बीबीसी की एक खबर के अनुसार धरने में शामिल विनोद पंडित कहते हैं, "पंडितों ने 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को वोट दिया था। इससे पहले 2014 के आम चुनाव में भी पंडितों ने भाजपा को वोट दिया था। लेकिन भाजपा ने पंडितों के लिए कुछ नहीं किया"। विनोद पंडित ने बताया कि कश्मीर में हिंसा के दौरान पंडितों को पूछने पार्टी का कोई नेता नहीं आया।
कश्मीर में जारी प्रदर्शन पीडीपी के साथ भाजपा का भी एक तरह से इम्तिहान है। भाजपा के आलोचक कहते हैं कि कश्मीर मामले में पार्टी ज़्यादा समय खामोश तमाशाई बनी रही है। दूसरी तरफ विपक्ष के मुताबिक़ कश्मीर के बिगड़ते हालात की ज़िम्मेदार भाजपा ही है।
बीबीसी के अनुसार भाजपा पर ये भी आरोप है कि वो ख़ुद को जम्मू की पार्टी समझती है इसलिए कश्मीर में होने वाले प्रदर्शनों से उसका कोई संबंध नहीं है। लेकिन भाजपा नेता और राज्य के उपमुख्यमंत्री निर्मल सिंह के मुताबिक़ दोनों पार्टियां अपनी ज़िम्मेदारियांं मिल कर निभा रही हैंं। वो कहते हैं, " हमारे मंत्री अलग अलग-अलग जगहों पर काम कर रहे हैं। पीडीपी के लोग भी काम कर रहे हैं।
आमतौर पर पीडीपी को कश्मीर और भाजपा को जम्मू की पार्टी समझा जाता है। दोनों पार्टियों के नेता का अपने ही क्षेत्रों से लगाव है और ये कश्मीर में जारी हिंसा के दौरान स्पष्ट दिखा है। जम्मू कश्मीर विधान परिषद के सदस्य और भाजपा के कश्मीरी पंडित नेता सुरिंदर मोहन अंबरदार मानते हैं कि दोनों पार्टियां अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती हैं। उन्होंने कहा, "आपको पता है भाजपा को बहुमत जम्मू से मिला है। कश्मीर का मैंडेट पीडीपी के पास है। हिंसा कश्मीर में हुई है। लेकिन भाजपा का कार्यकर्ता अपनी ज़िम्मेदारी निभाने को तैयार है"।
कांग्रेस के मुताबिक़ ढाई महीने सरकार न रहने के कारण आम लोगों में बेचैनी फैली। ये भी एक कारण है कि कश्मीर में हिंसा भड़की। भाजपा की प्रिया सेठी राज्य की शिक्षा मंत्री हैं। उन्होंने इस आरोप का खंडन करते हुए कहा, "कश्मीर मामले में उनकी पार्टी और नेता पूरी तरह से अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं। भाजपा अपनी ज़िम्मेदारी निभा रही है। इसका वजूद जितना जम्मू में है, उतना ही श्रीनगर में भी है"।