विधानसभा चुनाव से पहले राजस्थान में भाजपा को करारा झटका लगा है। नाराज चल रहे विधायक मानवेंद्र सिंह ने पार्टी छोड़ दी है। वे वाजपेयी सरकार में वित्त और विदेश मंत्री रहे जसवंत सिंह के बेटे हैं। बाड़मेर के पचपदरा में शनिवार को स्वाभिमान रैली के दौरान मानवेंद्र ने भाजपा छोड़ने का ऐलान करते हुए कहा- कमल का फूल हमारी भूल थी। वे कांग्रेस में शामिल होंगे या अपनी पार्टी बनाएंगे यह फिलहाल साफ नहीं है।
रैली को संबोधित करते हुए मानवेंद्र ने कहा, “गौरव और सकंल्प को लेकर कई रैलियां हुई हैं। लेकिन, आज की रैली सबसे बड़ी है। यह स्वाभिमान की रैली है। बाड़मेर-जैसलमेर पर 2014 चुनाव में सबकी नजर थी और अब 2018 में सबकी नजर है। 2014 में जयपुर में एक व्यक्ति की वजह से मेरे पिता का टिकट काटा गया। हमारे समर्थकों को काफी परेशान किया गया। लेकिन अब हमारा धैर्य टूट चूका है। अब इस पार्टी में रहने के कोई औचित्य नही बनता है।”
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से मानवेंद्र की खटास पुरानी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में वसुंधरा के कारण ही जसवंत सिंह को भाजपा का टिकट नहीं दिया गया था। विरोध में जसवंत सिंह ने बाड़मेर से निर्दलीय चुनाव लड़ा था। लेकिन, मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने यहां से जाट समुदाय के कर्नल सोनाराम को जिताने में एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया और जसवंत सिंह की हार हुई। अगस्त 2014 में सिर में चोट लगने के बाद से जसवंत सिंह कोमा में हैं।
लोकसभा चुनाव के समय पिता का साथ देने पर मानवेंद्र को पार्टी ने निलंबित कर दिया था जो बाद में वापस ले लिया गया। हालांकि, उसके बाद भी उन्हें पार्टी के भीतर या राजस्थान में सरकार के भीतर कोई पद नहीं दिया गया। उपेक्षा से परेशान मानवेंद्र सिंह कई महीनों से पार्टी छोड़ने का संकेत दे रहे थे। पचपदरा से जब मुख्यमंत्री राजे ने गौरव यात्रा की शुरुआत की तो वे उसमें भी नजर नहीं आए। बाद में पचपदरा में ही खुद की स्वाभिमान रैली करने का ऐलान कर दिया।
50 हजार लोग जुटे
स्वाभिमान रैली में प्रदेश के अलावा बाहर से भी कई राजपूत नेता रैली में शामिल होने के लिए पहुंचे थे। मानवेंद्र सिंह और उनकी पत्नी लगातार 15 दिन से पश्चिमी राजस्थान में घूम-घूमकर इस रैली के सपोर्ट में आने के लिए लोगों से अपील कर रहे थे। हालांकि, मानवेंद्र की टीम रैली में एक लाख से ज्यादा लोगों के पहुंचने का दावा कर रही थी। अपने स्वभाव के विपरीत मानवेंद्र सिंह ने पहली बार सार्वजनिक रूप से इतनी बड़ी रैली का आयोजन कर भाजपा और वसुंधरा राजे पर तीखे सियासी हमले किए। उम्मीद के मुताबिक ना केवल भाजपा छोड़ने का ऐलान किया, बल्कि विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को हराकर उनको राजस्थान से बाहर फेंकने का आह्वान भी किया।
ले पाएंगे जगह
आनंदपाल एनकाउंटर, चतर सिंह एनकाउंटर, सामराऊ विवाद के कारण राजस्थान के राजपूत मुख्यमंत्री राजे से नाराज बताए जा रहे हैं। राज्य में राजपूतों की आबादी करीब छह फीसदी है, जो परंपरागत रूप से भाजपा के वोटर रहे हैं। कई सीटों पर यह वर्ग हार-जीत का फैसला करता है। मानवेंद्र खुद को इस गुस्से के प्रतीक के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं। वैसे भी, पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत के निधन के बाद राज्य में राजपूत समाज की लीडरशिप करीब-करीब खाली है। जसवंत सिंह ने इस जगह को भरने की कोशिश की थी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि उनके बेटे राजपूतों के नेता के तौर पर उभरने में कामयाब होते हैं या नहीं।
कांग्रेस में जाने के कयास
काफी समय से मानवेंद्र सिंह के भाजपा से किनारा कर कांग्रेस का दामन थामने के कयास लगाए जा रहे थे। पिछले दिनों कांग्रेस महासचिव अशोक गहलोत से भी उनकी मुलाकात हुई थी। पश्चिमी राजस्थान में जनसंपर्क के दौरान मानवेंद्र सिंह और उनकी पत्नी स्वाभिमान रैली को जसवंत सिंह के अपमान के बदले के तौर पर प्रचारित कर रहे थे।