उन्होंने कहा कि वह रोज संसद में आते हैं और सुबह 10 बजे से शाम छह बजे तक संसद में अपने कक्ष में रहते हैं। उन्होंने कहा कि शायद ही कोई मंत्री या कोई सांसद इतना समय यहां बिताता हो। लेकिन प्रधानमंत्री ने संसद के किसी भी सदन में कश्मीर के संबंध में कोई बयान नहीं दिया। उन्होंने कहा कि दलितों के मुद्दे पर प्रधानमंत्री ने तेलंगाना से बयान दिया और कश्मीर को उन्होंने मध्य प्रदेश से संबोधित किया।
आजाद ने कहा कि प्रधानमंत्री की यह टिप्पणी जख्मों पर नमक छिडकने के समान है कि उन्हें मुख्यमंत्री ने बोलने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि इसका अर्थ यह है कि हमारी यानी विपक्ष की बात की कोई अहमियत नहीं है।उन्होंने कहा कि अफ्रीका की घटना हो या शत्रुु देश पाकिस्तान की कोई घटना, जहां इंसानियत की हत्या हुयी तो प्रधानमंत्री ट्वीट करते हैं। लेकिन अपने मुल्क का ताज जल रहा है लेकिन सिर को उसकी गर्मी नहीं महसूस हो रही। उन्होंने कहा कि कश्मीर से सिर्फ उसकी खूबसूरती, उसके पहाड़ों, झरनों के लिए प्यार नहीं करना चाहिए बल्कि वहां के लोगों और बच्चों से प्यार करना चाहिए, जिनकी आंखें पैलेट गन के कारण चली गयीं।
भाजपा पर निशाना साधते हुए आजाद ने कहा कि आतंकवाद के शिकार हम हुए हैं। सत्तापक्ष की ओर से टोकाटोकी के बीच भाजपा का जिक्र करते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि जहां-जहां उनके कदम पड़ते हैं वहां आग लग जाती है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्राी ने कश्मीरियत, इंसानियत, जम्हूरियत के संबंध में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बयान को उद्धृत किया है। लेकिन एेसी बातें वाजपेयी के मुंह से ही अच्छी लगती थी। लेकिन जो लोग इस पर भरोसा नहीं करते, वे भी एेसी बात बोलते हैं, तो अटपटा लगता है।
आजाद ने कहा कि कश्मीर में अलगवाद है, सांपद्रायिकता नहीं है। उन्होंने कहा कि आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता और आतंकवादियों के शिकार हुए लोगों में 95 प्रतिशत मुस्लिम हैं। पैलेट गन से हो रहे भारी नुकसान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कश्मीर में यह स्थिति पहली बार नहीं पैदा हुयी है। जब वह प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, उस समय भी एेसी स्थिति बनी थी। आजाद ने कहा कि वहां कई सालों से आतंकवाद की समस्या रही है और वहां की समस्या आम कानून व्यवस्था की समस्या नहीं है। वहां पुलिस के साथ केंद्रीय अर्धसैनिक बल तैनात हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश के पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं और राज्य सरकार अकेले समस्या का समाधान नहीं कर सकती। उसके पास न तो संसाधन हैं और न ही पर्याप्त श्रमशक्ति। राज्य मदद के लिए केंद्र पर निर्भर है।
उन्होंने कहा कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और यह सिर्फ कहने से काम नहीं चलेगा बल्कि दिल से एेसा दिखना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके लिए दिल भी मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि वहां की पीड़ा के संबंध में सदन से आवाज आनी चाहिए थी। आजाद ने कहा कि जब वह मुख्यमंत्री थे तो विश्वास बहाली के कई उपाय किए गए थे और हुरिर्यत को छोड़कर सभी दलों और पक्षों ने सहयोग दिया था। उन्होंने इस क्रम में पिछली संप्रग सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि शायद ही कभी एेसा हुआ हो जब संसद के किसी एक सत्र में ही किसी विषय पर चार बार चर्चा हुयी और आज चौथी बाद राज्यसभा में कश्मीर की स्थिति पर चर्चा हो रही है। उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि पिछले दो सालों में दलितों और अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न बढ़ा है। भाषा एजेंसी