उत्तर प्रदेश के बरेली में आयोजित किसान कल्याण रैली में पीएम मोदी ने विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, वर्ष 2022 में हिन्दुस्तान की आजादी के 75 साल पूरे होंगे। क्या हम, राज्य सरकारें और किसान यह संकल्प कर सकते हैं कि आजादी के 75 साल पूरे होने तक हम किसान की आय को दोगुना कर देंगे। यह बहुत कठिन काम नहीं है। एक बार तय कर लें तो ऐसा हो सकता है। मोदी ने कहा कि आज किसान के सामने अनेक तरह की चुनौतियां हैं लेकिन इन चुनौतियों को अवसर में बदला जा सकता है। अगर किसान और राज्य सरकारें सहयोग करें तो क्रांतिकारी बदलाव आ सकते हैं। जहां-जहां राज्य सरकारें कृषि के काम में रुचि लेती हैं, वहां अप्रतिम प्रगति होती है, लेकिन जहां की सरकारें उदासीन रवैया अपनाती हैं वहां खेती किसान के नसीब पर छोड़ दी जाती है।
पीएम ने उत्तर प्रदेश के साथ ही सभी राज्य सरकारों से अनुरोध करते हुए कहा कि अपने राज्य के कामों में कृषि, किसानों और खेती के विषयों को सबसे बड़ी प्राथमिकता दें। खेती को तीन हिस्सों में बांटने की जरूरत बताते हुए पीएम ने कहा कि किसान अपने खेत का एक तिहाई हिस्सा उस पर बाड़ लगाकर बर्बाद कर देता है, अगर उस हिस्से पर फर्नीचर इत्यादि के लिए लकड़ी की खेती की जाए और एक तिहाई हिस्से में पशुपालन, मधुमक्खी पालन और अंडा उत्पादन के लिये कुक्कुट पालन किया जाए और उनसे होने वाली आमदनी को खेती की आय से जोड़ दिया जाए तो किसानों की आय दोगुनी हो सकती है। मध्य प्रदेश का जिक्र करते हुए पीएम ने कहा कि राज्य में शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई वाली भाजपा सरकार ने एक संकल्प के तहत वहां नई-नई योजनाएं बनाकर कृषि को प्राथमिकता दी। उनका प्रयास सफल रहा और आज यह राज्य कृषि के मामले में पिछले तीन साल से अव्वल बना हुआ है। अगर मध्य प्रदेश इतने कम समय में इतना परिणाम पा सकता है तो बाकी राज्य क्यों नहीं। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने कृषि को वैज्ञानिक तरीके से आगे बढ़ाने की कोशिश की है। देश में कृषि को मजबूती देने की जरूरत है। सिर्फ किसान की जेब में रुपये डालने से बात नहीं बनेगी। हमें किसान और खेती को ताकतवर बनाना पड़ेगा।
देश के आर्थिक विकास की संरचना तीन स्तम्भों पर आधारित करने को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें एक तिहाई हिस्सा कृषि का, एक तिहाई उद्योगों और बाकी एक तिहाई सेवा क्षेत्र का होना चाहिए। आज संपन्न किसान भी अपने किसी एक ही बेटे को कृषि से जोड़े रखना चाहता है, क्योंकि उसे पता है कि अब परिवार केवल कृषि से मिलने वाली आमदनी से नहीं चलने वाला है। किसान के बेटे खेती छोड़कर रोजगार के लिए कहां जाएंगे? अगर उद्योग नहीं लगेंगे तो किसान के बेटों का क्या होगा? इसलिए किसान परिवार की भलाई के लिये उद्योगों की आवश्यकता है। लेकिन इतनी बड़ी संख्या में उद्योग लगाना भी मुश्किल है। ऐसे में सेवा क्षेत्र ऐसा क्षेत्र है जहां रोजगार की संभावनाएं हैं। अगर हम पर्यटन को बढ़ावा दें तो किसान के बेटे को कहीं न कहीं रोजगार मिल सकता है, लेकिन जो एक तिहाई हिस्सा कृषि का है, उसे आगे बढ़ाना होगा।
अर्से से सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखण्ड का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि जिस बुंदेलखण्ड में पांच-पांच नदियां हों, वहां पीने का पानी भी न हो तो शर्म होती है कि हमने देश कैसे संभाला। इस सरकार ने जल प्रबंधन को प्राथमिकता दी है। अगर एक बार पानी का प्रबंधन ठीक से कर लें तो हमारे किसानों की आधे से ज्यादा समस्याएं अपने आप सुलझ जाएंगी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की नदियों को जोड़ने की परिकल्पना का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि उनकी सरकार वाजपेयी के सपने को बल देकर आगे बढ़ रही है। इसी कोशिश के तहत प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना बनाई गई है और 50 हजार करोड़ रुपये की लागत से यह योजना लागू करने का बीड़ा उठाया गया है। उन्होंने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत गांवों में नहरों की सफाई, तालाब खोदने और पानी की व्यवस्था करने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि कुछ राज्यों ने इस दिशा में काम शुरू किया है लेकिन वह चाहते हैं कि अन्य राज्य भी इसे आगे बढ़ाएं। इस मौके पर केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी, संजीव बालियान, संतोष गंगवार और भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजयपाल तोमर भी मुख्य रूप से मौजूद थे।