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प्रथम दृष्टि: जनता जिंदाबाद

मोदी लोकसभा चुनावों में जीत की हैट्रिक लगा पाएंगे या नहीं, यह आखिरकार जनता के हाथ में है जिसका फैसला...
प्रथम दृष्टि: जनता जिंदाबाद

मोदी लोकसभा चुनावों में जीत की हैट्रिक लगा पाएंगे या नहीं, यह आखिरकार जनता के हाथ में है जिसका फैसला अंतिम होता है। यही भारतीय लोकतंत्र के बहुरंगे चुनावों की खूबसूरती है जिसके कारण सबकी निगाहें इस चुनाव पर हैं

अगर सब कुछ तयशुदा समय पर होता है तो जल्द ही आगामी आम चुनाव के लिए आचार संहिता लागू हो जाएगी और केंद्र में अगली सरकार किसकी बनेगी, इसका औपचारिक शंखनाद हो जाएगा। इस चुनाव पर दुनिया भर की नजर रहेगी और सबके मन में यही सवाल होगा कि क्या भारतीय जनता पार्टी के शीर्षस्थ नेता नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने की हैट्रिक लगाएंगे। हाल के वर्षों में अमेरिकी राष्ट्रपति के हर ‘लीप ईयर’ में होने वाले चुनाव के अलावा भारत के लोकसभा चुनावों के बारे में ही सबसे ज्यादा जिज्ञासा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रहती है। ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं है कि मोदी पिछले एक दशक में प्रभावशाली नेता के रूप में उभरे हैं, बल्कि इसलिए भी कि विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र की संपूर्ण चुनाव प्रक्रिया का शांतिपूर्ण संचालन अपने आप में अन्य देशों के लिए कौतुहल का विषय है।

इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि प्रधानमंत्री मोदी के कारण भारत के आम चुनाव पर दुनिया, विशेषकर सुपर पावर समझे जाने वाले पाश्चात्य देशों की नजर रही है। शुरुआत में इन देशों के हुक्मरानों के साथ-साथ वहां की मीडिया को भी मोदी के प्रधानमंत्री के रूप में सफल होने के बारे में संशय था। गोधरा कांड के बाद अंतरराष्ट्रीय मीडिया में मोदी को अल्पसंख्यक विरोधी नेता के रूप में आरोपित किया गया था। उन्हें लगता था कि मोदी को अपने गृह राज्य गुजरात के बाहर भारी विरोध का सामना करना पड़ेगा। लेकिन, मोदी ने अपने पहले ही कार्यकाल में उन देशों में भी अपनी स्वीकार्यता बना ली, जिन्हें लगता था कि वे विविधता भरे देश में सुचारू रूप से शासन चलाने में कभी सफल नहीं हो पाएंगे। कई ताकतवर राष्ट्राध्यक्ष जो मोदी को पहले गंभीरता से नहीं लेते थे, अब उनकी शान में कसीदे पढ़ रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मीडिया का भी नजरिया उनके प्रति हाल में बदला दिखता है जो कभी ‘थर्ड वर्ल्ड’ कहे जाने वाले देश को अब एक मजबूत इकोनॉमी वाले मुल्क के रूप में चित्रित कर रहे हैं। जाहिर है, 2024 के राष्ट्रीय चुनाव में व्यापक दिलचस्पी मुख्य तौर से इस बात को लेकर है कि क्या भारत की जनता एक बार फिर देश के शासन की बागडोर मोदी के हाथों में देने जा रही है या इस बार कोई बड़ा परिवर्तन होगा?

इस सिलसिले में सर्वे और ओपिनियन पोल का दौर शुरू हो चुका है। जमीनी हकीकत को जानने के लिए भारत की सियासत में दिलचस्पी लेने वाले विदेशों के पत्रकार और राजनयिकों का विभिन्न प्रांतों का दौरा शुरू हो चुका है। आज इस बात से अधिकतर राजनैतिक टिप्पणीकार इत्तेफाक रखते हैं कि मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के आसार प्रबल हैं। इस तरह की धारणा बनने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन इसकी दो प्रमुख वजहें स्पष्ट दिख रही हैं। पहला, पिछले दो चुनावों की तुलना में भाजपा का ‘मोदी ब्रांड’ अब ज्यादा प्रभावी प्रतीत होता है। इसलिए पार्टी की पूरी चुनावी रणनीति प्रधानमंत्री की छवि के इर्द-गिर्द ही बनाई जा रही है। दूसरा, तमाम कोशिशों के बावजूद मोदी के विरोधियों का राष्ट्रीय स्तर पर एक मंच पर आकर उन्हें साझा चुनौती देने की संभावना दिनोदिन क्षीण होती जा रही है।

जनता दल-यूनाइटेड के सिरमौर नीतीश कुमार, जो मोदी विरोधी मुहिम के सूत्रधार थे, वापस एनडीए खेमे में जा चुके हैं। यह भी जगजाहिर है कि विपक्ष के महत्वाकांक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के विभिन्न घटक दलों के नेता कांग्रेस के राहुल गांधी का नेतृत्व स्वीकारना नहीं चाहते हैं। विपक्ष के चुनाव पूर्व बिखरने का फायदा निश्चित रूप से भाजपा को मिलेगा जिसके गठबंधन में मोदी के कारण नेतृत्व का संकट नहीं है। यही वजह है कि अधिकतर चुनावी विश्लेषक चर्चा महज इस बात की कर रहे हैं कि भाजपा को अपने बूते पर इस बार बहुमत की संख्या से कितनी सीट अधिक मिलेगी। लेकिन क्या यह कहना जल्दबाजी होगी?

मोदी विरोधियों का मानना है कि भाजपा के लिए इस बार लड़ाई उतनी आसान नहीं है जितना आम तौर पर समझा जा रहा है। उनके मुताबिक आज किसानों से लेकर नौजवानों में असंतोष है। महंगाई और रोजगार ऐसे मुद्दे हैं जिसे विपक्ष मोदी सरकार की कमजोरी मान रहा है। हालांकि भाजपा अपनी विजय को लेकर आश्वस्त दिख रही है। लेकिन, जीत की चाबी हर चुनाव की तरह इस बार भी इस देश के जनता के हाथ है जो अंतिम समय तक पत्ते नहीं खोलती है। यहां का मतदाता उसी उम्मीदवार का चयन करता है जिससे उन्हें उम्मीद होती है कि वह अपने कार्यकाल में उनकी बेहतरी के लिए काम करेगा। तमाम सियासी दावों और धारणाओं, आरोपों और प्रत्यारोपों के बीच जनता आखिरकार उसी को चुनती है जिसके उसकी आकांक्षाओं पर खरा उतरने की संभावना सबसे अधिक रहती है। यही कारण है कि मोदी पिछले दो लोकसभा चुनावों में विजयी रहे हैं और इस बार भी उन्हें सत्ता के रेस में आगे बताया जा रहा है। लेकिन वे अंततः हैट्रिक लगाएंगे या नहीं, यह आखिरकार जनता के हाथ में है जिसका फैसला अंतिम होता है। यही भारतीय लोकतंत्र के बहुरंगे चुनावों की खूबसूरती है जिसके कारण सबकी निगाहें इस चुनाव पर है।

 

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