फ्रांस के साथ राफेल लड़ाकू विमान की खरीद में घोटाले और राष्ट्रीय हितों एवं सुरक्षा की अनदेखी का आरोप कांग्रेस ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर लगाया है। कांग्रेस के मीडिया कम्युनिकेशन के इंचार्ज रणदीप सिंह सुरजेवाला ने मंगलवार को कहा कि पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने की सरकार की नीति के कारण सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाया गया। सरकार को बताना चाहिए कि क्यों वह यूपीए सरकार के दौरान बातचीत के जरिये तय मूल्य से अधिक मूल्य पर विमान खरीदकर एक व्यापार समूह के हितों को आगे बढ़ा रही है। भाजपा ने कहा है कि अगस्ता वैस्टलैंड हेलिकॉप्टर सौदे में अनियमितता से ध्यान भटकाने के लिए कांग्रेस इस तरह के आरोप लगा रही है।
सुरजेवाला ने इस सौदे में रक्षा खरीद प्रक्रिया और हिन्दुस्तान एयरनोटिक्स लिमिटेड के हितों की अनदेखी करने का आरोप लगाया। उनके अनुसार राफेल विमान के फ्रांसीसी निर्माता दसाल्ट एविएशंस ने एचएएल को प्रौद्योगिकी स्थानांतरण से इंकार कर दिया और इसके बदले रिलायंस डिफेंस के साथ दूसरा समझौता किया। उन्होंने कहा कि मई 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने जुलाई 2015 में उस समझौते को रद कर 126 विमानों की खरीद के लिए किया गया था। सरकार ने 36 राफेल विमानों के लिए दसाल्ट कंपनी के साथ 8.7 अरब अमेरिकी डॉलर का सौदा किया। बाद में अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस लि. ने फ्रांस की दसाल्ट एविशन के साथ तीन अक्टूबर 2016 को एक संयुक्त उद्यम बनाया ताकि भारत में रक्षा उत्पादन किया जा सके। इसके लिए रिलायंस डिफेंस एंड एयरोस्पेस लि. ने दसाल्ट के साथ समझौता किया। सुरजेवाला ने कहा, समय आ गया है कि प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार जनता को जवाब दे कि उनकी सरकार ने यूपीए सरकार के दौरान तय किए गए मूल कीमत की तुलना में बहुत ऊंची कीमत पर 36 राफेल विमान क्यों खरीदे?
कांग्रेस ने सौदे में राष्ट्रीय हित और सुरक्षा को दांव पर लगाने का आरोप लगाते हुए केंद्र सरकार से पांच सवाल भी पूछे;
- मोदी सरकार ने 36 लड़ाकू विमान क्यों ऊंची कीमतों पर खरीदें जबकि यूपीए कांग्रेस सरकार के दौरान इनकी कीमत काफी कम थी। तब 126 विमानों की बेस कीमत 10.2 बिलियन अमेरिका डालर थी और इसमें तकनीकी का आदान प्रदान भी था। क्या यह सही है कि मोदी सरकार ने 36 राफेल विमान बिना तकनीकी के 8.7 बिलियन अमेरिकी डालर में खरीदे हैं। क्या यही सही नहीं है कि यूपीए के सौदे में एक विमान की कीमत 80.95 मिलियन यानी 526.1 करोड़ रुपये कीमत थी जबकि मोदी सरकार के समय में खरीदे गए प्रति विमान की कीमत 241.66 मिलियन यानी 1570.8 करोड़ रुपये है। इस नुकसान के लिए कौन जिम्मेदार है।
- प्रधानमंत्री बिना रक्षा खरीद की प्रक्रिया को अपनाए दसाल्ट के 36 विमानों को खरीदने का एकतरफा फैसला ले सकते हैं। इंटर गवर्नमेंट के एग्रीमेंट को इसमें दरकिनार नहीं किया गया।
- मोदी सरकार क्यों तकनीकी के ट्रांसफर को भूल गई क्योंकि यूपीए ने कुछ विमान को छोड़कर बाकी विमान हिंदुस्तान कंपनी एचएएल द्वारा बनाए जाने की बात की थी।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्यों एक औद्योगिक ग्रुप यानी रिलायंस डिफेंस लिमिटेड के स्वार्थों को साधने में लगे हैं और एचएएल के हित को दरकिनार कर रहे हैं।
- डिसाल्ट एविएशन और रिलायंस डिफेंस लिमिटेडके बीच संयुक्त उपक्रम बनाने के लिए कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी और विदेशी निवेश प्रोन्नत बोर्ड से मंजूरी क्यों नहीं ली गई।