लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस हाईकमान ने मध्यप्रदेश कांग्रेस में बदलाव कर वरिष्ठतम नेता कमलनाथ को बागडोर सौपी है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर एक तीर से कई निशाने साधे हैं। कमलनाथ को मध्यप्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह को साधने का काम किया गया है।
कमलनाथ को अध्यक्ष बनाए जाने से गुटीय संतुलन कायम रहने की उम्मीद की जा रही है। मध्यप्रदेश में इस साल अक्टूबर -नवंबर में विधानसभा चुनाव होने है, ऐसे में कांग्रेस को वहां दमदार चेहरे की तलाश थी। कमलनाथ चुनावी मैनेजमेंट में माहिर होने के साथ फंड जुटाने में भी काबिल माने जा रहे है। कमलनाथ कांग्रेस के पुराने नेता होने के साथ उनकी नजदीकियां स्व. इंदिरा गांधी और राजीव गांधी से भी रही है। कमलनाथ 32 साल की उम्र में पहली बार संसद बन गए थे। पर कमलनाथ का अब तक आम कार्यकर्ता से सीधा संपर्क नहीं रहा, उन्हें जमीनी स्तर पर जाकर लोगों और कार्यकर्ताओं से जुड़ना होगा।
दिग्विजय के विरोध को दरकिनार कर सिंधिया को मिली जिम्मेदारी
कहा जा रहा है कि दिग्विजय सिंह और दूसरे बड़े नेता कमलनाथ का विरोध नहीं कर पाएंगे। दिग्विजय सिंह ज्योतिरादित्य सिंधिया को अध्यक्ष बनाए जाने का विरोध कर रहे थे, लेकिन हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में सिंधिया के परफॉर्मेंस से हाईकमान के सामने उनकी कद बढ़ी, इस नाते उन्हें चुनाव अभियान समिति का जिम्मा सौंप कर महत्व दिया गया है और दिग्विजय के विरोध को भी दरकिनार किया गया है। कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की जोड़ी को मध्यप्रदेश कांग्रेस के नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ आम लोग भी चाह रहे थे। दोनों नेताओं पर फिलहाल भ्रष्टाचार के कोई आरोप नहीं है। कमलनाथ की अच्छी पकड़ महाकौशल और ज्योतिरादित्य सिंधिया की मजबूती बुंदेलखंड और मालवा इलाके में होने से पार्टी को फायदा होने की उम्मीद है। कहा जा रहा है कि वर्तमान अध्यक्ष अरुण यादव लंबे समय तक रहने के बाद भी पार्टी की जमीनी पकड़ नहीं बना पाए और बीजेपी सरकार के खिलाफ आक्रामक हो पाए। वही पार्टी के बड़े नेता उन्हें अध्यक्ष के रूप में स्वीकार कर पा रहे थे।
दिग्विजय से हैं कमलनाथ के अच्छे रिश्ते
कमलनाथ के अध्यक्ष बनने से कहा जा रहा है राज्य इकाई के बड़े नेता विरोध करने की स्थिति में नहीं रहेंगे। यहां तक दिग्विजय सिंह भी कमलनाथ का विरोध नहीं कर पाएंगे। कमलनाथ ने1993 में दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनाने में अहम भूमिका निभाई थी, तब दोनों को बड़े और छोटे भाई के रूप में जाना जाता था। मध्यप्रदेश के दस साल तक मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह की जमीनी पकड़ अभी भी मजबूत मानी जाती है। नर्मदा परिक्रमा के बाद उन्होंने मध्यप्रदेश की राजनीति में सक्रिय होने की इच्छा जताई थी, दिग्विजय सिंह को कोई जिम्मेदारी सौपने का ज्योतिरादित्य सिंधिया विरोध कर रहे थे। पिछले दिनों दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा यात्रा समापन समारोह में ज्योतिरादित्य सिंधिया को छोड़कर राज्य के सारे दिग्गज कांग्रेसी नेता गए थे। कमलनाथ ने वहां दिग्विजय सिंह की जमकर तारीफ भी की। साफ संकेत है नई टीम से कांग्रेस हाईकमान ने सभी गुटों को साधने का काम किया है। अब कमलनाथ अपने पुराने संबंधों से दिग्विजय सिंह के अनुभवों का लाभ ले सकेंगे। ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव से पहले राज्य में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने के पक्ष में थे, लेकिन दिग्विजय सिंह के विरोध से मामला टल गया। लेकिन चुनाव अभियान समिति के प्रमुख के बहाने ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री की दौड़ में अव्वल रहेंगे।
युवा ज्योतिरादित्य सिंधिया और अनुभवी कमलनाथ की जोड़ी से अब मध्यप्रदेश में कांग्रेस के मजबूत होने के आसार बढ़ गए है और बीजेपी के सामने चुनौतियां खड़ी होंगी। कांग्रेस के एक नेता का कहना था यह बदलाव पहले हो जाता तो मध्यप्रदेश में पार्टी की आज कुछ और ही स्थिति होती। कुल मिलकर जो हुआ अच्छा ही हुआ। कांग्रेस ने कमलनाथ के साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाए हैं। इनमें बाला बच्चन को कमलनाथ का ही समर्थक कहा जाता है। रामनिवास रावत तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के खेमे से है। जीतू पटवारी सीधे राहुल गांधी से जुड़े है। सुरेंद्र चौधरी को अर्जुन सिंह का आदमी माना जाता है। लेकिन हाईकमान ने अभी दिग्विजय सिंह की भूमिका तय नहीं की है, वही नई टीम से नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस के दिग्गज नेता अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह की स्थिति कमजोर पड़ती दिखाई दे रही है। लेकिन एक बात साफ हो गया है कि कांग्रेस हाईकमान ने मध्यप्रदेश में सत्ता की वापसी के जाल बिछाना शुरू कर दिया है।