प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस हफ्ते अपने विवादित बयानों पर चुनाव आयोग से क्लीन चिट मिल गई लेकिन दो भाषणों पर उन्हें क्लीन चिट देने वाला चुनाव आयोग इस मामले में एकमत नहीं था। एक रिपोर्ट की मानें तो पीएम मोदी को क्लीन चिट दिए जाने का फैसला सर्वसम्मति से नहीं लिया गया।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक यह फैसला 2-1 के बहुमत से लिया गया। मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा के अलावा दो अन्य चुनाव आयुक्त अशोक लवासा और सुशील चंद्रा ने इस बारे में वोटिंग की थी। अखबार ने बताया इनमें से एक आयुक्त प्रधानमंत्री के पक्ष में नहीं थे।
रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव आयोग अधिनियम, 1991 की धारा-10 में कहा गया है कि ‘जहां तक संभव हो चुनाव आयोग का कामकाज सबकी सहमति से चलना चाहिए।‘ यह प्रावधान यह भी कहता है कि अगर किसी मामले में ‘मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों में मतभेद हो तो ऐसे मामले में बहुमत के आधार पर फैसला लिया जाना चाहिए।‘ हालांकि इस कानून के लागू होने के बाद ऐसे फैसले (जैसे नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट) बहुत कम लिए गए हैं।
वर्धा के बयान पर क्लीन चिट
चुनाव आयोग ने जिन दो बयानों पर पीएम मोदी को क्लीन चिट दी, उनमें से एक उन्होंने एक अप्रैल को वर्धा में दिया था। इसमें प्रधानमंत्री ने कहा था कांग्रेस पार्टी और उसके अध्यक्ष बहुसंख्यकों वाले चुनावी क्षेत्रों से भाग रहे हैं और उन इलाकों (वायनाड) में चुनाव लड़ रहे हैं जहां अल्पसंख्यक बहुसंख्या में हैं। आयोग को मोदी के इस बयान में जिन प्रतिनिधि कानून की संबंधित धाराओं का उल्लंघन नहीं दिखा था।
लातूर के भाषण को मिली क्लीन चिट
वहीं, लातूर में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि देश के नए मतदाता वोट देते समय पुलवामा आतंकी हमले के शहीदों और बालाकोट एयर स्ट्राइक को अंजाम देने वाले वीर पायलटों को ध्यान में रखें। चुनाव आयोग ने इस बयान को भी क्लीन चिट दे दी। हालांकि यह स्पष्ट रूप से आयोग के उस निर्देश का उल्लंघन था जिसमें उसने सेना और सैनिकों के चुनावी इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी। वहीं, उस्मानाबाद जिले के चुनाव अधिकारी ने भी अपनी जांच में इस बयान को ‘अनुचित’ पाया था।