हुड्डा ने कहा कि कांग्रेस ने सब कुछ नियमों के अनुसार किया। हुड्डा ने दस्तावेज पेश करते हुए कहा कि 25 फरवरी 2005 को विधानसभा चुनावों की मतगणना से अगले ही दिन 26 फरवरी को इनेलो-भाजपा गठबंधन सरकार ने 912 एकड़ में से 350 एकड़ भूमि रिलीज करने की सिफारिश की थी। हुड्डा ने कहा कि भाजपा-इनेलो गठबंधन सरकार की सिफारिश के अनुसार 350 में से 224 एकड़ भूमि रिलीज की गई। फिर गांव के लोगों की मांग पर 136 एकड़ वह भूमि रिलीज की गई जिस पर स्कूल, मकान व फैक्टरी बने हुए थे।
इस जमीन को रिलीज करने के लिए उस समय गुड़गांव के सांसद एवं केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने सिफारिश की थी। आइएएस राकेश गुप्ता ने डीसी होते हुए रिपोर्ट भेजी थी। करीब 350 एकड़ भूमि ऐसी थी, जिस पर किसानों व जमीन के मालिकों ने सीएलयू के लिए सरकार के पास आवेदन किया हुआ था। ऐसे में केवल 200 एकड़ के करीब ही भूमि बची थी। सेक्शन नौ जारी होने के बाद जमीन छोड़ने के आरोपों को नकारते हुए हुड्डा ने कहा कि यह जमीन सेक्शन 6 जारी होने के बाद रिलीज की गई। 95 लोगों ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में भी याचिकाएं दायर की थी और वे सभी रद कर दी गईं।
हुड्डा व सुरजेवाला ने बताया कि हाई कोर्ट ने बाकी बची भूमि का कब्जे लेने पर रोक लगा दी थी। फिर अधिकारियों की कमेटी ने रिपोर्ट दी कि चूंकि केवल 200 एकड़ भूमि ही बाकी है और इस पर कोई प्रोजेक्ट सिरे नहीं चढ़ सकता। इसलिए सरकार ने यह जमीन भी छोड़ दी। हुड्डा ने कहा कि सबसे पहले मानेसर की 1258 एकड़ भूमि अधिग्रहण करने के लिए नोटिस जारी किए गए थे। इसके बाद 1997 में हविपा व भाजपा की गठबंधन सरकार ने इसमें से 1002 एकड़ भूमि रिलीज कर दी थी। वर्तमान में जिस भूमि को लेकर विवाद है, उसका अधिकांश हिस्सा उसी 1002 एकड़ भूमि में शामिल है।