की रणनीति क्या है।
वैसे एक बात तय है कि अगर तीरथ को किन्हीं वजहों से हटना पड़ता तो आने वाले आम चुनाव में भाजपा को जनता की अदालत में इस सवाल का जवाब देना ही होगा कि इतने प्रचंड बहुमत के बाद बार-बार मुख्यमंत्री क्यों बदला। त्रिवेंद्र के हटते ही कांग्रेस ने यह सवाल उठा दिया था। कांग्रेसी दिग्गज हरीश रावत ने तो यहां तक कहा कि क्या त्रिवेंद्र बेईमान थे। अगर नहीं थे तो उन्हें हटाया क्यों। और अगर बेईमान थे तो चार साल एक बेईमान को उत्तराखंड पर क्यों थोपा।
एक अहम बात यह भी है कि हर सीएम का एक विजन होता। सरकारी मशीनरी उसी पर काम करती है। त्रिवेंद्र के अचानक हटने के बाद चार सालाना जश्न पर सरकारी खजाने से खर्च हुए करोड़ों रुपये पानी में बह गए। अब तीऱथ के विजन पर तमाम तैयारियां चल रही है और जनता के अरबों खर्च हो रहे हैं। क्या गारंटी है कि आने वाला सीएम इस समय के कामों को ही आगे बढ़ाएगा। भाजपा को चुनाव में इस खर्च का ब्योरा भी देना ही होगा।