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चुनावी हार से ‘इंडिया’ गठबंधन में कांग्रेस की मोलभाव करने की स्थिति हो सकती है कमजोर

लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले हिंदी पट्टी के तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में...
चुनावी हार से ‘इंडिया’ गठबंधन में कांग्रेस की मोलभाव करने की स्थिति हो सकती है कमजोर

लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले हिंदी पट्टी के तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस को मिली करारी शिकस्त न सिर्फ उसके लिए बड़ा झटका है, बल्कि यह हार विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) में नेतृत्व एवं सीट बंटवारे पर मोलभाव करने की उसकी स्थिति को संभवत: कमजोर कर सकती है।

इसकी बानगी भी चुनावी रुझानों में तीन राज्यों में कांग्रेस की हार नजर आने के साथ मिल गई जब गठबंधन के एक प्रमुख घटक जनता दल (यूनाइटेड) ने कहा कि देश का मुख्य विपक्षी दल अपने दम पर जीतने में सक्षम नहीं है।

जद (यू) के मुख्य प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव के परिणाम कांग्रेस की पराजय और भाजपा की विजय का संकेत देते हैं । उन्होंने कहा कि चुनावों में विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन गायब था।

मध्य प्रदेश में कांग्रेस की हार के बाद समाजवादी पार्टी ने यह दावा तक कर दिया कि इस पराजय के लिए अखिलेश यादव के बारे में कमलनाथ की टिप्पणी जिम्मेदार है। कमलनाथ ने सीट बंटवारे के विवाद के संदर्भ में अखिलेश यादव को लेकर ‘अखिलेश वखिलेश’ वाली टिप्पणी की थी।

सपा प्रवक्ता अनुराग भदौरिया ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘अब शायद कमलनाथ जी के समझ में बात आ गई होगी। अखिलेश यादव जी का मतलब क्या है।’’

अगले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का मुकाबला करने के लिए 26 विपक्षी दलों ने ‘इंडिया’ गठबंधन गठित किया है।

इस पराजय के बीच कांग्रेस के लिए उम्मीद की एक किरण दक्षिण भारत से आई है जहां कर्नाटक के बाद अब तेलंगाना में उसे जीत मिली है।

कांग्रेस को उम्मीद थी कि पांच राज्यों के चुनाव में अच्छा प्रदर्शन कर वह 2024 के लिए अपनी राह तैयार करेगी। उसे उम्मीद थी कि इन चुनावों में जीत के बाद वह विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में नेतृत्व को लेकर अपना दावा मजबूत करेगी। उसकी इन उम्मीदों को बड़ा झटका लगा है।

स्थिति को भांपते हुए कांग्रेस ने कहा कि वह ‘इंडिया’ गठबंधन के घटक दलों के साथ मिलकर अगले लोकसभा चुनाव के लिए खुद को तैयार करेगी।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि उनका दल इन राज्यों में खुद को मजबूत करेगा तथा विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के घटक दलों के साथ मिलकर अगले लोकसभा चुनाव के लिए अपने आपको तैयार करेगा।

खड़गे ने कहा, ‘‘हमें इस हार से हताश हुए बग़ैर ‘इंडिया’ के घटक दलों के साथ दोगुने जोश से लोकसभा चुनाव की तैयारी में लग जाना है।’’

इन नतीजों से यह भी स्पष्ट है कि कांग्रेस के लिए हिंदीभाषी राज्यों में जाति जनगणना और ‘गारंटी’ के मुद्दे भी काफी हद तक बेअसर साबित हुए हैं। राहुल गांधी ने इन चुनावों में जाति जनगणना के मुद्दे का बार-बार जिक्र किया था।

कांग्रेस ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपनी सत्ता गंवा दी तो मध्य प्रदेश में करीब दो दशक का उसका वनवास (बीच में 15 महीने छोड़कर) खत्म नहीं हुआ। तेलंगाना के 2014 में नए राज्य के रूप में गठन के बाद कांग्रेस वहां पहली बार सत्ता में आई है।

इस साल मई में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद ये चुनावी नतीजे उसके लिए बड़े निराशाजनक कहें जाएंगे। कर्नाटक के नतीजों के बाद पार्टी ने कहा था कि यह विजय उसके लिए ‘बूस्टर डोज’ है।

मध्य प्रदेश में कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में चुनावी मैदान में उतरी। कमलनाथ और पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने इस चुनाव में पूरी ताकत झोंकी, हालांकि टिकटों के बंटवारे के बाद उस समय दोनों के बीच तल्खी देखने को मिली थी जब कमलनाथ ने ‘दिग्विजय सिंह के खिलाफ कपड़े फाड़ो’ वाली टिप्पणी की थी। बाद में दोनों नेताओं ने यह स्पष्ट करने की कोशिश की कि उनके बीच कोई मतभेद नहीं है।

मध्य प्रदेश में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच गठबंधन नहीं होने के कारण एक बड़ा विवाद खड़ा हुआ। कमलनाथ की ‘अखिलेश वखिलेश’ वाली टिप्पणी को लेकर भी विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के इन दोनों घटक दलों के बीच विवाद पैदा हुआ।

कांग्रेस को उम्मीद थी कि वह मध्य प्रदेश में अपनी 11 ‘गारंटी’ के माध्यम से जनता का समर्थन हासिल करेगी, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता तथा राज्य की भाजपा सरकार की ‘लाडली’ योजना जैसे कार्यक्रम उस पर भारी पड़े।

राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार द्वारा शुरू की गई ‘चिरंजीवी’ स्वास्थ्य बीमा योजना, 500 रुपये में सिलेंडर तथा कांग्रेस की सात ‘गारंटी’ के सहारे चुनावी मैदान में उतरी कांग्रेस को विफलता हाथ लगी। समझा जाता है कि प्रदेश में प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता, कांग्रेस की अंदरुनी गुटबाजी और हर पांच साल पर रिवाज बदलने की धारणा ने इस बार का जनादेश तय करने में प्रमुख भूमिका निभाई।

छत्तीसगढ़ में आम धारणा से इतर कांग्रेस को आश्चर्यजनक हार का सामना करना पड़ा। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के ‘नवा छत्तीसगढ़’ बनाने के दावे को जनता ने स्वीकार नहीं किया। चुनाव से ऐन पहले ‘महादेव’ ऐप का मामला भी कांग्रेस के लिए बड़ी मुसीबत बना।

हिंदीभाषी क्षेत्र के तीन प्रमुख राज्यों में हार के बीच तेलंगाना में जीत कांग्रेस के लिए राहत लेकर आई। कांग्रेस ने दक्षिण भारत के इस राज्य में छह ‘गारंटी’, राज्य के गठन में कांग्रेस एवं सोनिया गांधी के योगदान तथा ‘प्रजाला तेलंगाना’ (जनता का तेलंगाना) बनाने का वादा किया था। इनके जरिये वह जनता का समर्थन हासिल करने में सफल रही।

वर्ष 2014 में तेलंगाना के अलग प्रदेश बनने के बाद राज्य में पहली बार कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है। पिछले 10 वर्षों से प्रदेश में भारत राष्ट्र समिति की सरकार थी।

(भाषा इनपुट के साथ)

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