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नीतीश पर भारी पड़ रहा है 14 साल पहले का फैसला, तेजस्वी ने खड़ी की परेशानी

कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन जारी है। वहीं विपक्षी दलों द्वारा बिहार के मुख्यमंत्री...
नीतीश पर भारी पड़ रहा है 14 साल पहले का फैसला, तेजस्वी ने खड़ी की परेशानी

कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन जारी है। वहीं विपक्षी दलों द्वारा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी घेरा जा रहा है। दरअसल, कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) अधिनियम को 2006 में निरस्त करने के नीतीश कुमार के फैसले ने उनकी परेशानी बढ़ा दी है। 14 साल पुराना यह कदम राष्ट्रीय जनता दल-वाम-कांग्रेस गठबंधन के लिए सरकार को घेरने का बड़ा मौका साबित हो रहा है।

बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव शनिवार को पटना के गांधी मैदान में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और देश के अन्य हिस्सों से आंदोलनरत किसान यूनियनों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए धरने पर बैठे।  उन्होंने 14 साल पहले एपीएमसी अधिनियम को निरस्त करने के बिहार सरकार के फैसले की जमकर आलोचना की। सीपीआई (एमएल) के किसान विंग, पंजाब किशन यूनियन, पहले से ही इसमें भाग ले रहे हैं।  वहीं पार्टी महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने 4 और 5 दिसंबर को पटना में अपनी पार्टी की दो दिवसीय केंद्रीय समिति (सीसी) की बैठक आयोजित की।

वहीं सीपीआई के कन्हैया कुमार ने नए खेत कानूनों के खिलाफ "निरंतर" आंदोलन के लिए किसानों और श्रमिकों को जुटाना शुरू कर दिया है।

तेजस्वी यादव का कहना है कि ' बिहार में जहां मंडियों का सवाल है वह 2006 में ही बंद कर दिया गया। हालत ये हो गई है कि बिहार के किसान खेती छोड़ मजदूरी करने लगे हैं। जब मंडी खत्म हो गई तो किसान कमजोर होते गए, बिहार में बस 2 फसलों पर एसएसपी है। धान का एमएसपी मात्र 1800 रुपये है। कही भी धान की खरीद नहीं हो रही है। लेकिन सीएम झूठ बोलते हैं कि खरीद हो रही है। कितने मूल्य पर किसान से फसल खरीदी जा रही है उसे सार्वजानिक करें।'

हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि बिहार में उनकी सरकार ने किसान विरोधी बिल को 2006 में ही खत्म कर दिया गया था। ऐसे में सरकार अगर किसानों से बात कर उन्हें समझाना चाहती है तो किसानों को भी पहल करनी चाहिए। बिहार देश का पहला वो राज्य था जिसने कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए 2006 में एपीएमसी एक्ट (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी यानी कृषि उपज और पशुधन बाजार समिति) को खत्म कर दिया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मुताबिक केंद्र के नए बिल से फसल अधिप्राप्ति में कोई बाधा नहीं आने वाली और इससे किसानों को ही फायदा होगा।

द वायर के अनुसार, नीतीश के दावे का खंडन करते हुए बिहार राजद अध्यक्ष और दिग्गज किसान नेता जगदानंद सिंह ने कहा, “सीएम (नीतीश) झूठ बोल रहे हैं।  2006 में एपीएमसी अधिनियम की समाप्ति के बाद अब बाजार की अनुपस्थिति में किसानों को संकट का सामना करना पड़ता है।  900 से 1,100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से भी उनके धान खरीदने के लिए कोई खरीदार नहीं हैं। ''

 

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