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‘अनुशासित’ भाजपा में कलह चरम पर

ऐसा लगता है कि भाजपा शासित मध्य प्रदेश में सब ठीक नहीं चल रहा है। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खेमे के मतभेद अब खुलकर सामने आने लगे हैं। कैलाश विजयवर्गीय ने तो यहां तक कह डाला है कि प्रदेश सरकार और संगठन जिस तरह काम कर रहे हैं उससे 2018 के विधानसभा चुनावों के लिए खतरा पैदा हो गया है। यही नहीं गुड गवर्नेंस की बात करके सत्ता में आई पार्टी के लिए आत्मअवलोकन करने की जरूरत है क्योंकि प्रदेश की नौकरशाही निरंकुश हो गई है। इसके कारण कार्यकर्ता भी निराश हो रहे हैं।
‘अनुशासित’ भाजपा में कलह चरम पर

एक निजी टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में विजयवर्गीय ने कहा कि वह एक वर्ष से सरकार की कार्यप्रणाली देख-समझ रहे हैं और बीच-बीच में मुख्यमंत्री को अवगत भी कराते रहे हैं। इसके बाद भी अफसरों का रवैया ठीक नहीं हुआ तो सार्वजनिक रूप से आलोचना की। गौरतलब है कि विजयवर्गीय ने दो दिन पहले ट्वीट कर मध्य प्रदेश में बन रहे मेट्रो प्रोजेक्ट की तुलना बैलगाड़ी से कर दी थी और कहा था कि इस गति से ये मेट्रो 2018 तो क्या 2028 तक भी नहीं बनेगा। इसके लिए उन्होंने प्रदेश की अफसरशाही हो जिम्मेदार ठहराया था और कहा था कि उनके कारण यह स्थिति बनी है। विजयवर्गीय ने बाद में चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि अफसरों में दंभ आ गया है कि सरकार वे चला रहे हैं। उन्होंने कार्यकर्ताओं और जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा शुरू कर दी। अफसरों के रवैये से कार्यकर्ता ठगा महसूस कर रहे हैं, इसलिए मुझे आवाज उठाना पड़ी। पार्टी महासचिव ने कहा कि संगठन में बैठे हुए लोग सरकार की चिंता ज्यादा कर रहे हैं और संगठन की कम। जबकि सरकारें संगठन के कारण बनती हैं। सरकार के कारण संगठन नहीं बनता है। पता नहीं ये छोटी सी बात समझ क्यों नहीं आ रही।

कैलाश विजयवर्गीय की आलोचना के बाद प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार चौहान कहां चुप रहने वाले थे। उन्होंने विजयवर्गीय की आलोचना करते हुए कह डाला कि दिल्ली जाने के बाद विजयवर्गीय राज्य के बारे में कम जानने-समझने लग हैं। चौहान ने विजयवर्गीय को मर्यादा की याद भी दिला दी। हालांकि बाद में आलोचना होने पर चौहान ने अपने बयान से पलटी मारते हुए कहा कि विजयवर्गीय पार्टी के बड़े नेता हैं और वह उनकी पूरी इज्जत करते हैं। लेकिन इस पूरी बहसबाजी से पार्टी का अंदरुनी कलह तो सतह पर आ ही गया है।

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