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सीएए पर अमित शाह की राहुल को चुनौती, बताएं- कहां लिखा है नागरिकता छीनने का प्रावधान

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस पर गुमराह करने का आरोप लगाते हुए कहा कि संशोधित नागरिकता...
सीएए पर अमित शाह की राहुल को चुनौती, बताएं- कहां लिखा है नागरिकता छीनने का प्रावधान

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कांग्रेस पर गुमराह करने का आरोप लगाते हुए कहा कि संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) में किसी की नागरिकता जाने का कोई प्रावधान नहीं है। शिमला में एक रैली में उन्होंने इस मुद्दे पर राहुल गांधी को चुनौती देते हुए कहा कि कांग्रेस एंड कंपनी अफवाह फैला रही है कि सीसीए से अल्पसंख्यकों की नागरिकता जाने वाली है।

अमित शाह ने कहा, मैं राहुल बाबा को चैलेंज देता हूं कि इस कानून में एक भी जगह किसी की भी नागरिकता लेने का प्रावधान है, तो बताइए। उन्होंने कहा, 'इस कानून  के तहत अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित किसी की भी नागरिकता छीनने का कोई प्रावधान नहीं है। इसमें बांग्लादेश,पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का प्रावधान है।' 

उन्होंने कहा कि मैं अल्पसंख्यकों खासतौर पर मुस्लिमों से कहना चाहता हूं कि वे पहले सीएए को देखें जो सरकार की वेबसाइट पर है। इस कानून के तहत किसी की नागरिकता नहीं जाएगी। 

नहीं हुआ समझौते का पालन

अमित शाह ने कहा कि सीएए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक प्रताड़ना के शिकार अल्पसंख्यकों को नागरिकता उपलब्ध करायेगा। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान अल्पसंख्यकों के धार्मिक और अन्य अधिकारों की रक्षा करने से जुड़े नेहरू-लियाकत समझौते को क्रियान्वित करने में नाकाम रहा। इसकी वजह से नरेंद्र मोदी सरकार को संसद में कानून लाना पड़ा।

हिमाचल की भाजपा सरकार के दो साल पूरा होने के मौके पर रैली का आयोजन किया गया था। अमित शाह इंवेस्टरमीट को लेकर ग्राउंड ब्रेकिंग समारोह में मुख्य अतिथि थे। राज्य में भाजपा 2017 में सत्ता में आई थी तब जयराम ठाकुर सरकार ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।

 

क्या है नागरिकता कानून

 

बता दें कि संशोधित नागरिकता कानून में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में प्रताड़ना झेलने वाले अल्पसंख्यक हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों, जैन, बौद्धों और पारसियों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है, जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में शरण ली है। विरोध करने वालों का कहना है कि मुसलमानों को इस कानून के दायरे से बाहर रखना संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मौलिक अधिकार का उल्लंघन है और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है।

 

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